सम्पादकीय

हिमाचल में हवाई यात्रा

Rani Sahu
14 Dec 2021 6:55 PM GMT
हिमाचल में हवाई यात्रा
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हिमाचल में यात्रा और यात्री बदले हैं

हिमाचल में यात्रा और यात्री बदले हैं, ये दोनों सबब नई क्षमता को निर्धारित करते हुए यह साबित कर चुके हैं कि प्रदेश में गंतव्य अब सुविधाजनक होगा। इसी क्षमता को भांपते हुए नए प्रयोग शुरू हुए हैं और यह पर्यटन की दृष्टि से भी परिवहन से जुड़ी अपेक्षाओं को समझकर सरल व सहज बन सकता है। प्रदेश में हेलिटैक्सी के नए गंतव्य इस दिशा में एक और कदम है, जो शिमला, मंडी, धर्मशाला, रामपुर बुशहर व मनाली को जोड़ते हुए चंडीगढ़ तक की यात्रा को सहज बनाने का संकल्प लिए हुए है। मंडी से धर्मशाला के लिए पहली उड़ान में तनुजा शर्मा व दया शर्मा ने बता दिया कि युवाओं के लिए हवाई यात्रा का भविष्य क्या है। यह दीगर है कि उड़ान की अधिकतम लागत में यात्रा को साधारण नहीं माना जा सकता और यह भी कि गगल से शिमला का किराया 7330 रुपए हो जाएगा, तो इस खर्चीले अनुभव की कोई अन्य मिसाल नहीं। बहरहाल सुखद पहलू यह कि प्रदेश का अपना एक हवाई यात्रा नक्शा बन रहा है और इसी दृष्टि से हेलिपोर्ट भी विकसित होंगे। हेलिटैक्सी की मांग हमीरपुर, ऊना, चंबा व बिलासपुर से भी होने लगी है, तो सरकार को इस दिशा में पारदर्शिता के साथ भविष्य को रेखांकित करना होगा।

यह संकल्प तब तक अधूरा होगा, जब तक हिमाचल के हवाई अड्डों का विस्तार तथा किसी एक स्थान पर राज्य की उड़ानों का हब नहीं बनता। सर्दियों में भी पांच उड़ानों की क्षमता में सक्रिय गगल एयरपोर्ट स्वाभाविक तौर पर राज्य का सबसे बड़ा तथा सफलतम हवाई अड्डा तसदीक हो चुका है और अगर विस्तार योजना को अंजाम दिया जाए तो निश्चित रूप से विमान सेवाओं को नई दिशा मिलेगी। प्रदेश में यात्रा का आर्थिक व सामाजिक पहलू इस दृष्टि से भी है कि आम हिमाचली भी परिवहन सेवाओं की तरक्की को मंजूर कर रहा है। वोल्वो बसों का संचालन इसको प्रमाणित करते हुए, आज मांग को इतना विस्तृत कर चुका है कि ठेठ ग्रामीण इलाके भी ऐसी बसों की प्रतीक्षा करते हैं। विडंबना यह है कि आर्थिक, व्यापारिक व भौगोलिक दृष्टि से यह खाका नहीं बना कि कनेक्टिविटी को किस तरह परियोजनाओं के मार्फत विकसित किया जाए। मुख्यतः सड़क परिवहन पर निर्भर हिमाचल की सड़कें आज भी पूरे प्रदेश की सूत्रधार नहीं बनीं, तो कहीं योजनाओं का दोष है। हिमाचल में सड़क व रेल परिवहन तथा विमान सेवाओं के लिए खाका तभी मुकम्मल होगा, यदि हम जान लें कि कौनसी कनेक्टिविटी कहां से पूरे प्रदेश को जोड़ेगी।
तकनीकी व भौगोलिक दृष्टि से सड़क परिवहन को हमीरपुर के केंद्र बिंदु में पूरे प्रदेश से जोड़ना होगा, ताकि एक दिन चंबा से शिमला का सफर छह घंटे और कांगड़ा से नाहन भी छह घंटे में पहुंचा जा सके। प्रदेश में रेलवे का विस्तार ऊना तक पहुंची पटरी का रुख मोड़कर ही होगा। ऊना के अंब-अंदौरा से ज्वालामुखी को जोड़ना होगा ताकि बाद में यहीं से मंडी, कांगड़ा, हमीरपुर, बिलासपुर और बीबीएन को छुआ जा सके। इसी तरह विमानन का अगर इतिहास बनाना है, तो सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण व कार्यशील गगल एयरपोर्ट को अहमियत देनी ही पड़ेगी। यह इसलिए भी क्योंकि मौसम व एयर कनेक्टिविटी के आधार पर यह एयरपोर्ट उत्तर भारत में अपनी उपस्थिति के कई दस्तावेज जोड़ पाया है। पर्यटन की दृष्टि से कुल्लू और शिमला हवाई अड्डों का विस्तार अति आवश्यक है, लेकिन एक सीमा तक ही यह संभव होगा, जबकि गगल के लिए अब तक की सारी माप-मपाई साबित करती है कि बड़े विमान आसानी से यहां उतर सकते हैं। ऐसे में मंडी के अलावा भी अगर एक और हवाई पट्टी बनती है, तो हवाई उड़ानों का नेटवर्क भी प्रदेश के भीतर सक्षम होगा। प्रदेश की हवाई सेवाओं को दिल्ली-चंडीगढ़ से कहीं आगे मुंबई, बेंगलूर, जयपुर, लेह, गोवा, कोलकाता और चेन्नई से जुड़ना है, तो इन्हें सर्वप्रथम गगल के मार्फत ही उतरना पड़ेगा, जहां से आगे के लिए उड़ानें व हेलिटैक्सी की सुविधाएं जुड़ जाएं तो प्रदेश के सिने पर्यटन व कान्फ्रेंस पर्यटन की भूमिका बढ़ जाएगी। बहरहाल हेलिटैक्सी सेवा का विस्तार नई उम्मीदें लेकर आ रहा है, लेकिन इसे तीव्रता से हर जिला मुख्यालय से जोड़ते हुए किराए की दरों में कटौती करनी होगी।
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