सम्पादकीय

दावों के बरक्स

Subhi
13 Sep 2022 5:06 AM GMT
दावों के बरक्स
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उत्तर प्रदेश में जघन्य अपराधों के जैसे मामले सामने आ रहे हैं, उससे यही लग रहा है कि वहां आपराधिक मानस वाले लोग एक बार फिर बेखौफ होने लगे हैं। यों सरकार की ओर से अब भी इस दावे में कमी नहीं आई है

Written by जनसत्ता; उत्तर प्रदेश में जघन्य अपराधों के जैसे मामले सामने आ रहे हैं, उससे यही लग रहा है कि वहां आपराधिक मानस वाले लोग एक बार फिर बेखौफ होने लगे हैं। यों सरकार की ओर से अब भी इस दावे में कमी नहीं आई है कि वह राज्य को अपराधियों और अपराध से मुक्त कर देगी। लेकिन आए दिन जिस तरह गंभीर अपराध की घटनाएं सामने आ रही हैं, उससे सरकारी दावों की हकीकत का पता चलता है।

शनिवार को एक वीडियो के सुर्खियों में आने के बाद जिस तरह उत्तर प्रदेश के पीलीभीत में एक दलित पृष्ठभूमि की नाबालिग लड़की से सामूहिक बलात्कार का आरोप और उसके बाद उसे जिंदा जला देने की खबर सामने आई, उससे ऐसा लगता है कि आपराधिक मानस वाले लोगों के भीतर कानून का कोई खौफ नहीं रह गया है।

अंदाजा इससे लगाया जा सकता है कि दो युवकों ने एक दलित परिवार के घर में घुस कर इस वारदात को अंजाम दिया और ऐसा करने के बाद वे आसानी से फरार हो गए थे। अब इस मामले में दो आरोपियों को गिरफ्तार कर लिया गया है, लेकिन सवाल है कि आखिर इतनी जघन्य घटना में लिप्त आरोपियों के दिमाग पर कानून का खौफ क्यों नहीं था कि वे करने से पहले हजार बार सोचते!

इस तरह की यह कोई अकेली वारदात नहीं है, जिसे उदाहरण बनाने को अतिरेक कहा जाए। यों कोई एक घटना भी सरकार के उन दावों प सवालिया निशान होती है, जिसमें वह अक्सर जनता और खासतौर पर महिलाओं को हर स्तर पर सुरक्षित माहौल देने की बात करती है, मगर जमीनी हकीकत कुछ और होती है।

उत्तर प्रदेश में आए दिन होने वाली आपराधिक घटनाएं यह बताती हैं कि वहां घोषित तौर पर तो अपराधी तत्त्वों के खिलाफ ऐसी सख्त कार्रवाई की जा रही है कि वे सिर न उठा सकें, मगर रोजमर्रा होने वाली वारदात इसके उलट तस्वीर दिखाती है। पीलीभीत में ही एक अन्य मामले में बारहवीं कक्षा में पढ़ने वाली एक नाबालिग दलित छात्रा से सामूहिक बलात्कार की घटना दर्ज की गई।

इस मामले में भी दो आरोपी युवक लड़की को घर से उठा कर ले गए और सामूहिक बलात्कार की घटना को अंजाम दिया। चौबीस घंटे के भीतर यह सिर्फ एक जिले की घटना है। आए दिन राज्य भर में अलग-अलग अपराधों की आने वाली खबरें बताती हैं कि सरकार और पुलिस अपनी ड्यूटी और उससे उभरने वाले प्रभाव को पैदा करने में नाकाम हो रही हैं।

गौरतलब है कि राज्य में जब समाजवादी पार्टी की सरकार थी, तब भारतीय जनता पार्टी का सबसे बड़ा मुद्दा राज्य में होने वाले अपराध और उनके खिलाफ कार्रवाइयों में नरमी का ही था। इस मुद्दे को सबसे ज्यादा अहमियत मिली और राज्य में भाजपा की सरकार का गठन हुआ। शुरुआती दौर में अपराधों को रोकने और अपराधियों पर लगाम लगाने की घोषणा और सख्ती दिखी भी।

लेकिन सच यह है कि आज भी हालात में कोई बड़ा सुधार नहीं है। राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो की रिपोर्ट में पिछले साल के आंकड़ों के विश्लेषण के मुताबिक भी महिलाओं के खिलाफ अपराध, दहेज हत्या के साथ-साथ दलितों के उत्पीड़न के मामले में उत्तर प्रदेश अन्य राज्यों के मुकाबले ज्यादा दयनीय स्थिति में है।

आखिर क्या वजह है कि समाज में अपेक्षया कमजोर माने जाने वाले तबकों के आम जीवन में वैसी सुरक्षा और सहजता नहीं दिखती, जिसका दावा अक्सर सरकार की ओर से किया जाता है। दलितों और महिलाओं के खिलाफ अपराधों पर लगाम लगाए बिना क्या कोई भी सरकार खुद को जनता की हितैषी होने का दावा करने की स्थिति में होती है?


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