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बल्कि जनता को प्रदूषण के उच्च स्तर के दौरान बचाव के उपायों को अपनाने में मदद मिल सकती है।
वायु प्रदूषण की समस्या के बारे में आम तौर पर सर्दी के मौसम में बहुत ज्यादा चर्चा होती है, क्योंकि इन दिनों हवा की गुणवत्ता में बहुत ज्यादा गिरावट आ जाती है। उत्तर और मध्य भारत में वायु प्रदूषण पूरे साल बनी रहने वाली समस्या है। इसमें सुधार लाने के लिए विभिन्न प्रदूषण स्रोतों से होने वाले उत्सर्जन को बड़े पैमाने पर घटाने की जरूरत है। वायु प्रदूषण घटाने के लिए नेशनल क्लीन एयर प्रोग्राम (एनसीएपी) पर ध्यान देने की जरूरत है, जिसे भारत सरकार ने 2019 में शुरू किया था।
इसके तहत, वायु गुणवत्ता के राष्ट्रीय मानकों को पूरा नहीं करने वाले 132 शहरों (नॉन-अटेनमेंट शहरों) की पहचान की गई है और इनके लिए समयबद्ध लक्ष्य तय किए गए। लेकिन, इसके तहत निर्धारित गतिविधियों में ज्यादातर चर्चा निगरानी बढ़ाने, प्रदूषण स्रोतों और उनके प्रभाव क्षेत्रों की जानकारी जुटाने जैसी कवायद पर केंद्रित हो जाती है। अभी आधे से ज्यादा नॉन-अटेनमेंट शहरों में रियल-टाइम एयर क्वालिटी मॉनिटरिंग स्टेशन लगाने का काम बाकी है।
केवल एक तिहाई नॉन-अटेनमेंट शहर ही अब तक इमीशन इन्वेंट्री अध्ययन पूरा कर पाए हैं, जबकि वायु प्रदूषण रोकने में निगरानी और वैज्ञानिक आकलनों के आंकड़े बहुत महत्वपूर्ण होते हैं। इन्हीं के जरिये हमें समस्या की जानकारी मिलती है। आंकड़ों के आधार पर कदम उठाने की रणनीति अपनाने से नीति निर्माताओं और नियामकों को इन सवालों का जवाब पाने में मदद मिल सकती है कि प्रदूषण कहां पर है। इमीशन इन्वेंट्री, हवा को प्रदूषित करने वाले स्रोतों की जानकारी देती है, पर यह नहीं बता पाती कि ये स्रोत कहां पर हैं और कैसे लगातार बदल रहे हैं।
कानपुर और लखनऊ जैसे शहरों ने शहर को अलग-अलग क्षेत्रों में बांटकर प्रदूषण स्रोतों की जानकारी जुटाने की दिशा में प्रयास किए हैं, जो उत्सर्जन और स्रोतों की क्षेत्रवार जानकारी दे सकते हैं। लेकिन यह पहल दूसरे शहरों में अभी तक एक मानक गतिविधि नहीं बन पाई है, जबकि प्रदूषण स्रोतों की जगह जानना बहुत जरूरी होता है। इन अध्ययनों के अलावा, कंज्यूमर ग्रेड एयर क्वालिटी मॉनिटर और नियमित अंतराल पर फील्ड सर्वेक्षणों से प्रदूषण स्रोतों की हाइपर-लोकल मॉनिटरिंग की जा सकती है।
इससे यह पता चलेगा कि समय के साथ प्रदूषण स्रोत कहां पर हैं और कैसे बदल रहे हैं। शहर में हवा की गुणवत्ता सार्वजनिक परिवहन, पैदल और साइकिल चलाने के रास्तों, पक्की सड़कों, एकीकृत कचरा प्रबंधन, और हरित क्षेत्र जैसी विभिन्न शहरी सेवाओं पर निर्भर करती है। उदाहरण के लिए, अगर ठोस कचरा प्रबंधन का उचित इंतजाम नहीं है, तो इससे कूड़ा जमा होने और उसे जलाने की घटनाएं बढ़ सकती हैं, जो अंततः वायु प्रदूषण बढ़ाएगी।
इसे देखते हुए ही केंद्रीय आवास एवं शहरी कार्य मंत्रालय ने पहले से ही विभिन्न शहरी सेवाओं के लिए सर्विस लेवल बेंचमार्क के इंडिकेटर्स तय कर रखे हैं। इन इंडीकेटर्स की सक्रियता से निगरानी करने की जरूरत है, ताकि विभिन्न शहरी सेवाओं के प्रबंधन और गुणवत्ता में सुधार लाया जा सके। हवा की गुणवत्ता में सुधार का आकलन करने का एक तरीका एंबियंट एयर क्वालिटी मॉनिटरिंग स्टेशनों के आंकड़े हैं। लेकिन, इसके साथ यह भी पता लगाना जरूरी होता है कि वायु प्रदूषण को रोकने के उपायों का जमीनी स्तर पर क्या असर पड़ रहा है।
इसके लिए शहरों में इमीशन इन्वेंट्री को अपडेट करने, और औद्योगिक क्षेत्रों, निर्माण स्थलों और लैंडफिल साइटों के पास सोर्स लेवल मॉनिटरिंग करने जैसे उपायों को इस्तेमाल किया जा सकता है। वायु प्रदूषण को रोकने के लिए जरूरी है कि जनता को हवा की गुणवत्ता की रियल टाइम और पूर्वानुमानित, दोनों तरह की जानकारियां हों। अभी केवल कुछ ही शहरों में जनता को हवा की गुणवत्ता के पूर्वानुमान की जानकारी मिल पाती है। सटीक पूर्वानुमान से न केवल कार्यान्वयन एजेंसियों को प्रदूषण घटाने के लिए पहले से कदम उठाने, बल्कि जनता को प्रदूषण के उच्च स्तर के दौरान बचाव के उपायों को अपनाने में मदद मिल सकती है।
सोर्स: अमर उजाला
Neha Dani
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