सम्पादकीय

नफरत के खिलाफ

Gulabi
12 Jan 2022 5:23 PM GMT
नफरत के खिलाफ
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सांप्रदायिकता पर लगाम लगाने की हर कोशिश स्वागतयोग्य है
सांप्रदायिकता पर लगाम लगाने की हर कोशिश स्वागतयोग्य है। विगत दिनों कथित धर्मसंसद से जो उद्गार निकले थे, उनकी गूंज एक याचिका के माध्यम से देश के सर्वोच्च न्यायालय तक पहुंची है और न्यायालय ने केंद्र व उत्तराखंड सरकार से जवाब मांगा है। याचिका में न्यायालय से मांग की गई है कि हरिद्वार और राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में हाल में आयोजित कार्यक्रमों में कथित रूप से नफरत फैलाने वाले भाषण देने वालों के खिलाफ जांच व यथोचित कार्रवाई सुनिश्चित की जाए। याचिकाकर्ता पत्रकार कुर्बान अली और पटना उच्च न्यायालय की पूर्व न्यायाधीश व वरिष्ठ अधिवक्ता अंजना प्रकाश की प्रशंसा करनी चाहिए कि उन्होंने इस महत्वपूर्ण विषय को सर्वोच्च न्यायालय के सामने उठाया है। देश में एक बडे़ वर्ग में यह शिकायत है कि घृणा या हिंसा के ऐसे उद्गारों के बावजूद कानून-व्यवस्था ने अपना काम नहीं किया है। हालांकि, महात्मा गांधी को अपशब्द बोलने वाले एक धर्माचार्य को छत्तीसगढ़ की पुलिस ने मध्य प्रदेश से गिरफ्तार किया है और करीब आधा दर्जन थानों में रिपोर्ट दर्ज हुई है। अब सर्वोच्च न्यायालय के हस्तक्षेप के बाद कार्रवाई में तेजी आने की संभावना है। विशेष रूप से उत्तराखंड और केंद्र सरकार को जांच व कार्रवाई की सूचना न्यायालय को देनी पड़ेगी।
मामले में अगली सुनवाई 10 दिन बाद होगी और इस सुनवाई का व्यापक असर होगा। इसमें कोई शक नहीं कि देश में नफरत फैलाने वाले भाषणों को रोकना हर हाल में जरूरी है। यह काम स्थानीय पुलिस को पहले ही कर लेना चाहिए था,पर ठोस कार्रवाई छत्तीसगढ़ की सरकार ने की और वह भी मध्य प्रदेश की सीमा में घुसकर। मतलब साफ है कि हम नफरत फैलाने वाले भाषणों को भी राजनीतिक नजरिये से देख रहे हैं। क्या उत्तराखंड या मध्य प्रदेश ने कार्रवाई इसलिए नहीं की, क्योंकि वहां भाजपा की सत्ता है? क्या छत्तीसगढ़ की सरकार इसलिए कार्रवाई कर पाई, क्योंकि वहां कांग्रेस सत्ता में है? सरकारें अपनी सुविधा या राजनीति के आधार पर चलाई जा रही हैं या कानून-संविधान के आधार पर? कोई आश्चर्य नहीं, अगर याचिकाकर्ता नफरत फैलाने वाले भाषण मामले में विशेष जांच दल की मांग कर रहे हैं? स्वतंत्र और निष्पक्ष जांच की मांग हो रही है। याचिका में खासतौर पर 17 व 19 दिसंबर, 2021 को हरिद्वार और दिल्ली में नफरत पैदा करने वाले भाषणों का उल्लेख किया गया है। मामला बहुत गंभीर है, क्या किसी समुदाय के नरसंहार का आह्वान किया गया? क्या ऐसी हिंसा की पैरवी कोई धर्म करता है? यदि कोई धर्म हिंसा की पैरवी करता है, तो फिर भारत में उसकी जगह कहां होनी चाहिए?
समग्रता में यह जरूरी है कि ऐसे अनुशासनहीन आयोजनों को रोका जाए। हिंसा के पक्ष में न कोई प्रवचन हो और न तकरीर। कौन धर्म है, जो गैर-धर्म वालों से घृणा सिखाता है? सांप्रदायिक नफरत की बुनियाद पर बने देशों का हश्र क्या हम नहीं देख पा रहे हैं? क्या कुछ लोग उस सहिष्णु, उदार, समझदार भारत को खत्म करना चाहते हैं, जिस पर दुनिया गर्व करती है। भारत में हो रही ऐसी कोशिशों पर प्रतिक्रिया पूरी दुनिया में हो रही है, भारत को चाहने वाले आज चिंतित हैं। न्यायालयों, सरकारों व धर्म समाजों को सुनिश्चित करना चाहिए कि भारत में जैसे सदियों से तमाम धर्म शांतिपूर्वक रहते आए हैं, वैसे ही सदा रहें।
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