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- यात्रा से आगे
Written by जनसत्ता; सबसे बड़ी समस्या पार्टी के लिए यह बनी हुई है कि अब जनता के साथ-साथ पार्टी के कई वरिष्ठ नेता भी मान चुके हैं कि पार्टी को अब किसी और बड़े चेहरे की जरूरत है, लेकिन कांग्रेस के पास राहुल गांधी के अलावा कोई ऐसा विकल्प मौजूद नहीं दिखता है। पार्टी को इस पर गहन विचार करने की जरूरत है।
कई बार चुनावों में अच्छे नेता के मैदान में होने के बाद भी पार्टी का सबसे बड़ा चेहरा वोटों पर प्रभाव डालता है और नतीजे पलट जाते हैं। इसी तरह पार्टी के बड़े चेहरे का फायदा कई बार चुनाव में खड़े नौसिखिए उठा लेते हैं। बात भाजपा और कांग्रेस की करें तो समझा जा सकता है कि कांग्रेस में राहुल गांधी और भाजपा में नरेंद्र मोदी के चेहरे का प्रभाव किस तरह उनके उम्मीदवारों के लिए सहायक और बाधक साबित हो रहा है।
कांग्रेस पार्टी की 'भारत जोड़ो यात्रा' के जरिए राहुल गांधी एक तरह से अपना प्रचार-प्रसार करने में लगे हुए हैं। पार्टी को और राहुल गांधी को इसका कुछ न कुछ लाभ जरूर होगा, मगर अगर वे अगले चुनावों में जीतना चाहते हैं तो यह सिर्फ इस यात्रा से संभव नहीं है। इसके लिए कांग्रेस को अभी बहुत मेहनत करने की जरूरत है।
देश में पिछले दिनों 'रेवड़ी संस्कृति' जैसे असामान्य विषय पर काफी विवाद चल रहा था। प्रधानमंत्री ने स्वयं इस प्रकार के चुनावी प्रलोभनों को देश के लिए घातक करार दिया था और जनता से आह्वान किया था कि रेवड़ी संस्कृति को सख्ती से नकारा जाए। इसके बरक्स हाल ही में केंद्र सरकार द्वारा देश की 'गरीब आबादी को मुफ्त राशन की योजना' को तीन महीने के लिए फिर बढ़ा दिया गया।
हालांकि इस घोषणा को चुनावी रेवड़ी की संज्ञा नहीं देना चाहिए। फिर भी इसे आगामी तीन माह के लिए और बढ़ाने के पीछे कौन-सा तत्त्व काम करता है?बेहतर है कि देश में चल रही जनकल्याण की योजनाओं को तब तक जारी रखा जाए, जब तक उन्हें जारी रखने की जरूरत है। दूसरी बात यह है कि हमारे विशाल भारत में लगभग वर्ष भर कोई न कोई चुनाव चलते रहते हैं, इसलिए विभिन्न प्रदेशों में चुनाव का माहौल बना रहता है।
इसलिए मुफ्त 'रेवड़ी' जैसा शब्द स्वत: ही बेमानी हो जाता है। आवश्यक जनसेवाओं से जुड़ी लाभकारी योजनाओं को चुनावों से अलग रखना चाहिए, क्योंकि सरकार तो जनता की सेवा के लिए ही होती है और लोक कल्याण की योजनाएं बनाना तथा उन्हें सतत जारी रखना सरकार का दायित्व है।