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- प्रदूषण के विरुद्ध
जनता से रिश्ता वेबडेस्क। पिछले कई सालों से दिल्ली और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र यानी एनसीआर के प्रदूषण की समस्या पर लगातार सरकारें चिंता जताती रही हैं, इसे दूर करने के लिए तमाम नियम-कायदे लागू किए जाते रहे, लेकिन हर अगले साल स्थिति बिगड़ती ही गई। खासतौर पर ठंड के कुछ महीनों के दौरान वायु प्रदूषण की वजह से दिल्ली-एनसीआर की स्थिति कैसी हो जाती है, यह किसी से छिपा नहीं है।
यह हालत तब है जब प्रदूषण पर काबू पाने के लिए कई अलग-अलग संस्थाएं और एजेंसियां काम कर रही हैं। लेकिन केंद्र सरकार का मानना है कि इस समस्या से निपटने में इन एजेंसियों की भूमिका अपेक्षा के अनुरूप साबित नहीं हो पा रही है, इसलिए अब नई पहलकदमी और प्रदूषण पर काबू पाने के लिए ज्यादा सख्ती की जरूरत है।
इसी क्रम में बुधवार को राष्ट्रपति ने दिल्ली-एनसीआर और इससे सटे राज्यों- हरियाणा, पंजाब, राजस्थान और उत्तर प्रदेश में वायु प्रदूषण को रोकने, उपाय सुझाने और उनकी निगरानी के लिए एक आयोग बनाने संबंधी केंद्र सरकार की ओर जारी अध्यादेश को मंजूरी दे दी है। नया आयोग अब पहले से काम कर रहे पर्यावरण प्रदूषण नियंत्रण एवं संरक्षण प्राधिकरण की जगह लेगा।
इस आयोग के पास प्रदूषण संकट को समाप्त करने के लिए दिशा-निर्देश जारी करने, शिकायतों के आधार स्वत: संज्ञान लेने, बिजली आपूर्ति रोकने या किसी संस्था या उद्योग पर कार्रवाई करने का अधिकार होगा। अध्यादेश में यह भी प्रावधान किया गया है कि प्रदूषण के लिए दोषी पाए जाने पर पांच साल तक कैद की सजा हो सकती है और उस पर एक करोड़ रुपए तक का जुर्माना लगाया जा सकता है।
यह आयोग पराली जलाने के मसले के साथ-साथ वाहनों और धूलकणों से होने वाले प्रदूषण और अन्य तमाम कारकों को देखेगा, जिससे कि दिल्ली और एनसीआर में वायु गुणवत्ता खराब होती रही है। यानी कहा जा सकता है कि केंद्र सरकार इस मसले से निटपने के लिए अब तक काम कर रही तमाम संस्थाओं के काम से संतुष्ट नहीं थी, इसलिए यह नई व्यवस्था की गई है।
लेकिन सवाल है कि प्रदूषण नियंत्रण पर केंद्रित कई और अलग-अलग संस्थाएं आखिर किन वजहों से इस समस्या से निपटने में अपेक्षित स्तर पर कामयाब नहीं हो सकीं और क्या नया आयोग उस तरह की बाधाओं से मुक्त होगा!
दरअसल, हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि वायु प्रदूषण के कारण लोग परेशान हैं और इसे रोकने के लिए कारगर कदम उठाए जाएं। हालांकि किसी अदालत की ओर से इस तरह की यह कोई पहली टिप्पणी नहीं है। बल्कि प्रदूषण की समस्या पर काबू नहीं पाने के कारण अदालतों में बेहद सख्त टिप्पणियां सामने आ चुकी हैं।
इसके बावजूद लंबे समय से यह देखा जा रहा है कि हर साल ठंड के मौसम में वायुमंडल के घनीभूत होने के साथ ही प्रदूषण की समस्या गहराने लगती है। पराली और वाहनों के धुएं के अलावा औद्योगिक इकाइयों की वजह से होने वाले प्रदूषण से कैसी समस्या खड़ी हो जाती है, यह जगजाहिर रहा है।
इस साल ज्यादा चिंता की बात इसलिए है कि वायु प्रदूषण और हवा में घुलने वाले सूक्ष्म जहरीले तत्त्वों की वजह से सबसे ज्यादा सांस से संबंधित जटिलताएं खड़ी हो सकती हैं और कोरोना वायरस भी सांस और फेफड़े को ही संक्रमित कर सकता है।
इसलिए केंद्र सरकार ने अगर इस समस्या पर काबू के लिए दीर्घकालिक इंतजाम किया है तो यह स्वागतयोग्य है। लेकिन प्रदूषण नियंत्रण के लिए काम करने वाली पहले की संस्थाओं के अनुभवों के मद्देनजर यह ध्यान रखना चाहिए कि नए आयोग के काम के कुछ ठोस नतीजे भी सामने आएं।