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- 'टाटा' के हाथ में एयर...
आदित्य चौपड़ा।
बाजारमूलक अर्थव्यवस्था के दौर में पिछले 16 साल में सरकारी प्रतिष्ठान एयर इंडिया की निजी क्षेत्र को बिक्री की सबसे बड़ा व्यापारिक सौदा है। इससे यह साबित होता है कि सरकार वाणिज्यिक गतिविधियों से हाथ खींच कर इसे निजी क्षेत्र को देना चाहती है। निजीकरण की नीति पिछले 30 वर्षों 1991 से जारी है जिसके चलते सार्वजनिक क्षेत्र की विभिन्न कम्पनियां निजी क्षेत्र के हवाले हो चुकी हैं। मगर एयर इंडिया भारत सरकार की एकमात्र एयरलाइन थी जिसे अब टाटा उद्योग समूह ने 18 हजार करोड़ रुपए में खरीद लिया है। टाटा उद्योग समूह देश का एेसा अग्रणी वाणिज्यिक घराना है जिसका भारत के विकास में अभूतपूर्व योगदान रहा है। स्वतन्त्रता पूर्व ही टाटा समूह विभिन्न क्षेत्रों में उद्योग स्थापित कर भारत के औद्योगीकरण में अपनी सहभागिता इस प्रकार तय करता रहा है कि व्यावसायिक ईमानदारी व कर्मचारियों के प्रति इसकी नेक नीयती सार्वजनिक मंचों तक से सराही जाती रही है। अतः एयर इंडिया के टाटा समूह के हाथ में जाने पर इसके 12 हजार से ज्यादा कर्मचारियों को इस बात का इत्मीनान है कि उनके साथ उनका नया मालिक पूरा न्याय करेगा। वास्तव में किसी भी उद्योग घराने के लिए यह कोई छोटी उपलब्धि नहीं कही जा सकती क्योंकि निजीकरण का दौर शुरू होने के बाद से सर्वाधिक असन्तोष कर्मचारियों में ही देखने को मिलता रहा है और कर्मचारी किसी भी औद्योगिक संस्थान की रीढ़ होते हैं। वैसे एयर इंडिया लौट कर अपने पुराने मालिक के पास ही आयी है।