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- दावे के बरक्स
Written by जनसत्ता: लेकिन यहां भारत में संसद और विधानसभाओं में महिलाओं के तैंतीस फीसद आरक्षण का प्रावधान अभी भी सालों से लटका हुआ है। अंतरराष्ट्रीय मंच पर कुछ कहने से पहले हमें अपने देश की स्थिति को जान लेना चाहिए। अंतरराष्ट्रीय मंचों पर हम अक्सर लोकतंत्र की वकालत करते हुए दिखते हैं। लेकिन भारत में पिछले आठ वर्षों में मौजूदा सरकार ने लोकतंत्र को मजबूत करने के लिए क्या कदम उठाए? संविधान में सरकार पर निगरानी की जो व्यवस्था है उसको कहीं न कहीं कमजोर करने का प्रयास चल रहा है।
हाल ही में डेटा सुरक्षा को लेकर जो बिल का मसौदा तैयार किया गया है, उसमें भी सूचना के अधिकार पर अंकुश लगाने का प्रयास किया जा रहा है। इसी सूचना के अधिकार के द्वारा देश को यह जानकारी मिली थी कि राष्ट्रीयकृत बैंकों के दस लाख करोड़ रुपए डूबत खाते में चले गए। उसके बावजूद देश के समक्ष निरंतर यह मिथ फैलाया जा रहा है कि बैंकों की स्थिति पहले से बहुत सुधर गई है।
मशहूर चिंतक हीगेल ने कहा था कि जो भावनाएं हमें परिवार को लेकर महसूस होती है, यदि वही भावनाएं समाज के लिए महसूस हों तो सारी समस्याएं खत्म हो जाएंगी। लेकिन यह बात सैद्धांतिक स्तर पर अच्छी लगती है, व्यावहारिक स्तर पर नहीं। व्यावहारिक धरातल पर कोई किसी को जितना लूट ले, कम ही रहता है। लोगों को अपना और अपने परिवार का हित दिखाई देता है। अपने हित की पूर्ति के लिए लोग एक दूसरे का शोषण करते हैं, भ्रष्टाचार, भाई-भतीजावाद को बढ़ावा देते हैं, जिस कारण नई प्रतिभा बाहर नहीं आ पाती है।
कहीं न कहीं यह तंत्र समाज को खोखला कर रहा है और देश की छवि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर खराब होती है। लोगों को अधिक लालच नहीं करनी चाहिए, सभी के पास जरूरत भर ही संसाधन होने चाहिए। अमीरी-गरीबी की खाई को पाटना चाहिए, क्योंकि दूसरों का अहित करके खुद का हित करना, यह सभ्य समाज की पहचान नहीं होती है।
बीते रविवार की त्रासद रात वैशाली और वैशाली के जनमानस के लिए बहुत ही दुखदाई एवं दर्दनाक साबित हुआ। देसरी प्रखंड के नयागंज में बाबा बसावन भुइया की पूजा का कार्यक्रम चल रहा था। इसी को लेकर रविवार की रात सड़क के किनारे सैकड़ों की संख्या में लोग जुटे हुए थे। पूरे गांव में उत्साह का माहौल था। लेकिन इसी दौरान एक अनियंत्रित ट्रक ने लोगों रौंद दिया, जिससे खुशी का माहौल मातम और चीख-पुकार में बदल गया और कम से कम आठ लोगों की मौत घटनास्थल पर ही हो गई, बारह से अधिक लोग मौत और जीवन की लड़ाई के बीच अस्पताल में भर्ती थे।
लगभग सभी की उम्र हंसने-खेलने की और बचपन की थी, जो अब मिट चुके हैं। यह दर्दनाक घटना लोगों पर अचानक पहाड़ बन कर टूट गई। कई तरह के सवाल खड़े होते हैं। क्या सड़क सुरक्षा को लेकर सरकारों के पास कोई नीति नहीं है? अगर है तो बार-बार ऐसी घटनाएं क्यों होती हैं? किसी ट्रक चालक की लापरवाही या चारों तरफ पसरे भ्रष्टाचार के नतीजे में कितने लोगों की जान चली जाती है और यह सिलसिला बना हुआ है, तो इसके लिए कौन जिम्मेदार है?