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भारत सहित विश्व के अन्य देश इसका किस तरह से मुकाबला करते हैं, यह देखना काफी दिलचस्प होगा।
दिल्ली पुलिस के स्पेशल सेल की इंटेलिजेंस फ्यूजन स्ट्रैटेजिक ऑपरेशंस (आईएफएसओ) की जांच में हुए खुलासे के अनुसार, राष्ट्रीय राजधानी नई दिल्ली के अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) के सर्वर पर हुए साइबर हमले में चीन की भूमिका सामने आई है। जांच में यह पता लगा कि दो मेल आईडी से एम्स के सर्वर पर साइबर हमला किया गया। विगत 23 नवंबर को देश के प्रतिष्ठित मेडिकल संस्थान एम्स में हुए उस साइबर हमले में एम्स के चार सर्वर, दो एप्लीकेशन सर्वर, एक डाटाबेस और एक बैकअप सर्वर प्रभावित हुए थे और वहां के सभी कंप्यूटरों के एंटी वायरस का लाइसेंस खत्म हो गया था। जांच में पता चला कि जिन दो मेल आईडी से हमला हुआ, उनका उद्गम चीन में है। एक प्रमुख मेल आईडी का पता ग्लोबल नेटवर्क, फ्रांसिट लिमिटेड रोड डी/3 एफ ब्लॉक-2, 62 युआन रोड हांगकांग-00852 है।
आईएफएसओ की जांच इस साइबर हमले में कहां तक पहुंचेगी, यह देखना तो अभी शेष है, लेकिन चीन पर नजर रखने वालों के अनुसार इस तरह के हमले चीन की मूलभूत फितरत में शामिल हैं। कोई बहुत ज्यादा वक्त नहीं हुआ है, लेकिन भारत सहित कई देशों की खुफिया एजेंसियों के कर्ता-धर्ता आज भी इस घटना से सिहरे हुए हैं। हाल ही में भारत समेत 103 देशों की सरकारें एक मालवेयर (बदनीयती से छोड़ा गया सॉफ्टवेयर) के हमले के असर का अंदाजा लगाने के लिए इकट्ठा हुई थीं।
कनाडा स्थित इन्फॉर्मेशन वारफेयर मॉनिटर (आईडब्ल्यूएम) नामक एक रिसर्च संगठन के 10 महीनों के शोध व अनुसंधान के बाद तैयार की गई रिपोर्ट के अनुसार, चीन में स्थित चार सर्वरों से छोड़ा गया एक मालवेयर 103 देशों के उन 1,295 कंप्यूटरों में प्रवेश कर गया था, जिनमें सरकारी गोपनीय जानकारियां थीं। घोस्ट रैट नामक यह मालवेयर प्रभावित कंप्यूटरों में न सिर्फ टेक्स्ट फाइलें, बल्कि की-स्ट्रोक्स की जानकारी हासिल करने के साथ वीडियो और ऑडियो रिकॉर्ड कर और भी काफी कुछ कर सकता था।
चीन की सरकार ने इस बात से इनकार किया कि उनका इस हमले से कुछ भी लेना-देना है। लेकिन साइबर वारफेयर के अधिकांश विश्लेषक उक्त रिपोर्ट की मूलभूत खोजों से काफी भयभीत हैं। पहली खोज तो यह है कि मालवेयर का पता दो साल तक नहीं चला और अनेक कंप्यूटर तभी से रोगग्रस्त थे। दूसरा यह कि इस मालवेयर का पता और भी कई वर्षों तक नहीं चलता, अगर इन्फॉर्मेशन वारफेयर मॉनिटर (आईडब्ल्यूएम) इसका पता नहीं लगाता। दरअसल चीन की इन गतिविधियों से खतरा सिर्फ भारत को नहीं, बल्कि पूरी दुनिया को है। जहां तक राज्य प्रायोजित घुसपैठ की बात है, तो क्राउडस्ट्राइक के आंकड़ों के अनुसार, वर्ष 2020 और 2021 के बीच 67 फीसदी हमलों के पीछे चीन था। साइबर सुरक्षा मुहैया करवाने वाली एक अन्य एजेंसी सेंटिनल वन के सीनियर थ्रेट रिसर्चर टॉम हेगेल के अनुसार, इसमें कोई संदेह नहीं है कि खतरे की प्रासंगिकता के मामले में चीन अग्रणी देश के रूप में खड़ा है।
इसी साल जुलाई में फेडरल ब्यूरो ऑफ इन्वेस्टीगेशन (एफबीआई) और ब्रिटिश खुफिया एजेंसी एमआई5 ने चीन द्वारा इंटरनेट प्रोटोकॉल (आईपी) की चोरी के खतरे के बारे में एक अभूतपूर्व संयुक्त चेतावनी जारी की। लंदन में उद्योगपतियों को संबोधित करते हुए एफबीआई के निदेशक क्रिस्टोफर रे ने कहा कि चीन का हैकिंग कार्यक्रम 'हर दूसरे बड़े देश की तुलना में बड़ा है और चीन की सरकार आपकी प्रौद्योगिकी चुराने के लिए तैयार है।' उनका कहना था कि चीनी सरकार पश्चिमी व्यवसायों के लिए उससे भी गंभीर खतरा है, जितना कि कुछ व्यवसायी महसूस करते हैं। तमाम शहर हैं दो चार दस की बात नहीं-ये पंक्तियां चीन के मामले में पूरी तरह मौजूं साबित होती हैं।
दुनिया भर के साइबर सुरक्षा विशेषज्ञों का मानना है कि विकसित हो या विकासशील, सभी देशों को चीन से खतरा है। दक्षिण एशिया के विकासशील देशों की तो बात ही छोड़ दें, अमेरिका जैसे विकसित देश भी चीन से खतरा महसूस करते हैं। चंद बानगी पेश हैं : सिक्योरवर्क्स में एक शोधकर्ता के रूप में अपने तीन वर्षों के दौरान मार्क बर्नार्ड ने चीनी सरकारी हैकर्स को रसायन निर्माण, विमानन, दूरसंचार और फार्मास्यूटिकल्स में ग्राहकों के पीछे जाते देखा है। बर्नार्ड के मुताबिक, यह दर्शाना काफी मुश्किल है कि चीन के लिए प्रमुख क्षेत्र क्या हैं, क्योंकि वे (चीनी) बहुत से लोगों को लक्षित करते हैं।
अमेरिकी वायुसेना के पूर्व मुख्य सॉफ्टवेयर अधिकारी निकोलस चैलान के अनुसार, सबसे शर्मनाक उदाहरणों में से एक चीन द्वारा 2011 में शुरू होने वाले एफ-35 के समान डिजाइन वाले बमवर्षक जेट जारी करना था। एनएसए के पूर्व कांट्रेक्टर एडवर्ड स्नोडेन द्वारा लीक किए गए दस्तावेजों से इस बात की पुष्टि होती है कि चीनी सरकार के हैकर्स ने एफ-35 लाइटनिंग2 पर डेटा चुराया है, जिसके बारे में माना जाता है कि इसका इस्तेमाल जे-31 और जे-20 सहित चीनी जेट विमानों के डिजाइन में किया गया था। जुलाई, 2021 में, व्हाइट हाउस ने यूरोपीय संघ, ब्रिटेन और नाटो के साथ मिलकर 'दुर्भावनापूर्ण साइबर गतिविधि के पैटर्न' के लिए चीन सरकार की निंदा की। कार्रवाई ने यह स्पष्ट कर दिया कि बाइडन प्रशासन का मानना है कि चीन अमेरिकी व्यवसायों के आईपी चुराने के लिए हैकिंग गतिविधियों को रोकने के अपने 2015 के समझौते की अनदेखी कर रहा है।
मजेदार बात यह है कि कुछ साल पहले तक यह माना जा रहा था कि चीन अपने साइबर हमले सिर्फ खुफियागीरी की खातिर कर रहा है। लेकिन इस क्षेत्र के जानकारों और शोधकर्ताओं की धारणा अब पूरी तरह से बदल चुकी है। उनका मानना है कि अब चीन की दिलचस्पी अन्य देशों में शुद्ध रूप से व्यावसायिक हो चुकी है और अपने व्यापारिक हितों के मद्देनजर उसने अपनी साइबर जासूसी गतिविधियां बहुत बड़े पैमाने पर बढ़ा दी हैं। जानकारों का कहना है कि उसके हैकरों की सेना चौबीसों घंटे काम करती है। भारत सहित विश्व के अन्य देश इसका किस तरह से मुकाबला करते हैं, यह देखना काफी दिलचस्प होगा।
सोर्स: अमर उजाला
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