सम्पादकीय

तानाशाही के विरुद्ध

Subhi
30 Nov 2022 5:58 AM GMT
तानाशाही के विरुद्ध
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पिछले सप्ताह जब यह खबर आई कि मध्य चीन के हेनान प्रांत के झेंग्झौ में दुनिया की सबसे बड़ी एप्पल आइफोन फैक्ट्री चलाने वाले फाक्सकान टेक्नोलाजी ग्रुप द्वारा संचालित कारखाने के परिसर में सरकार के कड़े कोविड प्रतिबंधों के खिलाफ कामगार प्रदर्शन करते हुए वहां तैनात सुरक्षा कर्मचारियों के साथ हाथापाई पर उतर आए हैं तो उस समय लगा था, मानो यह इक्का-दुक्का घटना है। जब बीते शनिवार को उरुमकी शहर के एक अपार्टमेंट में आग लगने के कारण चालीस लोग इसलिए मर गए, क्योंकि क्षेत्र में पूर्णबंदी लगाई गई थी, जिससे बचाव कार्य को अंजाम नहीं दिया जा सका।

Written by जनसत्ता: पिछले सप्ताह जब यह खबर आई कि मध्य चीन के हेनान प्रांत के झेंग्झौ में दुनिया की सबसे बड़ी एप्पल आइफोन फैक्ट्री चलाने वाले फाक्सकान टेक्नोलाजी ग्रुप द्वारा संचालित कारखाने के परिसर में सरकार के कड़े कोविड प्रतिबंधों के खिलाफ कामगार प्रदर्शन करते हुए वहां तैनात सुरक्षा कर्मचारियों के साथ हाथापाई पर उतर आए हैं तो उस समय लगा था, मानो यह इक्का-दुक्का घटना है। जब बीते शनिवार को उरुमकी शहर के एक अपार्टमेंट में आग लगने के कारण चालीस लोग इसलिए मर गए, क्योंकि क्षेत्र में पूर्णबंदी लगाई गई थी, जिससे बचाव कार्य को अंजाम नहीं दिया जा सका।

इस घटना से पूरे चीन में राष्ट्रपति शी जिनपिंग और कम्युनिस्ट पार्टी के खिलाफ गुस्सा भड़क गया। लोग बाहर निकलकर पुलिस एवं सेना से सीधे भीड़ गए। यह दृश्य तियानमेन चौक की घटना से बड़ा लग रहा है, क्योंकि वह एक स्थान पर केंद्रित था। लेकिन मौजूदा प्रदर्शन देश के लगभग हर प्रांत में शुरू हो गया है। शी जिनपिंग को इससे पहले कभी इतनी बड़ी चुनौती नहीं मिली थी। यों कहें कि पूरे चीनी क्रांति के इतिहास में इतना बड़ा विरोध प्रदर्शन कभी नहीं हुआ था। चिंता इस बात की हो रही है की चीन जैसा एकतंत्रवादी तानाशाही कहीं कोई अप्रत्याशित कदम न उठा ले।

दिल्ली में बढ़ते प्रदूषण को ध्यान में रखकर लोगों को साइकिल चलाने की सलाह दी जाती है और इसीलिए दिल्ली सरकार ने ई-साइकिल जैसी सुविधा भी शुरू कर दी है। साइकिल चलाना लोगों की सेहत के लिए भी बहुत अच्छा है, लेकिन उन सड़कों का क्या जहां पर साइकिल चलाने के लिए अलग रास्ता या ट्रैक ही नहीं है। अगर कहीं है भी तो उसकी हालत बहुत बुरी है। इसके कारण इस साल करीब पैंतालीस लोगों की मौत हो चुकी है और करीब सवा सौ लोग घायल हुए।

इस संख्या में दिनोंदिन इजाफा होता जा रहा है, लेकिन सड़कों की हालत में सुधार की कोई संभावना नहीं दिखती है। सड़क पर सुरक्षित सफर और सड़कों के रखरखाव की बातें सिर्फ सरकारी फाइलों में ही दफन हैं। सवाल है कि प्रदूषण को कम करने से लेकर लोगों के खर्च बचाने और सेहत के लाभदायक होने में बेहद अहम साबित होने वाली साइकिल की सवारी को लेकर सरकारें अपने सार्वजनिक दावों के उलट उदासीन क्यों नजर आती हैं! लोग किस भरोसे पर तेज रफ्तार सड़कों पर साइकिल लेकर निकलें और सुरक्षित अपने काम की जगह पर पहुंचे और सुरक्षित ही अपने घर लौट सकें?

जनता महंगाई, बेरोजगारी, भ्रष्टाचार जैसी समस्याओं से परेशान है। आम दिनों में इन पर चर्चा जरूर होती है, लेकिन चुनाव आते ही भावुकतापूर्ण मुद्दे जनता पर हावी हो जाते हैं और असली मुद्दे मानस पटल से गायब होने लगते हैं। सोशल मीडिया पर ऐसे मुद्दे फैले होते हैं, जिनका जनता की वास्तविक समस्याओं से सरोकार नहीं रहता।


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