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- कृषि विकास हो वार्ता...
जनता से रिश्ता वेबडेस्क। भारत में खेती का विकास एक सिलसिलेवार ढंग से इस प्रकार हुआ है कि कृषि क्षेत्र में समुचित धन निवेश करके किसानों की आय में निरन्तर बढ़ावा किया जाये। संयोग से इसकी शुरूआत संयुक्त पंजाब प्रान्त से ही स्व. मुख्यमन्त्री सरदार प्रताप सिंह कैरों के नेतृत्व में हुई और इसकी बदौलत उन्होंने 1963 में ही इस राज्य को भारत का 'यूरोप' कहलाने का गौरव दिला दिया। जब यह सब पंजाब में हो रहा था तो उससे पहले ही 1954 तक उत्तर प्रदेश के मुख्यमन्त्री स्व. गोबिन्द बल्लभ पन्त ने अपने राज्य के पहाड़ के तराई इलाकों में देश के बंटवारे के बाद पाकिस्तान से भारत आये पंजाबी शरणार्थियों को बसने के लिए वीरान पड़ी हुई जंगल समझी जाने वाली भूमि पर खेती करके गुजर-बसर करने का विकल्प दिया। धरती का सीना चीर कर सोना उगाने वाले पंजाबी किसानों ने इस धरती को कुछ वर्षों बाद लहलहाते खेतों में तब्दील करके 'जंगल में मंगल' कर डाला। इतना ही नहीं इस राज्य के पश्चिमी इलाके में गंगा नदी के 'खादर' की कटाव वाली जमीन को इन्हीं पंजाबी किसानों ने गन्ने के खेतों में बदल कर अन्य स्थानीय किसानों के सामने हैरत का माहौल बना दिया। मेरठ के करीब स्थित 'रामराज' कस्बा इसका जीता-जागता प्रमाण है।