सम्पादकीय

संस्‍कृति के नवजागरण का एजेंडा, देश को पुरानी पहचान और गौरव दिलाने की तरफ सरकार

Gulabi
3 Jan 2022 12:26 PM GMT
संस्‍कृति के नवजागरण का एजेंडा, देश को पुरानी पहचान और गौरव दिलाने की तरफ सरकार
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प्रत्येक राष्ट्र की अपनी एक संस्कृति होती है। भारतीय संस्कृति राष्ट्र की सामूहिक ज्ञान चेतना के आत्म-परिष्कार का सुफल है
हृदयनारायण दीक्षित। प्रत्येक राष्ट्र की अपनी एक संस्कृति होती है। भारतीय संस्कृति राष्ट्र की सामूहिक ज्ञान चेतना के आत्म-परिष्कार का सुफल है और विश्व को परिवार जानने की अनुभूति। मानव व्यवहार और अनुभूति का सुसंस्कार संस्कृति है। संस्कृति के कारण हम अद्वितीय राष्ट्र हैं, लेकिन विदेशी सत्ता के दौरान यहां संस्कृति और सांस्कृतिक प्रतीकों का अपमान हुआ। सोमनाथ, अयोध्या, काशी और मथुरा के मंदिर सहित अनेक मंदिर ध्वस्त किए गए। भारतीय ज्ञान परंपरा को अंधविश्वास कहा गया। भारतीय जीवन शैली के प्रति अनास्था पैदा की गई। पश्चिम से आयातित 'सेक्युलर' दृष्टिकोण ने भारतीय परंपरा को खारिज करने का पाप किया। प्राचीन भारतबोध धकियाया जा रहा था। हिंदू होना अपमानजनक था। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भारतबोध के सांस्कृतिक विचार प्रवाह को नेतृत्व दिया। कथित प्रगतिशील सेक्युलर व वामपंथी तत्व बिलबिला रहे हैं। काशी विश्वनाथ कारिडोर के उद्घाटन में प्रधानमंत्री ने भारतबोध का बिगुल फूंक दिया है। इसकी दिव्यता से खीझे वामपंथी सेक्युलर प्रधानमंत्री पर हमलावर हैं।
भारत में दर्शन, विज्ञान, शोध और बोध की प्राचीन परंपरा रही है। यह सामान्य राष्ट्र राज्य नहीं है। छद्म सेक्युलरों के अनुसार प्रधानमंत्री ने काशी में धार्मिक कार्यक्रम में हिस्सा लेकर संविधान की सेक्युलर भावना का अपमान किया है। सेक्युलर अभारतीय विचार है। यूरोप में ईसाई चर्च और राजव्यवस्था के बीच लंबे संघर्ष से सेक्युलरवाद जन्मा। उसमें भौतिक विषय सेक्युलर कहे गए। इस दृष्टि से सेक्युलर का अर्थ सांसारिक भौतिक है, मगर भारतीय राजनीति ने सेक्युलर शब्द को हिंदू विरोध के लिए इस्तेमाल किया। इस दृष्टिकोण में भारतीय संस्कृति के सभी प्रतीक गैर-सेक्युलर हैं।
भारत में नेताओं का मस्जिद जाना, इस्लामिक पर्वो पर खास तरह की टोपी पहनना सेक्युलरवाद है। प्रधानमंत्री मोदी 2015 में संयुक्त अरब अमीरात दौरे पर मस्जिद भी गए थे। तब भारत में कुछ प्रतिक्रियाएं बहुत दयनीय थीं। एक वरिष्ठ मुफ्ती कादरी ने कहा, 'प्रधानमंत्री होने के बाद मोदी ने अपने पद की जिम्मेदारियां समझ ली हैं।' यानी मोदी मस्जिद न जाते तो गैर-जिम्मेदार थे। भारतीय मुस्लिम विकास परिषद के चेयरमैन ने तो यहां तक कहा कि, 'मस्जिद जाना एक और राजनीतिक स्टंट है। मोदी वास्तव में भारत को सेक्युलर सिद्ध करना चाहते थे तो उन्हें भारत की किसी मस्जिद में जाना चाहिए था।' सेक्युलर होने का यह तरीका मजेदार है। मस्जिद जाइए, सेक्युलर हो जाइए।
मंदिर भारतीय चिंतन, जीवनशैली और आस्तिकता के शिखर कलश है। इन्हीं मंदिरों को इस्लामी हमलावरों ने ध्वस्त किया था। स्वतंत्र भारत में सेक्युलरों ने मंदिर जाना ही सांप्रदायिक बताया। सोमनाथ का विध्वंस हृदयविदारक था। भारत ने इसका पुनर्निर्माण किया। मंदिर के ऐतिहासिक समारोह में तत्कालीन राष्ट्रपति डा. राजेंद्र प्रसाद जाना चाहते थे। तब प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने सेक्युलरवाद के आधार पर मना किया, मगर राष्ट्रपति जी गए। प्रधानमंत्री नेहरू की दृष्टि में एक धार्मिक केंद्र। प्रधानमंत्री मोदी ने श्रीराम जन्मभूमि मंदिर के शिलान्यास में भी हिस्सा लिया। उस कार्यक्रम को सारी दुनिया ने सराहा, लेकिन सेक्युलरपंथी इसकी निंदा कर रहे थे। हम भारत के लोग मंदिर प्रिय हैं। मंदिर आश्वस्ति देते हैं। निराशा में आशा भरते हैं, लेकिन सेक्युलरवादियों की दृष्टि में मंदिर जाना सांप्रदायिकता है।
सेक्युलर पंथी धर्म, रिलीजन और मजहब में फर्क नहीं करते। वे भारत के धर्म को रिलीजन मानते हैं। रिलीजन और मजहब देवदूतों की उद्घोषणा हैं, मगर धर्म प्रकृति की व्यवस्था है। भारत के लोगों की जीवनशैली है। प्रकृति स्वयं पूर्ण नियमों का अनुसरण करती है। प्रकृति को नियमबद्ध देखते हुए वैदिक पूर्वजों ने मानवता के हित में नियम बनाए। धर्म का विकास हुआ। धर्म जड़ आचार संहिता नहीं है। किसी देवदूत की उद्घोषणा नहीं है।
हिंदू धर्म संहिता विज्ञान सिद्ध है। धर्म परंपराओं के वैज्ञानिक विवेचन और विश्लेषण पर कोई रोक नहीं है। प्रधानमंत्री के काशी कार्यक्रम का विरोध करने वाले वामपंथी संविधान की उद्देशिका में 'सेक्युलर' शब्द का उल्लेख करते हैं। वे भूल जाते हैं कि इंदिरा गांधी ने आपातकाल के दौरान उद्देशिका में सेक्युलर शब्द जुड़वाया, जो मूल संविधान में नहीं था। अनुच्छेद 366 में 30 महत्वपूर्ण शब्दों की परिभाषाएं हैं, लेकिन सेक्युलर शब्द की परिभाषा नहीं है। राजनीति में सेक्युलर का व्यावहारिक अर्थ हिंदू विरोध है।
सेक्युलरवादियों ने कई फर्जी मान्यताएं गढ़ी हैं। उनके प्रभाव में भारत के एक वर्ग में हीनभाव पैदा हुआ। आर्यो को विदेशी हमलावर बताना भी सेक्युलरवाद के गर्भ से पैदा अवैध विचार है। विंसेट स्मिथ और क्रिस्टेन लार्सेन सहित तमाम इतिहासकारों ने आर्य आक्रमण सिद्धांत को महत्व दिया। ऐसा इतिहास ब्रिटिश साम्राज्यवाद का समर्थक और भारत विरोधी है। उनके अनुसार आर्य विदेशी हैं। उनके पहले द्रविड़ भी बाहर से आए और शक, यवन, हूण और कुषाण भी बाहर से आए। मध्यकाल में तुर्क और मंगोल भी बाहर से आए। फिर अंग्रेज आए।
ऐसे इतिहासकारों ने सिद्ध किया कि भारत की अपनी कोई संस्कृति नहीं। भारत का इतिहास विदेशी शासकों का ही इतिहास है। आर्य आक्रमण के सिद्धांत का उद्देश्य ब्रिटिश सत्ता का औचित्य सिद्ध करना और भारतवासियों को आत्महीन बताना था। यह निरा झूठ है। भारत में वैदिक काल से लेकर संपूर्ण साहित्य और श्रुति-स्मृति में आर्यो का आक्रमण नहीं मिलता। विदेशी यात्रियों ह्वेनसांग और फाह्यान के वृत्तांतों में भी नहीं। मेगस्थनीज की इंडिका में भी नहीं।
भारत अब स्वाधीनता का अमृत उत्सव मना रहा है। भारत के लोग इतिहास और संस्कृति के प्रति सजग हो रहे हैं। नए संकल्पों में सेक्युलरवाद जैसी सड़ी-गली मान्यताओं से छुटकारा पाने की भी आवश्यकता है। नए भारत का उदय हो रहा है। प्रधानमंत्री ने अपने अभियानों से सिद्ध कर दिया है कि धर्म-संस्कृति की पक्षधरता सांप्रदायिकता नहीं है। मंदिर जाना, तिलक लगाना रूढ़िवादिता नहीं है। गंगा जैसी पवित्र नदियों को प्रणाम करना पोंगापंथ नहीं है। अब हिंदू प्रतीकों से दूर रहकर राजनीतिक क्षेत्र में भी कोई संभावना नहीं है। राहुल गांधी भी हिंदू होने का प्रचार कर रहे हैं। स्वाधीनता का अमृत महोत्सव और नए साल में हिंदू संस्कृति का नवजागरण राष्ट्र जीवन का एजेंडा होना चाहिए। इसी में भारत की सर्वागीण प्रगति है।
(लेखक उत्तर प्रदेश विधानसभा के अध्यक्ष हैं)
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