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Written by जनसत्ता: दिल्ली सरकार के स्कूलों में कक्ष निर्माण में घोटाले के आरोप पहले भी सामने आए थे। अब सतर्कता निदेशालय ने भी दिल्ली सरकार के एक सौ तिरानबे स्कूलों में दो हजार चार सौ पांच कक्षाओं के निर्माण में गंभीर अनियमितता और भ्रष्टाचार के मामले में मुख्य सचिव को अपनी रिपोर्ट सौंप दी है।
निदेशालय ने तेरह सौ करोड़ रुपए के घोटाले की तरफ इशारा करते हुए एक विशेष एजंसी से इसकी जांच कराने की सिफारिश की है। गौरतलब है कि इसी मामले में 17 फरवरी, 2020 को केंद्रीय सतर्कता आयोग ने अपनी जांच रिपोर्ट में कहा था कि स्कूलों में कमरे बनवाने में अनियमितता बरती गई। तब वह रिपोर्ट दिल्ली सरकार के सतर्कता निदेशालय को सौंपने के साथ उससे आयोग ने सरकार की टिप्पणी के साथ जवाब मांगा था। मगर हैरानी की बात है कि तब से लेकर ढाई साल तक इस मामले में कोई प्रगति नहीं हुई।
करीब तीन महीने पहले उपराज्यपाल ने मुख्य सचिव से देरी की जांच कर रिपोर्ट सौंपने को कहा था। इन घटनाक्रमों के बाद निदेशालय ने अपनी रिपोर्ट मुख्य सचिव को सौंपी है। अब दिल्ली सरकार इस आरोप को फर्जी बता रही है, जबकि कायदे से होना यह चाहिए था कि जब पहली बार ऐसे आरोप सामने आए थे, तभी दिल्ली सरकार को इस बारे में बिल्कुल स्पष्ट तस्वीर रख देनी चाहिए थी।
मगर करीब ढाई साल तक इस पर कोई जवाब देना जरूरी नहीं समझा गया। इसी वजह से उपराज्यपाल को दखल देने की जरूरत पड़ी। हैरानी है कि एक ओर स्कूलों में भवनों और कक्षाओं के निर्माण को दिल्ली सरकार अपनी सबसे बड़ी उपलब्धियों के तौर पर पेश करते हुए इस क्षेत्र में अहम काम करने का दावा करती है, वहीं सबसे ज्यादा ईमानदार सरकार होने का प्रचार भी भाषणों से लेकर विज्ञापनों में लगातार चलता रहा है। मगर स्कूलों की कक्षाओं के निर्माण के मामले में सतर्कता आयोग और निदेशालय की रिपोर्टों ने इसके उलट संकेत दिए हैं।
सब जानते हैं कि आम आदमी पार्टी का उदय भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन से हुआ था। अपने राजनीतिक जीवन के शुरुआती दौर में अरविंद केजरीवाल दिल्ली सरकार और अलग-अलग नेताओं पर लगे आरोपों का पुलिंदा लेकर जनता को यह भरोसा देते थे कि उनका मकसद भ्रष्टाचार का पूरी तरह खात्मा करना है। आंदोलन के बाद राजनीतिक पार्टी का गठन और सरकार बनने के बाद जनता के बीच यह उम्मीद पैदा हुई थी कि राजनीतिक दलों और सरकारों पर चारों तरफ लगते भ्रष्टाचार के आरोपों के बीच एक नया विकल्प उभरा है।
लेकिन कुछ समय की सक्रियता और दावों के बाद भी इस मुद्दे के खिलाफ कोई ठोस पहल या अभियान सामने नहीं आया। इसके उलट पिछले कुछ समय में शराब नीति में अनियमितताओं के बाद अब स्कूली कक्षाओं के निर्माण में घोटाले के आरोपों ने एक बार फिर यही साबित किया है कि दावों के बीच कोई राजनीतिक दल सत्ता में जाने के बाद क्या और कैसे काम करने लगता है। सवाल है कि शुचिता का दावा करने और भ्रष्टाचार के खिलाफ पहरेदार के तौर पर उभरी आम आदमी पार्टी और उसकी सरकार के कामकाज की शैली क्या और कैसी है कि आए दिन अब उस पर भ्रष्टाचार और घोटालों के आरोप लगने लगे हैं!
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