सम्पादकीय

महामारी के विरुद्ध

Subhi
19 July 2022 5:16 AM GMT
महामारी के विरुद्ध
x
यह निस्संदेह सरकार की बड़ी उपलब्धि है कि दो सौ करोड़ से ऊपर लोगों को कोरोनारोधी टीके की खुराक लगा दी गई। चीन के बाद भारत दूसरा देश है, जिसने इतने कम दिनों में यह बड़ी कामयाबी हासिल की है।

Written by जनसत्ता: यह निस्संदेह सरकार की बड़ी उपलब्धि है कि दो सौ करोड़ से ऊपर लोगों को कोरोनारोधी टीके की खुराक लगा दी गई। चीन के बाद भारत दूसरा देश है, जिसने इतने कम दिनों में यह बड़ी कामयाबी हासिल की है। नब्बे फीसद लोगों का पूर्ण टीकाकरण हो चुका है। इसके साथ ही जिन लोगों को दोनों खुराक लिए छह माह से अधिक हो चुके हैं, उन्हें एहतियाती खुराक भी लगाई जा रही है।

टीके की पर्याप्त खुराक मौजूद है, इसलिए अब शुरुआती दिनों की तरह अफरा-तफरी की स्थिति बिल्कुल नहीं है। कोरोना महामारी स्वास्थ्य के मोर्चे पर सारी दुनिया के सामने एक बड़ी चुनौती बन कर उभरी। इसका विषाणु तेजी से अपना स्वरूप बदलता और अधिक घातक रूप में सामने आता रहा। शुरुआती चरण में इसके इलाज के माकूल साधन मौजूद न होने के चलते दुनिया के अनेक देशों ने पूर्णबंदी का कदम उठाया।

चिकित्सा विशेषज्ञों ने जोर दिया कि लोगों की प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाई जा सके, तो इस महामारी से पार पाना आसान हो जाएगा। मगर इसका टीका तैयार करना आसान काम नहीं था। उसकी प्रक्रिया लंबी चलने वाली थी। मगर तमाम देशों के वैज्ञानिकों ने जुट कर कोरोनारोधी टीके पर काम करना शुरू किया और जल्दी ही इसे बना लिया। भारत ने भी अपने प्रयासों से इस मामले में उल्लेखनीय कामयाबी हासिल की।

हालांकि कोरोना की दूसरी लहर के वक्त तक कोरोनारोधी टीके लगने शुरू हो गए थे, मगर देश की आबादी के अनुपात में उनका उत्पादन नहीं हो पा रहा था, इसलिए शुरुआती चरण में अफरा-तफरी का माहौल बना रहा। विपक्षी दलों ने इसे राजनीतिक रंग देने का भी प्रयास किया। मगर सरकार ने जल्दी ही न सिर्फ अपने नागरिकों के लिए टीके उपलब्ध कराए, बल्कि दूसरे जरूरतमंद देशों को भी उपलब्ध कराए।

दूसरी लहर ऐसी घातक साबित हुई कि लाखों लोगों की जान चली गई, मगर उस दौरान देखा गया कि जिन लोगों ने कोरोनारोधी टीके की एक भी खुराक ले रखी थी, उन पर संक्रमण का बहुत बुरा प्रभाव नहीं पड़ने पाया। सबसे अधिक जोखिम में काम कर रहे चिकित्साकर्मियों पर कोरोनारोधी टीकों का प्रत्यक्ष सकारात्मक प्रभाव देखा गया।

जिन लोगों को पहले से स्वास्थ्य संबंधी गंभीर समस्याएं थीं, उन्हें भी टीकों की वजह से इसके संक्रमण को झेलने की ताकत मिली। इन सकारात्मक प्रभावों से स्वाभाविक ही सरकार और चिकित्सा जगत में उत्साह देखा गया और टीकों के उत्पादन पर जोर दिया गया। जल्दी ही टीकों की खुराक दूरदराज के केंद्रों तक पहुंचाई और लगाई जा सकी। किशोरों को भी टीके लगाने की शुरुआत हो सकी।

ऐसे सकारात्मक प्रभाव के बावजूद कुछ राजनीतिक लोग टीकाकरण अभियान को सियासी नजर से देखते रहे, जिसके चलते कई लोग गुमराह हुए। जिस थोड़ी आबादी को अभी टीके नहीं लग पाए हैं, वह टीकों की अनुपलब्धता की वजह से नहीं, बल्कि उनके भ्रम और जिद की वजह से नहीं लग पाए हैं। हालांकि टीकाकरण का मतलब यह नहीं कि कोरोना विषाणु को पनपने से रोका जा सकता है।

कोरोना का प्रकोप अभी समाप्त नहीं हुआ है। हमारे देश में अब भी कोरोना संक्रमण की दर छह फीसद से ऊपर है। केरल और महाराष्ट्र जैसे राज्य अब भी इसकी जद में सबसे ज्यादा हैं। रोज पंद्रह हजार से अधिक लोग संक्रमित हो रहे हैं, कई मौतें भी हो रही हैं। ऐसे में इस विषाणु से लड़ने का सबसे जरूरी हथियार सतर्कता है। कोरोनारोधी टीके की जरूरत अब भी बनी हुई है।


Next Story