सम्पादकीय

दो लाख के बाद

Subhi
16 April 2021 1:18 AM GMT
दो लाख के बाद
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कोरोना से निपटने के लिए कई राज्यों ने जो सख्त प्रतिबंध लगाए हैं, उन्हें और नहीं टाला जा सकता था।

कोरोना से निपटने के लिए कई राज्यों ने जो सख्त प्रतिबंध लगाए हैं, उन्हें और नहीं टाला जा सकता था। सबसे ज्यादा मार झेल रहे महाराष्ट्र ने पूर्णबंदी तो नहीं की, लेकिन उसी से मिलते-जुलते कठोर कदम उठाए हैं। राज्य में धारा 144 लगा दी गई है। उत्तर प्रदेश, राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, कर्नाटक, गुजरात, पंजाब और केरल जैसे सर्वाधिक प्रभावित राज्यों ने अपने यहां रात का कर्फ्यू लगा दिया है। स्कूल, कॉलेज बंद कर दिए गए हैं। परीक्षाएं भी रद्द कर दी गई हैं।

रायपुर, जबलपुर, भोपाल जैसे शहरों में स्थिति ज्यादा गंभीर होने के कारण पूर्णबंदी भी की गई है। इस सख्ती का फौरी मकसद यही है कि लोग घरों से न निकलें और संक्रमण की शृंखला को तोड़ा जा सके। ऐसी सख्ती पहले ही लागू हो जाती तो हालात बेकाबू होने से बच जाते। पर विशेषज्ञों की चेतावनियों को जिस तरह नजरअंदाज किया जाता रहा, उसी का नतीजा आज हम भुगत रहे हैं। राजधानी दिल्ली में संक्रमितों का दैनिक आंकड़ा अठारह हजार के ऊपर निकल चुका है। इतना ही नहीं, उपचाराधीन मरीज पचास हजार से ज्यादा हो चुके हैं। बिस्तर फिर कम पड़ने लगे हैं। एक दिन में मृतकों की संख्या सौ को पार कर गई है। दिल्ली में अब तक मॉल, सिनेमाघर, स्पा, जिम, तरणताल आदि सब खुले थे। ऐसे में संक्रमण नहीं फैलता तो और क्या होता!
पूरे देश का आंकड़ा देखें तो बुधवार को संक्रमितों का रोजाना का आंकड़ा दो लाख पार कर गया। संक्रमण के फैलाव और इससे होने वाली मौतों, नए मामले आने और सक्रिय मामले बढ़ने की दरों के नए रिकार्ड बन रहे हैं। इसलिए भारत अब कोरोना की सबसे तगड़ी मार झेलने वाला दुनिया का पहला देश हो गया है। चौंकाने वाला आंकड़ा यह भी है कि अब दुनिया में हर दस में चौथा मरीज अपने यहां का है।
देश के तमाम शहरों के अस्पतालों और श्मशानों से आ रही तस्वीरें हालात की भयावहता बता रही हैं। उधर विशेषज्ञ चेता रहे हैं कि महामारी का सिलसिला थमने के फिलहाल कोई आसार नहीं हैं। संक्रमितों का आंकड़ा रोजाना पंद्रह से बीस हजार की दर से बढ़ रहा है। जाहिर है, एक दिन में संक्रमितों का आंकड़ा तीन लाख पहुंचने में कोई ज्यादा वक्त नहीं रह गया है। गौर करने की बात यह है कि अस्पतालों में बिस्तरों और दवाइयों की कमी अभी से होने लगी है। रेमडेसिविर के इंजेक्शन से लेकर आक्सीजन के सिलेंडर कम पड़ जाने से सबका दम फूल रहा है।
यह संकट की घड़ी है। इसमें हम जितनी सूझबूझ और संयम से काम लेंगे, उतनी जल्दी संकट से बाहर आ सकेंगे। ऐसी आपदओं से देशों की अर्थव्यवस्थाएं पटरी से उतर जाती हैं। आमजन की माली हालत खराब हो जाती है। व्यापार बैठ जाते हैं। पिछले एक साल से हम यह देख भी रहे हैं। बहरहाल आज जिस तरह के हालात हैं, उसी में जीना भी है और कोरोना को भी हराना है।
लेकिन कुंभ में जो भीड़ उमड़ रही है, उसके बारे में केंद्र और राज्य सरकार चुप हैं। उत्तराखंड सरकार पहले ही हाथ खड़े कर चुकी है कि रोजाना पचास हजार जांच करा पाना संभव नहीं है। जांच का यह आदेश हाई कोर्ट ने दिया था। कुंभ में अब तक संक्रमण के लगभग चार हजार मामले सामने आ चुके हैं। ये तब हैं जब व्यापकस्तर पर जांच नहीं हो रही है। ऐसे में श्रद्धालु अगर कुंभ से संक्रमण लेकर लौटे तो उसकी जिम्मेदारी किस पर डाली जाएगी?

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