सम्पादकीय

कोरोना से आगे

Gulabi
10 Nov 2020 10:06 AM GMT
कोरोना से आगे
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सरकारों को अपना ध्यान आने वाली महामारियों की तैयारी पर लगाना चाहिए।

जनता से रिश्ता वेबडेस्क। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) का कहना है कि सरकारों को अपना ध्यान आने वाली महामारियों की तैयारी पर लगाना चाहिए। उसके बयान का संदर्भ आज से शुरू हो रही वर्ल्ड हेल्थ असेंबली से जुड़ा है, जो हर साल जिनीवा में होती है। कोरोना की मजबूरियों के चलते इस बार यह बैठक ऑनलाइन हो रही है। बहरहाल, डब्ल्यूएचओ की यह हिदायत ऐसे समय आई है जब कई देशों में कोरोना की दूसरी लहर आने की खबर सुर्खियों में है। एक महामारी जब पहले से ही लोगों के सिर पर हो तो आगे की महामारियों पर चर्चा करना खुद में अटपटा जान पड़ता है। इसके बावजूद डब्लूएचओ सभी देशों की संबद्ध एजेंसियों को आगे की महामारियों को लेकर आगाह करना जरूरी मानता है। कारण यह कि इनसे निपटने की तैयारियों के लिए किसी को अलग से कोई वक्त नहीं मिलने वाला। यह काम तमाम दूसरी चुनौतियों से जूझते हुए ही करते चलना होगा।

कोरोना से निपटने का अनुभव इस लिहाज से खासा शिक्षाप्रद हो सकता है। यह वैश्विक महामारी थी, फिर भी कुछ देशों ने इसका फैलाव रोकने और बीमारी से होने वाली मौतों की संख्या काफी कम रखने में सफलता प्राप्त की। चीन ने इसे अपने एक शहर वूहान से बाहर इक्का-दुक्का अपवाद के तौर पर ही जाने दिया, जिसका श्रेय उसके स्वास्थ्य तंत्र से ज्यादा प्रशासनिक तंत्र को जाता है। लेकिन जर्मनी की विशेषता यह रही कि आसपास के तमाम देशों में कोरोना के प्रकोप और खुली अंतरराष्ट्रीय सीमा के बावजूद अपने यहां मृतकों की संख्या को उसने उल्लेखनीय ढंग से नियंत्रित रखा। वहां अब तक कोरोना के करीब साढ़े छह लाख मामले सामने आए हैं जिनमें 11 हजार से कुछ ज्यादा मौतें हुई हैं। इसके बरक्स लगभग समान आबादी और परिस्थितियों वाले पड़ोसी देश फ्रांस में साढ़े सोलह लाख मामले आए और मरने वालों की संख्या 40 हजार के पार जा चुकी है। डब्ल्यूएचओ ने रेखांकित किया है कि जिन देशों में हेल्थ इमर्जेंसी से निपटने के लिए बेहतर इन्फ्रास्ट्रक्चर और अच्छी तैयारियां थीं वहां कोरोना बहुत ज्यादा नुकसान नहीं कर सका।

हेल्थ इन्फ्रास्ट्रक्चर की पॉजिटिव भूमिका को स्वीकार करते हुए भी यह मानना होगा कि महामारी से निपटने की कोई फूलप्रूफ व्यवस्था किसी देश में पहले से नहीं हो सकती। मगर हेल्थकेयर के क्षेत्र में सबसे बड़ी कमी वैश्विक स्तर पर यह रही है कि खास बीमारियों के इलाज पर बढ़ते जोर ने आम बीमारियों को पहाड़ बना डाला है। कैंसर और किडनी, हार्ट, लिवर से जुड़ी बीमारियों के लिए सुपरस्पेशलिटी हॉस्पिटल और इंश्योरेंस स्कीमें उपलब्ध हैं, लेकिन खांसी, जुकाम और पेचिश जैसी आम बीमारियों के लिए जनरल फिजिशन ढूंढना कठिन हो गया है। डब्लूएचओ का इशारा सिर के बल खड़ी इस प्राथमिकता को वापस पैरों पर लाने का है। आम लोगों की रोजमर्रा की जिंदगी से वास्ता रखने वाली छोटी-छोटी स्वास्थ्य समस्याओं का समाधान करने वाली विश्वसनीय और कारगर स्वास्थ्य सेवा विकसित किए बगैर हम न तो आम लोगों का जीवन स्तर सुधार पाएंगे, न ही भविष्य की संभावित महामारियों से निपटने में सक्षम हो सकेंगे।

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