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- निजी हाथों में...
हवाई अड्डों पर सवार हिमाचल की राजनीति के लिए इमरजेंसी लैंडिंग जैसी स्थिति इसलिए पैदा हो रही है, क्योंकि प्रदेश के सबसे सक्षम और कार्यशील कांगड़ा एयरपोर्ट की बोली लगने जा रही है। देश के तेरह छोटे-बड़े हवाई अड्डों के निजीकरण की फांस में कांगड़ा एयरपोर्ट अब अपने पंख केवल निवेशक की इच्छा से ही खोल पाएगा यानी अब तक सर्वेक्षणों की खुराक पर इसके विस्तार की जो भी मुनादी हुई, उसे नए सिरे से पीपीपी मोड के तहत खरीददार की जरूरत रहेगी। ऐसा नहीं कि निजीकरण की परिपाटी में एयरपोर्ट की संभावनाएं कम हो जाएंगी, बल्कि आज के हालात में ऐसी सूचनाएं ही राष्ट्रीय योजना है यानी भविष्य की मिलकीयत में निजी क्षेत्र ही सफलता का परिचायक है। कुछ बड़े एयरपोर्ट के साथ कलस्टर में छोटे हवाई अड्डे जोड़कर इन्हें निजी हाथों के सुपुर्द करने की योजना पुरानी है। पहले कोच्चि एयरपोर्ट का निजीकरण 1999 में शुरू हुआ और इसके साथ मेक इन इंडिया के डिजाइन में दिल्ली-मुंबई हवाई अड्डों ने अपनी संभावनाओं और क्षमता का विस्तार किया। अडानी गु्रप ने अहमदाबाद, जयपुर, लखनऊ, तिरुवनंतपुरम, मंगलुरु और गुवाहटी जैसे हवाई अड्डों को हासिल करके नई व्यवस्था में काम करना शुरू किया है। यह दीगर है कि केरल सरकार ने तिरुवनंतपुरम हवाई अड्डे को लीज पर देने का विरोध किया है।
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