सम्पादकीय

आयातित संस्कृति के अहलकार

Rani Sahu
6 April 2022 6:57 PM GMT
आयातित संस्कृति के अहलकार
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आजकल अपनी समस्याओं के समाधान के लिए अत्याधुनिक देशों से समाधान आयात करने की परंपरा का गरिमापूर्ण पालन शुरू हो गया है

आजकल अपनी समस्याओं के समाधान के लिए अत्याधुनिक देशों से समाधान आयात करने की परंपरा का गरिमापूर्ण पालन शुरू हो गया है। समाधान उधार लिया न लगे, अतः उसे भारी भरकम हिंदी में शीर्षक अदा कर उसका स्वदेशीकरण कर दिया जाता है। फिर अपने इस मौलिक प्रयास पर राष्ट्र के कर्णधार अघा उठाते हैं। प्रशंसकों की कमी हो जाए तो अपने लिए स्वयं ही तालियां पीटने से परहेज़ नहीं करते। कदम-कदम पर मिलते इसके उदाहरण हमारी समझ का पालना झुलाने लगते हैं। 'हमारा भारत महान' की लोरी अपना स्वर बदल लेती है, देश नींद से जागने की बजाय और गहरी नींद में सो जाता है। नींद में कुनमुनाते हुए इन लोगों को थपकी दे सुलाते हुए मार्गदर्शक को यह सुझाया है, 'अरे बढ़ती हुई महंगाई से क्यों परेशान होते हो। थोक कीमतों का सूचकांक देख लो। ये पहले ज़ीरो से कितना कम था। अभी भी बढ़कर ज़ीरो ही तो हुआ है। क्यों याद दिलाते हो कि परचून कीमतों पर नियंत्रण का वायदा था? नहीं पूरा हुआ, क्या हुआ? कीमत स्तर वापस मनमोहन काल की कीमतों पर लौट आया तो क्या हुआ? अरे, भाई उससे बढ़ा तो नहीं?' मत याद दिलाइए कि रोज़मर्रा के खाद्य पदार्थों की कीमतें या आलू-प्याज़ के प्रति किलो की ओर बढ़ते हुए शतक औसत मूल्य सूचकांक वृद्धि का मुंह चिढ़ा नई परेशानी को अपकीर्ति स्तम्भ खड़े कर रहे हैं।

क्या हुआ? आप क्या जानते नहीं कि स्थानीय आर्थिक समस्याओं में वैश्विक कठिनाइयां पैदा हो गई हैं। पिछले छह महीने से इस देश के लोगों को कोरोना संक्रमण हो रहा है, तो यह एक वैश्विक महामारी का ही नतीजा है। अभी थोड़ा दब रहा है, तो यह भी बड़े-बड़े देशों के रुख के मुताबिक ही है। अब वे चतुर सजान कह रहे हैं कि राहत की सांस न लें, क्योंकि कोरोना की दूसरी लहर आएगी तो हमने भी सजग होना है, 'हे जनता दवाई नहीं तो ढिलाई नहीं। अब सामाजिक अंतर रखना और चेहरे पर मास्क रखना ही तुम्हारा कवच-कुंडल है, जि़रह बख्तर है।' यह कवच-कुंडल नहीं पहनोगे, तो दवाई नहीं, जुर्माना बढ़ेगा। कोरोना के साथ जीना नहीं, ढंग से मास्क पहनना सीख लो नहीं तो इस पर भी जुर्माना लगेगा। सुनो, पराली न जलाना। वायु प्रदूषण बढ़ता है, दम घुटना बढ़ेगा, कोरोना की दूसरी लहर आ जाएगी। इसलिए पराली जलाओगे तो एक करोड़ रुपए तक के जुर्माने का दंड पाओगे। क्या हुआ जो तुम्हारे पास परिवार का पेट भरने के पैसे तक नहीं। जुर्माना तो एक करोड़ रुपया भी भरना पड़ेगा।
इलाके के चौकसी प्रभारी, दरोगा बाबू खुश हैं, 'जितने भारी जुर्माने की घोषणा होती है, उतनी ही उनकी जेब की चोर आंख मुस्कराने लगती है।' शाम को ज़रा खेतों में डूबता सूरज देखने निकल जाइए, आपको खेतों में पराली की जलती हुए चिताएं नज़र आ जाएंगी। उधर स्थानीय चौकी में दरोगा बाबू का अट्टहास गूंजता है। यह सही है कि बड़ी कीमत वाले डालर का हस्तांतरण मूल्य गिन कर जुर्माना राशि घोषित कर दी गई। इसका भारी भरकम वजूद इनकी चोर जेबों को और भी खुश कर गया है। जलने दो पराली की चिताएं। लोगों में कोरोना की दूसरी लहर का भय वायु प्रदूषण के बढ़ने के साथ-साथ बढ़ेगा। अर्थशास्त्र में कारण और प्रभाव एक-दूसरे से जुड़े होते हैं। ज्यों-ज्यों इस लहर का भय बढ़ेगा, इसके उपचार के लिए दवा मंडियों में इसके सटीक टीके की जांच परीक्षण के बाद उतर आने की घोषणा का स्वर ऊंचा होगा। आजकल परीक्षण अंतरराष्ट्रीय स्तर पर हो रहे हैं। आम लोगों के लिए दिलासा आयात हो रही है। हां जी, इस दिलासा के बढ़ने के साथ फार्मा कंपनियों के शेयर मूल्य बढ़ जाते हैं। उनकी संपदा में सत्तर प्रतिशत वृद्धि हो जाती है, जबकि अन्य काम-धंधे मंदीग्रस्त हैं। इन्हें रहने दो।
सुरेश सेठ


Rani Sahu

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