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Written by जनसत्ता: हाल में पंजाब के पटियाला में कथित तौर पर खालिस्तान के समर्थन और विरोध से जुड़े प्रदर्शनों के बाद अब हिमाचल प्रदेश में जिस तरह की घटना सामने आई है, उससे लगता है कि कोई अराजक समूह फिर देश में हंगामे का माहौल पैदा करना चाहता है। गौरतलब है कि धर्मशाला में हिमाचल विधानसभा परिसर के एक दरवाजे और उसके पास बाहरी दीवारों पर किसी ने खालिस्तान के झंडे लगा दिए, कुछ आपत्तिजनक नारे लिख दिए। जाहिर है, इस करतूत को अंजाम देने वालों ने सोच-समझ कर इस जगह का चुनाव किया था, क्योंकि इससे उन्हें और उनके मुद्दे को पर्याप्त चर्चा मिल सकती थी।
लेकिन सवाल है कि विधानसभा जैसी सबसे सुरक्षित मानी जाने वाली जगह और परिसर की सुरक्षा व्यवस्था में लगा समूचा तंत्र क्या कर रहा था कि इसकी दीवारों और दरवाजों पर कोई खालिस्तान का झंडा लगा कर और नारे लिख कर भाग गया! जब मामले ने तूल पकड़ लिया तब सरकार और पुलिस प्रशासन की ओर से मामले की जांच के लिए विशेष जांच दल का गठन करने की बात कही गई। लेकिन आखिर ऐसा क्यों होता है कि किसी बड़ी घटना के बाद ही संबंधित महकमे सक्रिय होते हैं।
हैरानी की बात यह है कि हिमाचल प्रदेश में खालिस्तानी झंडा लगाने की यह घटना अचानक नहीं हुई। खुद खुफिया विभाग ने करीब डेढ़ महीने पहले इससे संबंधित चेतावनी देते हुए कहा था कि खालिस्तान समर्थक संगठन सिख फार जस्टिस के मुखिया गुरुपतवंत सिंह पन्नू ने पत्र जारी कर शिमला में खालिस्तान का झंडा फहराने की धमकी दी थी। इस तरह की स्पष्ट धमकी के बावजूद संबंधित महकमों ने सावधान और चौकस रहना जरूरी क्यों नहीं समझा? हालत यह है कि खबरों के मुताबिक हिमाचल विधानसभा भवन के जिस दरवाजे पर झंडा लगाने की ताजा हरकत की गई, वहां गेट और उसके आसपास सीसीटीवी कैमरा भी नहीं था।
हर कुछ समय बाद आतंकवादियों से लोहा लेने का दावा करना वाला तंत्र यह किस तरह की सुरक्षा-व्यवस्था सुनिश्चित करता है कि अपराधी तत्त्वों को कोई गैरकानूनी हरकत करके निकल जाने में आसानी हो? अब राज्य के मुख्यमंत्री ने भले ही इसे कायराना हरकत बताते हुए इसकी निंदा की है, लेकिन सच यह है कि विधानसभा जैसे सत्ता तंत्र के अन्य केंद्र देश विरोधी तत्त्वों के खास निशाने पर होते हैं और इसकी सुरक्षा सुनिश्चित करना उनकी जिम्मेदारी है।
हो सकता है कि फिलहाल ऐसी घटनाएं इक्का-दुक्का प्रयासों के तौर पर ही देखी गई हैं, लेकिन अगर अभी ही इसे गंभीरता से नहीं लिया गया तो इस बात की कोई गारंटी नहीं कि आने वाले वक्त में यह जटिल स्वरूप न ले ले। खासतौर पर खालिस्तान के मुद्दे पर अतीत में कैसी जटिल स्थितियां खड़ी हुई थीं और उसके क्या खमियाजे सामने आए थे, यह किसी से छिपा नहीं है। बड़ी कीमत चुका कर उस दौर में इस मुद्दे से जुड़ी गतिविधियों को काबू में किया गया था और इसमें लिप्त लोगों और समूहों को हाशिये पर ले जाने में कामयाबी हासिल की गई थी।
लेकिन पिछले कुछ समय से जिस तरह खालिस्तान के मुद्दे पर अक्सर विवाद सामने आने लगा है, उसे देखते हुए इस मसले पर अब अतिरिक्त सावधानी बरतने की जरूरत है। न केवल सामान्य कानून-व्यवस्था, बल्कि देश के सामने एक चुनौती के लिहाज से भी ऐसी छोटी-मोटी घटना को भी चिंता का कारण माना जाना चाहिए। इससे अलावा, ऐसी घटनाओं पर राजनीतिक फायदा उठाने के लिए एक-दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप का खेल खेलने के बजाय समस्या के हल के लिए जरूरी कदम उठाए जाने चाहिए।