सम्पादकीय

हवा में प्रदूषण

Gulabi
21 Oct 2020 2:23 AM GMT
हवा में प्रदूषण
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अमूमन हर साल जाड़े की आहट के साथ ही दिल्ली और आसपास के शहरों में प्रदूषण की हवा घनीभूत होने लगती है।

जनता से रिश्ता वेबडेस्क। अमूमन हर साल जाड़े की आहट के साथ ही दिल्ली और आसपास के शहरों में प्रदूषण की हवा घनीभूत होने लगती है। सरकार की ओर से या तो इससे निटपने के सीमित उपाय किए जाते हैं या फिर लोग इससे जूझते हुए कुछ महीने गुजार लेते हैं। इस बीच प्रदूषित हवा से जो नुकसान होना होता है, वह हो जाता है। लेकिन इस साल यही प्रदूषण दोहरी चिंता पैदा कर रहा है।

दरअसल, पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय की दिल्ली के लिए वायु गुणवत्ता पूर्व चेतावनी प्रणाली यानी 'सफर' ने शहर के प्रदूषण में पराली के धुएं की हिस्सेदारी के बढ़ने का अनुमान जताया है, जिससे अगले दो-तीन दिन दिल्ली में हवा बेहद खराब रहेगी। 'सफर' के मुताबिक रविवार को पराली जलाने की बारह सौ तीस घटनाएं हुईं।

दूसरी ओर, पर्यावरण प्रदूषण नियंत्रण प्राधिकरण ने भी वायु की गुणवत्ता और ज्यादा खराब होने की आशंका जताते हुए सोमवार को उत्तर प्रदेश और हरियाणा की सरकारों से ऐसे थर्मल पावर संयंत्रों को बंद करने के लिए तैयार रहने को कहा है जो 2015 में तय किए गए मानकों पर खरे नहीं उतरते हैं। दरअसल, पराली का धुआं पहले से प्रदूषण की समस्या से जूझती दिल्ली और दूसरे शहरों के लिए गंभीर समस्या बनता रहा है!

मौसम बदलने और हल्की ठंडक आने के साथ ही सतह के ऊपर हवा घनीभूत होनी शुरू हो जाती है और पराली या वाहनों से निकला धुआं आसानी से ऊपर नहीं उठ पाता है। नतीजतन, वायु की गुणवत्ता लगातार खराब होने लगती है और प्रदूषण गहराने लगता है। खासतौर पर वायु में सूक्ष्म प्रदूषक कणों के घुलने के साथ ही लोगों को सांस से संबंधित दिक्कतें होने लगती हैं।

ऐसा नहीं है कि पराली जलाने की घटना इस साल नई शुरू हुई है। पिछले कई सालों से इसकी वजह से पहले ही प्रदूषण से जूझते शहरों की समस्या और ज्यादा गहरा जाती है। इसे लेकर अलग-अलग संबंधित राज्यों के बीच जिम्मेदारियों को लेकर तर्क-वितर्क भी होते रहते हैं। लेकिन आखिरकार पराली जलाने वाले किसानों पर ही जिम्मेदारी थोप कर समस्या के टल जाने का इंतजार किया जाता है। पराली जलाने से रोकने के लिए मुआवजा या दूसरे विकल्पों पर विचार अब तक राहत के अस्थायी उपाय ही साबित हुए हैं।

जबकि फसलों के चक्र के मुताबिक यह हर साल की आम समस्या है। सवाल है कि इस साल जब कोरोना संक्रमण की गंभीर समस्या से देश गुजर रहा है, तब भी इस समस्या से जूझते राज्यों के बीच इसके समाधान पर बात करने की जरूरत क्यों महसूस नहीं हो रही है! पिछले छह महीने में लगभग सभी लोग यह समझ चुके हैं कि कोरोना का संक्रमण मुख्य रूप से श्वास नली और फेफड़े को संक्रमित करता है।

पराली जलाने या फिर वाहनों से निकले धुएं से पैदा हुआ प्रदूषण भी सांस और फेफड़े से संबंधित दिक्कतें ही पैदा करता है। हवा में जहर घुलने के इस मौसम में आमतौर पर वाहनों की संख्या नियंत्रित करके प्रदूषण को कम करने की जुगत की जाती है। इसके अलावा, औद्योगिक संयंत्रों के संचालन को नियंत्रित किया जाता है।

लेकिन पूर्णबंदी में राहत के बावजूद इस साल औद्योगिक इकाइयों का संचालन अब भी पूरी तरह सहज नहीं हुआ है। यानी फिलहाल वाहन और पराली जलाने से निकला धुआं मुख्य समस्या है। इसलिए सरकार को आने वाले दिनों के जोखिम को ध्यान में रखते हुए धुएं और हवा में घुलते जहर को कम करने के उपायों पर गंभीरता से अमल करना चाहिए। अगर इस मसले पर टालमटोल का रवैया अख्तियार किया जाता है तो अंदाजा लगाया जा सकता है कि महामारी से जूझते शहरों की हालत क्या हो सकती है!

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