सम्पादकीय

यादव 'वाद' से दूर हो रहे हैं अखिलेश, क्या है उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव जीतने की नई रणनीति? संयम श्रीवास्तव।

Rani Sahu
10 Sep 2021 10:29 AM GMT
यादव वाद से दूर हो रहे हैं अखिलेश, क्या है उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव जीतने की नई रणनीति?  संयम श्रीवास्तव।
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उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) में आगामी कुछ महीनों में विधानसभा के चुनाव होने हैं

उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) में आगामी कुछ महीनों में विधानसभा के चुनाव होने हैं. इस बार सीधी लड़ाई भारतीय जनता पार्टी (BJP) और अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) की समाजवादी पार्टी (Samajwadi Party) के बीच है. एक तरफ बीजेपी जहां हिंदुत्व और राष्ट्रवाद के मुद्दे के साथ चुनावी मैदान में है. वहीं दूसरी ओर समाजवादी पार्टी भी इस बार एक नए समीकरण के साथ उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव को जीतने का दम भर रही है. दरअसल अखिलेश यादव को पता चल गया है कि अगर यूपी में उन्हें सत्ता पानी है तो सबसे पहले अपने ऊपर चढ़े यादव 'वाद' के रंग को हल्का करना पड़ेगा और अन्य जातियों को भी यह संदेश देना होगा कि समाजवादी पार्टी केवल यादवों की पार्टी नहीं है.

अखिलेश यादव के नेतृत्व में समाजवादी पार्टी अब यादव 'वाद' के रंग को हल्का करने के लिए जुट भी गई है. जहां एक ओर समाजवादी पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष नरेश उत्तम पटेल 'किसान नौजवान पटेल यात्रा' की शुरुआत कर सूबे के कुर्मी मतदाताओं में अपनी पकड़ मजबूत कर रहे हैं. वहीं दूसरी ओर 9 अगस्त से समाजवादी पार्टी ने ओबीसी सम्मेलनों की शुरुआत की है, जो पूरे प्रदेश में गैर यादव ओबीसी वर्गों को समाजवादी पार्टी के नजदीक लाएगा.
समाजवादी पार्टी चाहती है कि 2017 के विधानसभा चुनाव में और 2019 के लोकसभा चुनाव में जिन गैर यादव ओबीसी जातियों ने भारतीय जनता पार्टी को समर्थन दिया था, वह किसी भी तरह से सपा के पाले में आ जाएं. इसके लिए सपा ने छोटी-छोटी जाति विशेष पार्टियों से प्रदेश में गठबंधन भी किया है. जैसे मौर्य समुदाय को साधने के लिए समाजवादी पार्टी ने केशव देव मौर्य की पार्टी 'महान दल' से गठबंधन किया है. वहीं चौहान समुदाय को साधने के लिए अखिलेश यादव ने संजय चौहान की 'जनवादी सोशलिस्ट पार्टी' से भी गठबंधन किया है. इसके साथ ही समाजवादी पार्टी सवर्णों में ब्राह्मण समुदाय पर भी अपनी विशेष नजर बनाए हुए है, क्योंकि उसे लगता है यह समुदाय फिलहाल भारतीय जनता पार्टी से नाराज है और अगर सपा की तरफ से कोशिश की जाए तो ब्राम्हण एसपी के साथ आ सकते हैं.
अखिलेश यादव की गैर यादव ओबीसी जातियों पर विशेष नजर
अखिलेश यादव उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव को इस बार एक विशेष रणनीति के तहत लड़ना चाहते हैं. यह रणनीति है समाजवादी पार्टी के साथ गैर यादव जातियों को एक साथ करने की. शायद यही वजह है कि पिछले कुछ सालों से समाजवादी पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष पटेल समुदाय से आने वाले नरेश उत्तम पटेल हैं, जो कुर्मी समाज में अपना प्रभुत्व रखते हैं. लेकिन समाजवादी पार्टी सिर्फ कुर्मी समुदाय को ही एसपी के करीब नहीं लाना चाहती है. बल्कि वह निषाद, कश्यप, सैनी, शाक्य, कुशवाहा जैसी जातियों की भी गोलबंदी कर अपने साथ लाना चाहती है.
इसके लिए समाजवादी पार्टी ने पूरे प्रदेश भर में पिछड़ा सम्मेलन शुरू किया है. यह सम्मेलन सुल्तानपुर, जौनपुर, गाजीपुर, चंदौली, वाराणसी, सोनभद्र, मिर्जापुर और भदोही जैसे जिलों के साथ-साथ पूरे यूपी में होंगे. हालांकि इस सम्मेलन के तहत सबसे ज्यादा ध्यान पूर्वांचल पर ही दिया जाएगा. एक वक्त था जब निषाद समाजवादी पार्टी के साथ हुआ करते थे. लेकिन अब वह बीजेपी के साथ हैं. क्योंकि बीजेपी का गठबंधन निषाद पार्टी से है. हालांकि अब समाजवादी पार्टी इस जाति को फिर से अपनी तरफ करने की कोशिश कर रही है. यही वजह थी कि फूलन देवी की पुण्यतिथि पर समाजवादी पार्टी ने यूपी के सभी जिलों में श्रद्धांजलि सभा का आयोजन किया था. इसके साथ ही पार्टी कहार, कश्यप, केवट, बिंद, भर, प्रजापति, राजभर, मांझी, मल्लाह, लोध और सुनार जैसी जातियों को साधने के लिए जिले स्तर पर इन जातियों से आने वाले नेताओं को आगे कर रही है. इस वक्त पिछड़े वर्ग के प्रकोष्ठ अध्यक्ष के रूप में राजपाल कश्यप तैनात हैं. जो कश्यप समुदाय में अच्छी पकड़ रखते हैं.
नंबर का गणित समझते हैं अखिलेश यादव
द वायर में छपी एक रिपोर्ट के अनुसार उत्तर प्रदेश में यादव वोटर्स की संख्या लगभग 9 फ़ीसदी है. जबकि गैर यादव वोटर्स की संख्या 32 से 35 फ़ीसदी है. समाजवादी पार्टी को पता है कि सिर्फ 9 फ़ीसदी यादव वोट बैंक से वह सत्ता तक नहीं पहुंच सकती. इसलिए उसकी नजर अब 32 से 35 फ़ीसदी नॉन यादव ओबीसी वोटर्स पर है. हालांकि जिस रणनीति के तहत अखिलेश यादव आगे बढ़ रहे हैं उन्हें चुनौती देने के लिए भारतीय जनता पार्टी भी यूपी में इसी रणनीति पर आगे बढ़ रही है और गैर यादव ओबीसी वोट बैंक को अपने पाले में लाने का प्रयास कर रही है.
बीजेपी को इसमें कुछ हद तक कामयाबी भी मिल चुकी है क्योंकि 2017 के विधानसभा चुनाव और 2019 के लोकसभा चुनाव में गैर यादव ओबीसी वोटर्स ने बीजेपी को भर-भर के वोट दिया था. अखिलेश यादव की नजर बीजेपी से नाराज माने जाने वाले ब्राह्मणों पर भी है, जिनकी तादाद उत्तर प्रदेश में लगभग 11 फ़ीसदी है. इसके लिए अखिलेश यादव ने पार्टी के पांच बड़े ब्राह्मण नेताओं को जमीन पर भी उतार दिया है. जिनमें माता प्रसाद पांडे, संतोष पांडे, अभिषेक मिश्रा, सनातन पांडे और मनोज पांडे जैसे विधायक शामिल हैं. जिनका काम है जिलेवार तरीके से प्रबुद्ध प्रकोष्ठ ब्राह्मण सम्मेलन कर ब्राह्मण समुदाय को समाजवादी पार्टी के नजदीक लाना. हालांकि समाजवादी पार्टी इसमें कितनी कामयाब होगी यह क्या पाना फिलहाल जल्दबाजी होगी.
जाति विशेष पार्टियों से गठबंधन की नई रणनीति
समाजवादी पार्टी ने खुद को पूर्वांचल में मजबूत करने के लिए चौहान बिरादरी की विशेष पार्टी जनवादी पार्टी (सोशलिस्ट) से यूपी में गठबंधन किया है. माना जाता है कि इस बिरादरी का पूर्वांचल के 10 से ज्यादा विधानसभा सीटों पर दबदबा है. मऊ जिले के सभी विधानसभा क्षेत्रों में इस जाति के लगभग 50,000 से ज्यादा वोटर्स हैं. वहीं बलिया, देवरिया, कुशीनगर, आजमगढ़, महाराजगंज, चंदौली, बहराइच जैसे जिलों में इस जाति की आबादी अच्छी खासी तादाद में है.
इसी तरह प्रदेश के करीब 4.5 फ़ीसदी मौर्य वोट बैंक में सेंध मारने के लिए समाजवादी पार्टी ने महान दल के अध्यक्ष केशव देव मौर्य के साथ गठबंधन कर लिया है. केशव देव मौर्य प्रदेश की मौर्य शाक्य और कुशवाहा बिरादरी में अच्छी पकड़ रखते हैं. उत्तर प्रदेश के वाराणसी, मिर्जापुर, जौनपुर, प्रयागराज, इटावा, मैनपुरी और फैजाबाद जैसे जिलों में इस जाति की अच्छी खासी पकड़ है. 2017 के विधानसभा चुनाव और 2019 के लोकसभा चुनाव में मौर्य बिरादरी ने भारतीय जनता पार्टी को पूरा समर्थन दिया था. क्योंकि बीजेपी में मौर्य समुदाय का नेतृत्व केशव प्रसाद मौर्य कर रहे थे जो इस वक्त यूपी के उपमुख्यमंत्री हैं.
2017 का विधानसभा चुनाव हारने का कारण भी अखिलेश यादव पर लगा यादव 'वाद' था
2012 में मायावती की बहुजन समाज पार्टी को हराकर समाजवादी पार्टी ने प्रदेश में सरकार बनाई. मुलायम सिंह ने अपने बेटे अखिलेश यादव को सूबे का मुखिया नियुक्त किया. 5 सालों के भीतर अखिलेश यादव ने कई अच्छे काम किए, लेकिन इन सबके बीच उन पर प्रदेश की सरकारी भर्तियों में यादव समुदाय के लोगों को ज्यादा भरने के आरोप लगे. चाहे वह शिक्षक भर्ती हो, पुलिस की भर्ती हो या फिर उत्तर प्रदेश सरकार की अन्य कोई भर्ती. इसने पूरे प्रदेश में यह माहौल बना दिया कि अखिलेश यादव की पार्टी समाजवादी पार्टी केवल यादवों की पार्टी है.
बीजेपी के लिए यह एक सुनहरा मौका था और इसे उसने कैच कर लिया और इन्हीं गैर यादव ओबीसी जातियों के सहारे 2017 में बीजेपी ने प्रचंड बहुमत से उत्तर प्रदेश में सरकार बना ली. जिसके बाद 2019 में भी भारतीय जनता पार्टी को गैर यादव ओबीसी जातियों का पूरा समर्थन मिला. अब अखिलेश यादव खुद की छवि को यादव 'वाद' से दूर कर रहे हैं. लेकिन वह यह करने में कितने सफल होंगे यह आगामी विधानसभा चुनाव ही बताएगा.


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