सम्पादकीय

'अग्निपथ योजना और भारतीय सेना: एक नहीं कई चुनौतियां होंगी सरकार के सामने

Rani Sahu
17 Jun 2022 7:07 AM GMT
अग्निपथ योजना और भारतीय सेना: एक नहीं कई चुनौतियां होंगी सरकार के सामने
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भारत सरकार की ‘‘अग्निपथ’’ योजना भले ही सशत्र बलों की भर्ती नीति और सम्पूर्ण रक्षानीति में एक युग परिवर्तनकारी सुधार क्यों न हो लेकिन इसके विरोध में युवाओं में जो तूफान खड़ा हो रहा है

जयसिंह रावत

सोर्स -अमर उजाला

भारत सरकार की ''अग्निपथ'' योजना भले ही सशत्र बलों की भर्ती नीति और सम्पूर्ण रक्षानीति में एक युग परिवर्तनकारी सुधार क्यों न हो लेकिन इसके विरोध में युवाओं में जो तूफान खड़ा हो रहा है उसे देखते हुए ''अग्निपथ'' भी कृषि कानूनों की राह चलता हुआ नजर आ रहा है।
दरअसल, कृषि कानूनों के मामले में तो सरकार काफी समय तक आक्रामक मुद्रा में रहने के बाद रक्षात्मक मुद्रा में आई थी, लेकिन इस बार योजना की घोषणा करते ही सरकार और सत्ताधारी दल को अपने फैसले के पक्ष में अपनी पूरी राजनीतिक ताकत झोंकनी पड़ रही है।
खास बात यह है कि केन्द्र सरकार के मंत्री और भाजपा शासित प्रदेशों के मुख्यमंत्री भले ही 'अग्निपथ' के समर्थन में आ गए हों मगर सरकार में बैठा वह मंत्री जिसने थल सेनाध्यक्ष के रूप में सेना का नेतृत्व करने के साथ ही सेना की 42 साल तक सेवा की हो वह अग्निपथ के समर्थन में आने से संकोच कर रहा है, तो समझा जा सकता है कि इस योजना की स्वीकार्यता कितनी होगी। फौज के सेवानिवृत्त अफसरों का बहुमत भी इस योजना के पक्ष में नहीं है।
कोरोना बना भर्ती में बाधा
पाकिस्तान और चीन जैसे पड़ोसियों से भारत की सीमाओं को महफूज बनाए रखने के लिए हमारी तीनों सेनाओं में से थलसेना की नफरी 11.29 लाख, वायुसेना की 1.27 लाख और नेवी की 58 हजार है। थलसेना में ही हर साल हजारों सेनिक रिटायर होने पर उनकी जगह लगभग अनुमानतः लगभग 60 हजार नए सैनिक भर्ती भी होते हैं।
कोरोना महामारी के कारण पिछले दो साल भर्तियां बंद रहीं। अब महामारी से लगभग मुक्ति मिली तो नौजवानों को उम्मीद बंधी थी कि सेना में कम से कम एक लाख अवसर तो खुल ही जाएंगे। लेकिन सरकार 1 लाख के बजाय 46 हजार अग्निवीरों की भर्तियां लेकर आ गई और वह भी स्थाई नौकरी के लिए नहीं बल्कि बिना पेंशन और ग्रेच्युटी के 4 साल की नौकरी वाली। सरकार की मजबूरी चाहे जो भी हो मगर युवाओं के अरमानों पर पानी तो फिर ही गया।
अग्निपथ में परिकल्पना की गई है कि नया खून आने से सेना 4 से 5 साल तक युवा हो जाएगी। वर्तमान में थलसेना के ग्रुप-Y के जवान का अधिकतम सेवाकाल 19 साल या उसकी रिटायरमेंट उम्र 42 साल और ग्रुप एक्स वाले जवान का सेवाकाल 22 साल है।
इसी तरह नायक का सेवाकाल 24 साल, हवलदार का 26 साल, नायब सूबेदार का 30 साल, सूबेदार का 30 साल और सूबेदार मेजर का सेवाकाल 34 साल या उम्र सीमा 54 साल है, जो भी जवान फौज में भर्ती होता है उसकी अभिलाषा 34 साल वाले सूबेदार मेजर तक पहुंचने की होती है। लेकिन 4 साल की सिपाहीगिरी करने वाले अग्निवीरों के लिए सुबेदार तक पहुंचने के रास्ते तो बंद हो ही गए।
सरकार ने अग्निपथ योजना के माध्यम से सेना में भर्ती का शाॅर्टकट रास्ता तो निकाल लिया मगर स्थाई भर्ती को लेकर एक सवाल भी छोड़ दिया। सरकार के इस कदम को चरणबद्ध तरीके से सेना का आकार छोटा करने और उसकी जगह सेना को हाइटेक करने का भी माना जा रहा है। यह प्रस्ताव सरकार के पास लंबित पड़ा है। अगर सेना का आकार छोटा होता है तो सेना में रोजगार के अवसर स्वतः ही कम हो जाएंगे।
अग्निवीर की भूमिका और भारतीय सेना
देश के युवा सबसे छोटे रैंक के लिए नहीं बल्कि निरंतर तरक्की कर कमाण्ड पाने की अभिलाषा से सेना में भर्ती होते हैं। सेना में उनके त्याग, तपस्या, समर्पण और सर्वोच्च बलिदान के लिए हर समय तैयार रहने के संकल्प के अनुरूप जवान को भी कमाण्ड का अवसर दिया जाता है।
दरअसल, उसके लिए सेक्शन कमाण्डर के आगे प्लाटून कमाण्डर और फिर पूरी यूनिट को नियंत्रित करने के लिए सुबेदार मेजर का पद बनाया गया है। यही नहीं बीच में बीएचएम और क्र्वाटर मास्टर हवलदार के जैसे पद भी हैं जिन तक पहुंचने पर एक जवान गौरवान्वित होता है।
स्वर्गीय सीडीएस जनरल बिपिन रावत के पिता एक जवान के रूप में भर्ती हुए और लेफ्टिनेंट जनरल के पर से रिटायर हुए थे। अग्निवीर तो सेना के थोड़े दिनों के मेहमान होते हैं इसलिए उनके लिए ये सम्मान कल्पनातीत हो गए।
रक्षा मंत्रालय की विज्ञप्ति के अनुसार इन सैनिकों को ''अग्निवीर'' कहा जाएगा और वे सशस्त्र बलों में एक अलग रैंक बनाएंगे जो किसी भी मौजूदा रैंक से अलग होगी।
रक्षा मंत्रालय की विज्ञप्ति के अनुसार इन सैनिकों को ''अग्निवीर'' कहा जाएगा और वे सशस्त्र बलों में एक अलग रैंक बनाएंगे जो किसी भी मौजूदा रैंक से अलग होगी। - फोटो : अमर उजाला
सैनिक केवल भर्ती के द्वारा जुटाया ही नहीं बल्कि तैयार किया जाता है। ट्रेनिंग के दौरान उसे शरीर और मानसिक रूप से इतना मजबूत किया जाता है, ताकि वह हर मुश्किल का सामना कर सके। मोटिवेशन से उसके दिलो-दिमाग से मौत का खौफ निकाला जाता है ताकि वक्त आने पर वह मातृभूमि के लिए अपने कमांडर के आदेश पर सर्वोच्च बलिदान के लिए तैयार रहे। इतना ज्यादा मोटिवेशन 6 महीने में नहीं मिलता।
एक जवान को पूरे 28 हफ्तों की कठोर ट्रेनिंग के बाद ही सिपाही के तौर पर थलसेना में शामिल किया जाता है। इसके बाद भी माना जाता है कि एक जवान 5 या 6 साल की सेवा के बाद ही परफेक्ट सैनिक बन पाता है।
इसी प्रकार एक सैन्य अफसर 17 साल की उम्र के बाद 3 साल तक एनडीए खड़गवासला में प्रशिक्षण के साथ ग्रेजुएशन करता है और फिर तीनों सेनाओं की रेगुलर अकादमियों में एक साल का प्रशिक्षण पा कर सबसे शुरुआती रैंक का अफसर बनता है। सीधी भर्ती वाले जैंटलमैन कैडेंटों की ट्रेनिंग 18 महीने की होती है। लेकिन बेसिक ट्रेनिंग के बाद भी यह सिलसिला चलता रहता है।
एक लेफ्टिनेंट को 6 माह का यंग ऑफिसर्स कोर्स करना होता है। उसके बाद उसे 2 दिन का बेहद कठिन कमांडो कोर्स करना होता है। यही नहीं उसे अगले पदों तक पहुंचने के लिए निरंतर कोर्स करने होते हैं। लेकिन ''अग्निवीरों'' को केवल 6 माह की ट्रेनिंग दी जाएगी। सेना के ट्रेनी जवान को रंगरूट कहा जाता है, जिसके बारे में धारणा है कि उसे जितना कसा जाएगा वह उतना ही निखरेगा। लेकिन ये अग्निवीर कच्चे सिपाही होंगे। वे न तो पूरी तरह प्रशिक्षित होंगे और ना ही पूरे सैनिक होंगे।
''अग्निवीर'' और सेना की चुनौतियां
रक्षा मंत्रालय की विज्ञप्ति के अनुसार इन सैनिकों को ''अग्निवीर'' कहा जाएगा और वे सशस्त्र बलों में एक अलग रैंक बनाएंगे जो किसी भी मौजूदा रैंक से अलग होगी। थलसेना में जवान को रायफल मैन, सिपाही, गनर, पैरा ट्रूपर, ग्रिनेडियर, सैपर और गार्डसमैन आदि के नाम से संबोधित किया जाता है।
नेवी में उन्हें सीमैन और वायुसेना में एयरमैन कहा जाता है। इस तरह देखा जाए तो तीनों सेनाओं में एक नया काडर शुरू हो जाएगा, जिसे समानांतर ही कहा जा सकता है।
ये नए ''अग्निवीर'' रेगुलर यूनिटों में कैसे एडजस्ट हो पाएंगे? नियमित सैनिकों के साथ इनका और इनसे नियमित सैनिकों का व्यवहार कैसा होगा? चूंकि ये केवल 4 साल के सैनिक हैं इसलिए अपने वरिष्ठों के साथ इनका तालमेल और अनुशासन कैसा होगा, इसे लेकर भी भारी आशंकाएं ही नहीं बल्कि भय भी है। आजकल अनुशासनहीनता के मामले बढ़ रहे हैं। पैरामिलिट्री में आपस में गोलीबारी की कई घटनाएं सामने आ रही है। फौज को ''प्रोफेशन ऑफ आम्र्स'' कहा जाता है।
सैनिक का सबसे करीबी दोस्त या रिश्तेदार उसका हथियार ही होता है। सेना की यूनिटों में नए हथियारबंद काडर का खड़ा होना कई आशंकाओं को जन्म देता है। इन अग्निवीरों को थलसेना में सेक्शन या पलाटून स्तर पर एक एनसीओ और जेसीओ या वायुसेना में कारपोरल, सार्जेंट या वारंट आफिसर तथा नेवी में पेटी आफिसर, चीफ पेटी आफिसर या मास्टर चीफ पेटी आफिसर ही कमाण्ड करेगा, जोकि रेगुलर सेना के होंगे।
सरकार इस योजना को सेना और सेना भर्ती में युगान्तरकारी सुधार मान रही है। लेकिन इसके पीछे सरकार की मंशा सेना का आकार छोटा करने के साथ ही पेंशन आदि से लाखों करोड़ बचाने की भी है।
सरकार इस योजना को सेना और सेना भर्ती में युगान्तरकारी सुधार मान रही है। लेकिन इसके पीछे सरकार की मंशा सेना का आकार छोटा करने के साथ ही पेंशन आदि से लाखों करोड़ बचाने की भी है। - फोटो : Defense Ministry
सेना की गोपनीयता पर आशंका भी उठ रही है, क्योंकि विगत् में दुश्मन द्वारा हमारे सैनिकों को हनी ट्रैप आदि में फंसाने की घटनाएं सामने आ चुकी हैं। जब इतने मोटिवेटेड और पक्के सैनिक को फंसाया जा सकता है तो 21 साल से कम उम्र के कच्चे सैनिकों को फंसाने में और भी असानी हो जाएगी।
खासकर 4 साल के बाद की बेरोजगारी के दिनों में वे खुद ही मकड़जाल में फंस सकते हैं। तुषार गांधी जैसे आलोचकों द्वारा अग्निवीरों को आरएसएस के मिलिशिया बताए जाने पर भरोसा न भी किया जाए तो भी धर्म, जाति और भाषा के नाम पर जो उग्रता पनप रही है, उसे भी नजरंदाज नहीं किया जा सकता। स्वर्ण मंदिर को खालिस्तानियों का दुर्ग बनाने वाला सुबेग सिंह आखिर फौजी ही तो था।
हमारे यहां सेना की विभिन्न यूनिटों से पीढ़ियों का भावनात्मक लगाव होता है। कोई सैनिक रिटायर होता है तो भर्ती होने पर उसके बेटे को अपने पिता की ही यूनिट दी जाती है। इसी तरह एक अफसर के बेटे को भी पिता की यूनिट एलॉट की जाती है, क्योंकि उस यूनिट से सैनिक का पीढ़ियों का भावनात्मक लगाव होता है। अग्निपथ की 4 साला योजना पीढ़ियों के उस लगाव की कड़ी को तोड़ देगी। फौज में भावनात्मक लगाव देशभक्ति, बहादुरी और सर्वोच्च बलिदान के लिए मोटिवेट करता है।
सरकार इस योजना को सेना और सेना भर्ती में युगान्तरकारी सुधार मान रही है। लेकिन इसके पीछे सरकार की मंशा सेना का आकार छोटा करने के साथ ही पेंशन आदि से लाखों करोड़ बचाने की भी है। केन्द्र और राज्य सरकारों ने अपने कर्मचारियों की पेंशन 2005 में ही बंद कर दी थी। लेकिन सेना और अर्द्धसैनिक बलों की पेंशन बंद करना आसान न था। वर्ष 2022-23 के 5,25,116 करोड़ के रक्षा बजट में पेंशन मद में 1,19,96 करोड़ का प्रावधान किया गया है। बचत की भावना तो अच्छी ही है लेकिन राष्ट्रीय सुरक्षा के साथ बचत के नाम पर समझौता नहीं किया जा सकता।
Rani Sahu

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