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- भारतीय हाकी सिरमौर...
मेजर ध्यानचंद के दौर से लेकर 1975 के विश्व कप हाकी तक भारतीय हाकी का सुनहरी दौर था। इसके बाद हाकी खेलने के नियमों में जो परिवर्तन किए जाते रहे उनके कारण भारतीय हाकी निरंतर ढलान पर रही। भारतीय हाकी का स्वर्णिम दौर ढलान पर क्यों रहा, इसके एक नहीं अनेक कारण रहे। एशियन हाकी चैम्पियन्स ट्राफी में जिन्होंने भी भारत और पाकस्तान के बीच हाईवोल्टेज मैच देखा, उन्हें इस बात का संतोष हो सकता है कि भारत ने पाकिस्तान को 4-3 से हराकर कांस्य पद जीत लिया। सेमीफाइनल में भारत को जापान के हाथों अप्रत्याशित रूप से हार मिली थी। भारत का यह एशियन चैम्पियंस ट्राफी में ओवर आल पांचवां पदक और पहला कांस्य पदक है। इस कांस्य से पहले भारत तीन स्वर्ण और एक रजत जीत चुका है। 2011, 2016 और 2018 में भारत ने स्वर्ण पदक अपने नाम किये थे। वहीं 2012 में टीम को रजत पदक मिला था। भारत के हाकी प्रेमियों को इस बात पर भी संतोष हो सकता है कि पाकिस्तान की टीम पहली बार कोई पदक नहीं जीत सकी। भारतीय टीम आखिरी कुछ मिनटों में सिर्फ 9 खिलाड़ियों के साथ मैदान पर थी, क्योंकि दो खिलाड़ियों को येलो कार्ड दिखाया गया था। इसमें पांच मिनट के लिए खिलाड़ी को मैदान से बाहर कर दिया जाता है। इसके बावजूद भारतीय डिफेंस मुस्तैद रहा और पाकिस्तान को गोल नहीं करने दिया। इसमें कोई शक नहीं कि भारतीय हाकी खिलाड़ियों ने बेहतर खेल दिखाया।टोक्यो ओलिम्पिक में भारत की पुरुष हाकी टीम ने जर्मनी को 5-4 से हरा कर 41 वर्ष बाद कांस्य पदक जीता था। इस मुकाबले में दो बार पिछड़ने के बाद भारत ने जोरदार वापसी की थी। इस ऐतिहासिक जीत के बाद एक नए युग की शुरूआत की उम्मीदें जरूर बंधी हैं। भारतीय हाकी टीम का इतिहास काफी दिलचस्प रहा। देश में हाकी की शुरूआत वर्ष 1928 में हुई थी। तब भारत ने पूरी दुनिया को रौंदते हुए स्वर्ण मुकुट पहनता था। 1928 एम्स्टर्डम में ब्रिटिश हकूमत वाली भारतीय टीम ने फाइनल में नीदरलैंड को हराकर हाकी में पहली बार स्वर्ण पदक जीता था। भारतीय हाकी को ध्यानचंद के रूप में एक ऐसा सितारा मिला जिन्होंने 14 गोल किए। जीत का सिलसिला 32 वर्ष तक कायम रहा। पहला ब्रेक 1960 में तब आया जब भारत को रजत के साथ संतोष करना पड़ा। इस वर्ष पाकिस्तान ने एक गोल से भारत को हराकर अश्वमेघी अभियान पर नकेल कसी थी। लेकिन 1964 में टोकियो में भारत ने खोई हुई प्रतिष्ठा हासिल कर ली। पैनल्टी कार्नर पर मोहिन्द्र लाल के गोल की मदद से भारत ने पाकिस्तान को हराकर एक बार फिर ओलिम्पिक स्वर्ण पदक जीता। इसके बाद भारतीय हाकी टीम कमजोर होती गई। 1980 के मास्को ओलिम्पिक में भारत ने अपनी हथेली पर स्वर्ण पदक तो रखा लेकिन इस पर केवल संतोष ही किया जा सकता था। क्योंकि 9 टीमों ने मास्को ओलिम्पिक का बहिष्कार किया था और मुकाबले में रह गई थीं सिर्फ 6 टीमें। दरअसल भारतीय हाकी टीम का पतन मोंटरियाल ओलिम्पिक 1976 से आरम्भ हुआ जब अन्तर्राष्ट्रीय प्रतिस्पर्धाएं एस्ट्रोटर्फ पर तेज रफ्तार हाकी खेली जाने लगी। भारत में एस्ट्रोटर्फ की कमी थी। इसलिए भारतीय खिलाड़ी जब भी एस्ट्रोटर्फ पर खेलते तो अपने आप को नौसिखिया पाते। हालांकि समय के साथ-साथ एस्ट्रोटर्फ की कमी तो पूरी कर ली गई लेकिन तब तक अन्य नियमों में परिवर्तन के कारण भारतीय हाकी ने अपने आपको घुड़दौड़ के ऐसे घोड़े के रूप में ही पाया जो सफल होने की बजाय इस दौड़ में बने रहने का ही प्रयास करता है। इसके बाद हाकी के जो नए नियम बने वह टीवी फार्मेट काे ध्यान में रखकर बनाए गए। यह प्रयोग मैचों के दौरान कमर्शियल एड दिखाने के लिए किया गया था। पहले जिन मैचों में 35 मिनट के दो हाफ खेले जाते थे उनकी जगह 15-15 मिनट के चार क्वाटर खेले जाने लगे। इस फार्मेट को लेकर विशेषज्ञों की राय अलग-अलग रही। विशेषज्ञों का कहना था कि हाकी मोमेंटम और फ्लो का खेल है जो ब्रेक के कारण बार-बार टूट जाता है। नए फार्मेट में भारतीय हाकी खिलाड़ियों की रिदम या लय अच्छी नहीं रही। इस दौरान क्रिकेट, टेनिस, बैडमिंटन आदि खेल खासमखास होते गए। क्योंकि इन पर धन की जबदरस्त बारिश हुई। भारतीय हाकी में एक बुरा दौर यह भी रहा कि भारतीय हाकी महासंघ भ्रष्टाचार, रिश्वत और भाई-भतीजावाद का शिकार हो गया। खिलाड़ियों तक का चयन रिश्वत लेकर किया जाता रहा जो हाकी राष्ट्रीय गौरव थी वह के.पी.एस. गिल के नेतृत्व में अभिशप्त हो गई। ढाई दशक तक राष्ट्रीय हाकी की ऐसी शर्मनाक दुर्गती हुई कि पूरा देश शोकमय हो गया। भारतीय हाकी टीम पराजित होती रही लेकिन नौकरशाहों को कोई संताप नहीं हुआ। 1998 में जब भारतीय टीम 32 वर्षों बाद एशियाई खेल में स्वर्ण पदक लेकर लौटी तो उनका सम्मान करने के लिए कोई अधिकरी हवाई अड्डे पर मौजूद नहीं था। सम्मान की बात तो दूर भारतीय हाकी महासंघ ने आशीष, धनराज पिल्ले जैसे धुरंधर खिलाड़ियों को बाहर का रास्ता दिखा दिया था। अजलान शाह हाकी प्रतियोगिता के लिए रिश्वत लेकर खिलाड़ियों को टीम में शामिल किया गया और एक स्टिंग आपरेशन में भारतीय हाकी महासंघ के महासचिव के. ज्योतिकुमारन पकड़े गए थे। बड़ी मुश्किल से भारतीय हाकी को इनसे मुक्ति मिली है।संपादकीय :कांग्रेस के सांगठनिक मतभेदभारत और भारत की संसदजानलेवा ओमीक्राेन : तीसरा युद्धआपका स्नेह आशीर्वाद , बहुत याद आता हैजम्मू-कश्मीर की बढ़ी सीटेंअफस्पाः संवेदनशील मुद्दाइसमें कोई दो राय नहीं अब भारतीय हाकी टीम को नया जीवनदान मिला है। विभिन्न प्रतियोगिताओं के कारण नए उभरते लड़कों को अन्तर्राष्ट्रीय खिलाड़ियों के साथ खेलने का अवसर मिल रहा है। साथ ही सरकार के प्रयासों से हाकी खिलाड़ियों को पहले की तुलना में ज्यादा पैसा और सम्मान मिल रहा है लेकिन पूरी दुनिया को जीतने के लिए इस अवधारणा से आजादी पानी होगी कि हमने पाकिस्तान को हरा दिया तो हम जीत गए। हमारा लक्ष्य केवल पाकिस्तान नहीं होना चाहिए, बल्कि हमें खुद को वैश्विक स्तर पर सर्वश्रेष्ठ साबित करना होगा। निकट भविष्य में भारतीय हाकी टीम दादा मेजर ध्यानचंद के दौर का चरम छू सकेगी। इसकी उम्मीदें बनाए रखनी होंगी।