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- मनमानी के विरुद्ध
इससे बड़ी विडंबना क्या हो सकती है कि देश की शीर्ष अदालत ने एक कानून की जिस धारा को कई साल पहले निरस्त कर दिया हो, उसके तहत पुलिस लोगों को गिरफ्तार करती रहे और इसके जरिए बेवजह प्रताड़ित करने का सिलसिला जारी रखे। यह एक तरह से कानून को लागू करने वाली संस्था पर गंभीर सवालिया निशान है। शायद इसीलिए अदालत ने साफ लहजे में कहा कि जो रहा है कि वह काफी भयानक, चिंताजनक और चौंकाने वाला है। अदालत की टिप्पणी अपने आप में यह बताने के लिए काफी है कि पुलिस कैसे अपनी मर्जी से किसी कानून की धारा का इस्तेमाल करती है और लोगों को नाहक ही इसका खमियाजा भुगतना पड़ता है। जबकि न्याय की समूची अवधारणा इस बात पर निर्भर करती है कि जमीनी स्तर पर आम लोगों के साथ पुलिस का बर्ताव कैसा होता है और कानूनों के अमल को लेकर वह कैसा रवैया अपनाती है। यह खुद पुलिस महकमे के लिए चिंता की बात होनी चाहिए कि जिस कानून पर सुप्रीम कोर्ट रोक लगा चुका है, उसका इस्तेमाल वह धड़ल्ले से करती रही और आज इस मसले पर वह कठघरे में खड़ी है।