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- आतंक के खिलाफ: वैश्विक...
जनता से रिश्ता वेबडेस्क। यह तथ्य किसी से छिपा नहीं है कि भारत पिछले कई दशकों से आतंकवाद का शिकार रहा है, जिसके लिये देश ने बड़ी कीमत चुकाई है। पिछले दशकों में संसद पर हमला, मुंबई पर सुनियोजित आतंकी घात, पठानकोट व उरी में विदेशी आतंकियों के कायराना हमले और देश को उद्वेलित करने वाले पुलवामा कांड को भुलाया नहीं जा सकता। इन हमलों के तार जिस देश से जुड़े, उसके खिलाफ पक्के सबूतों के बावजूद अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर कोई कारगर कदम नहीं उठाया गया। उल्लेखनीय है कि मंुबई में पाक प्रायोजित बम धमाकों की शृंखला ने पूरे देश को हिलाकर रख दिया था, तब उसके तीन साल बाद 1996 में भारत ने संयुक्त राष्ट्र में व्यापक रूप से परिभाषित आतंकवाद पर अंतर्राष्ट्रीय समझौते यानी सीसीआईटी पर एक मसौदा दस्तावेज प्रस्तुत किया था। लेिकन विडंबना कि भारत की आवाज को अनसुना किया गया और कुछ देशों की वजह से अभी तक इस प्रस्ताव पर कोई ठोस कार्रवाई नहीं की जा सकी। इसकी वजह यह भी रही कि सदस्य देश आतंकवाद की परिभाषा और स्वरूप को लेकर एकमत नहीं हो पाये।
संसद पर हुए हमले के शहीदों को पिछले दिनों श्रद्धांजलि देते हुए उपराष्ट्रपति वैंकेया नायडू ने एक बार फिर इस दिशा में संयुक्त राष्ट्र से पहल करने का आग्रह किया। अंतर्राष्ट्रीय आतंकवाद के खिलाफ एकजुटता की जरूरत को रेखांकित करते हुए उन्होंने कहा कि दुनिया के अधिकांश देश भारत के दृष्टिकोण से सहमत नजर आते हैं। वहीं कुछ देश ऐसे भी हैं जो संकीर्ण भू-राजनीतिक समीकरणों के चलते भारत के प्रस्ताव की अनदेखी करते हैं। हालांकि वे खुद भी आतंक से किसी न किसी प्रकार जूझ रहे हैं। यद्यपि उपराष्ट्रपति ने किसी देश विशेष का अलग से उल्लेख नहीं किया। लेकिन जाहिरा तौर पर उनका इशारा चीन, पाकिस्तान तथा तुर्की की ओर था जो कि निहित स्वार्थों के चलते आतंकवाद का पोषण करने वाले देशों का बचाव कर रहे हैं। जिनकी हकीकत दुनिया के सामने लाना वक्त की जरूरत समझी जानी चाहिए।