सम्पादकीय

Agneepath scheme : सैन्य आधुनिकीकरण का अग्निपथ, चार साल की अवधि और भविष्य की संभावनाएं

Rani Sahu
17 Jun 2022 7:11 AM GMT
Agneepath scheme : सैन्य आधुनिकीकरण का अग्निपथ, चार साल की अवधि और भविष्य की संभावनाएं
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सैन्य आधुनिकीकरण का अग्निपथ, चार साल की अवधि और भविष्य की संभावनाएं

हर्ष कक्कड़

सोर्स -अमर उजाला
केंद्र सरकार ने हाल ही में चार साल की अवधि के लिए लगभग 45-50,000 युवाओं को सशस्त्र बलों में शामिल करने की योजना अग्निपथ शुरू करने की घोषणा की है। इन सैनिकों को अग्निवीर कहा जाएगा। यह प्रधानमंत्री कार्यालय की परिकल्पना है और उसी के माध्यम से इसे आगे बढ़ाया जा रहा है। चार साल की सेवा अवधि खत्म होने के बाद अग्निवीरों को एकमुश्त करीब 12 लाख रुपये मिलेंगे, जिसके लिए उन्हें और सरकार, दोनों को बराबर अंशदान करना पड़ेगा। इसे कर मुक्त बताया गया है। इनमें से 25 फीसदी जवानों को फिर से स्थायी आधार पर सेना में नियुक्ति मिलेगी।
उनकी पिछली सेवा की गिनती नहीं होगी और वे नए सिरे से काम शुरू करेंगे। मौजूदा भर्ती प्रणाली को अग्निपथ में बदलने के पीछे मुख्य मंशा पेंशन और वेतन खर्च को कम करना है, जिसने रक्षा आधुनिकीकरण को प्रभावित किया है। इस योजना के तहत भविष्य में होने वाली सभी भर्तियां वर्तमान मानदंड के विपरीत मात्र चार साल के लिए होंगी। इसे शुरू करने के पीछे एक और कारण बताया गया है कि जो लोग अल्प अवधि के लिए सेना में भर्ती होने के इच्छुक हैं, उन्हें मौका देना है।
यह पूरी तरह से सच नहीं हो सकता, क्योंकि जवानों के रूप में शामिल होने के इच्छुक लोग पेंशन के साथ सुरक्षित जीवन चाहते हैं। जैसा कि रक्षा राज्यमंत्री ने बताया, इस योजना से सशस्त्र बलों की औसत आयु घट जाएगी। यह सच है, क्योंकि यह योजना अगले छह वर्षों में औसत आयु को 32 से घटाकर 26 कर देगी। सरकार द्वारा शुरू की जाने वाली किसी भी नई योजना की अपनी खूबियां और खामियां होती हैं। निर्धारित उद्देश्यों को पूरा करने के अलावा जो लाभ होते हैं, उनमें अनुशासित युवाओं का एक अतिरिक्त पूल निर्माण शामिल है, जिन्हें आपात स्थिति में सेना में शामिल होने के लिए बुलाया जा सकता है।
ऐसा माना गया है कि अल्पावधि के लिए शामिल होने वाले व्यक्ति प्रभावी सैनिक नहीं हो सकते, पर यह पूरी तरह से गलत हो सकता है। अग्निवीर के रूप में शामिल होने वाले स्वयंसेवक होंगे, न कि प्रतिनियुक्त सैनिक, जैसा कि चीन या रूस और किसी अन्य देश के समर्पित सैनिक होते हैं। निस्संदेह वे पहले से सेवा में लगे लोगों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर लड़ेंगे। इस योजना की एक बड़ी खामी अल्पकालिक सेवा अवधि है, जिसके बाद युवाओं को फिर से असुरक्षा का सामना करना पड़ेगा।
चार साल के नियमित, संरक्षित जीवन अनुभव के बाद उन्हें फिर से रोजगार के लिए धक्के खाने को छोड़ दिया जाएगा। इस दौरान विकसित हुई उनकी मान्यताएं, धारणाएं और इच्छाएं धराशायी हो जाएंगी। यह डर सेवा के दौरान उन्हें परेशान करेगा, जो उनके कामकाज पर नकारात्मक असर डालेगा। सरकार की ओर से उन्हें जो राशि दी जाएगी, उस पर वे कब तक गुजारा करेंगे? उनके पास एक ही चीज बची रहेगी और वह है सपना, तथा जिन लोगों के साथ वे काम करेंगे, उनसे संपर्क।
केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बलों (सीएपीएफएस) या राज्य पुलिस बल समेत किसी भी अन्य सरकारी सेवा से इसकी तुलना कीजिए। इन नौकरियों में राष्ट्रीय पेंशन योजना के तहत उन्हें पेंशन मिलती है, साठ साल तक उनकी नौकरी सुरक्षित रहती है और सशस्त्र बलों की तुलना में उनका जीवन आसान होता है। ऐसे में सभी युवाओं की पहली पसंद सशस्त्र बल की तुलना में कोई अन्य संगठन होगा। जाहिर है, जो लोग हर जगह से खारिज कर दिए जाएंगे और रोजगार के लिए परेशान होंगे, केवल वही चार साल की इस जोखिम भरी नौकरी के लिए कोशिश करेंगे।
अन्य खामियों में मुख्य रूप से तकनीकी संवर्ग के लिए प्रशिक्षण में कमी शामिल है। कुशल क्षेत्रों में बुनियादी प्रशिक्षण के बाद लंबे समय तक काम करते हुए प्रशिक्षण दिया जाता है। कार्य में महारत हासिल करने में वर्षों लग जाते हैं। चार साल के अंत में जब जवान उपकरणों की बारीकियों को भी ठीक से नहीं समझे होंगे, उन्हें सेवा से बाहर होने के लिए तैयार रहना पड़ेगा। संगठन के लिए यह नुकसान चिरस्थायी होगा और यह उपकरणों की युद्ध क्षमता को प्रभावित करेगा। अब तक पूरी पेंशन योग्य सेवा के लिए अकेले सेना सालाना 50,000 से अधिक की भर्ती करती थी।
वर्तमान योजना के तहत, तीनों सेवाओं को मिलाकर चार साल की अवधि के लिए लगभग 40-45,000 जवानों की भर्ती की जाएगी। स्थायी भर्ती समाप्त हो गई है। गेम चेंजर का दावा करने वाला यह पैटर्न निराशाजनक साबित हुआ है। इसके खिलाफ बिहार समेत अनेक राज्यों में विरोध प्रदर्शन शुरू हो गया है, जो और भी फैलेगा। केंद्रीय गृहमंत्री ने घोषणा की है कि अग्निवीरों को सीएपीएफएस भर्ती में प्राथमिकता दी जाएगी। लेकिन प्राथमिकता नौकरी की गारंटी नहीं होती।
उन्हें पुनः रोजगार उपलब्ध कराने के लिए मंत्रालय एवं मुख्यालय द्वारा किए जा रहे मदद के वादे सिर्फ वादे ही रह जाएंगे। मजबूर होकर युवा खुद को इससे दूर रखेंगे। यदि योजना का वास्तव में लाभ होता और सरकार को विश्वास था कि यह सफल होगी, तो उसे एक पायलट परियोजना शुरू करनी चाहिए थी, इसके परिणाम प्रदर्शित किए जाने चाहिए थे और इसे पूरे दिल से लागू किया जाना चाहिए था। संभवतः हर क्षेत्र में विफलता और तार्किक आलोचना का भय था, जिसके चलते सरकार ने आधी-अधूरी जानकारी सार्वजनिक करते हुए इसे हर स्तर पर आगे बढ़ाने की कोशिश की है।
यह योजना सरकारी खर्च को कम करके बलों को लाभ पहुंचा सकती है, पर यह सेना में शामिल होने के इच्छुक लोगों के खिलाफ होगी। हमें खुद से पूछना चाहिए कि क्या हम युवाओं को चार साल तक सेना से जोड़कर, जो उनके जीवन के सर्वश्रेष्ठ समय होंगे, उनका शोषण कर, उन्हें रोजगार देने का वादा पूरा न कर, और अंततः उन्हें उनके हाल पर छोड़कर, अच्छा करेंगे। फैसला तो सरकार को ही करना है।
Rani Sahu

Rani Sahu

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