सम्पादकीय

कोरोना वायरस की दूसरी लहर के बाद...

Gulabi
15 Jun 2021 3:54 PM GMT
कोरोना वायरस की दूसरी लहर के बाद...
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कोरोना वायरस

राहत की बात है कि कोरोना महामारी की दूसरी लहर से काफी हद तक उबर कर राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में आज से सामान्य जनजीवन की ओर वापसी की प्रक्रिया शुरू हो गई है। देश की आर्थिक राजधानी मुम्बई समेत देश के कई हिस्सों में भी सब कुछ खुल चुका है। दूसरी लहर इतनी विकराल होगी, इसकी तो हमने कल्पना भी नहीं की थी। जिस तरह की त्रासदी हमें देखने को मिली, हालांकि इससे उबरने में समय लगेगा। हमने बहुत से करीबियों को खोया, कई बच्चों को माता-पिता खोने पड़े या उन्हें माता-पिता में से किसी एक को खोना पड़ा। सरकारों के लिए लोगों की मौत महज आंकड़ा ही हो गई लेकिन जिन्होंने अपनों को खोया है उनके लिए परिवार के सदस्यों की जान बहूमूल्य थी। भगवान का शुक्र है कि तमाम संकटों का सामना करते हुए महामारी के इस चरण को पार करने की स्थिति में आ सके हैं। सख्त लॉकडाउन से भी दूसरी लहर को काबू करने में सफलता मिली है। यद्यपि लॉकडाउन की जो कीमत हमें अर्थव्यवस्था के रूप में चुकानी पड़ी है वह भी कम नहीं है।

हजारों दिहाड़ी मजदूरों को दो माह तक खाली बैठना पड़ा। फैक्ट्रियां बंद करनी पड़ी। बाजार बंद रहे। स्कूल-कालेज तो पहले ही बंद थे। कोरोना की दूसरी लहर का प्रकोप कम होते ही दिल्ली में बाजारों और शापिंग माल्स को ऑड-इवन बेसिस पर खोलने की इजाजत दी गई थी, जो आज से पूरी तरह खुल चुके हैं। देशभर में लॉकडाउन की पाबंदियां सावधानीपूर्वक खोली जा रही है। सच तो यह है कि महामारी का खतरा कहीं से कम नहीं पड़ा है। अभी सिर्फ असर कम हुआ है। राहत की बात तो यह है कि संक्रमण दर कम हुई है। मौतों के आंकड़े भी कम हो रहे हैं। ऐसे में सावधानी के साथ काम-धंधे फिर से शुरू करने में कोई हर्ज नहीं है। महीनों से घरों में बंद लोगों के लिए लॉकडाउन का खुलना मनोवैज्ञानिक राहत साबित होगा बल्कि बंद पड़ी आर्थिक गतिविधियों के चलते आर्थिक तंगी से गुजर रहे परवारों के लिए नई उम्मीदें जगायेगा। इनमें दिहाड़ी मजदूरों से लेकर रेहड़ी-पटरी और साप्ताहिक बाजार लगाने वाले शामिल हैं। छोटे-मोटे कारोबारी हैं। एक अनुमान के अनुसार डेढ़ महीने की बंदी से देश को 15-20 लाख करोड़ का नुक्सान हुआ है। कोराेना काल में पिछले वर्ष लगभग 23 हजार लोग गरीबी रेखा से नीचे चले गए। आज की स्थिति में इन आंकड़ों में और बढ़ोतरी होगी। सभी वर्गों पर इसका असर पड़ा है और लोगों की तकलीफें बढ़ी हैं, आर्थिक तंगी और असुरक्षा के चलते उनकी खर्च करने की क्षमता कम हुई है। जिसके फलस्वरूप अर्थव्यवस्था की गति धीमी हुई है और इसकी बेहतरी का रास्ता कठिन हो गया है।

यह एक ऐसा चक्र है जो तभी टूटेगा जब लोगों की जेब में पैसा आएगा, उनकी खर्च करने की हैसियत बढ़ेगी और आत्मविश्वास बढ़ेगा। सरकार को लोगों का आत्मविश्वास बढ़ाने, उन्हें हताशा से निकालने के लिए बहुत कुछ करना पड़ेगा। आगे की राह इस बात पर भी निर्भर करेगी कि दूसरी लहर के उतराव के बाद मिले इस वक्त का लोग कैसे इस्तेमाल करते हैं। हमारे सामने दो बड़े सवाल हैं। पहला यह कि कितनी बड़ी आबादी वैक्सीनेशन के दायरे में लाई जाती है और दूसरा अनलॉकिंग के दौरान सामान्य जीवन जीते हुए लोग कोरोना प्रोटोकॉल को लेकर कितनी सजगता बनाये रख पाते हैं। पहला सवाल सरकार की नीतियों और हैल्थ केयर ढांचे से संबंध रखता है तो दूसरे का संबंध हम सबसे है।

दुनिया में लॉकडाउन के बाद अनलॉक की प्रक्रिया के तहत वैज्ञानिकों और आर्थिक विशेषज्ञों द्वारा आदर्श माने जा रहे अमेरिकी राज्य न्यू हैम्पशायर सहित विभिन्न देशों ने जो रणनीतियां अपनाई, उन्हें हम अपने देश में भी लागू कर सकते हैं। महानगर के खुलते ही बाजारों में भीड़ बढ़ गई, सड़कों पर वाहनों का जाम देखा गया। अब दुकानों पर आने वाले ग्राहकों को मास्क पहनने के साथ-साथ दो गज की दूरी रखने की अनिवार्यता को सख्ती से लागू किया जाना चाहिये। दुकानदार और उनके कर्मचारियों के लिए मास्क पहनने के साथ-साथ वैक्सीन का प्रमाणपत्र अनिवार्य होना चाहिये। महामारी तभी नियंत्रित मानी जाएगी, जब दो सप्ताह से ज्यादा वक्त तक संक्रमण दर पांच फीसदी से कम हो। अब ई गवर्नेंस की व्यवस्था को और प्रभावी बनाना होगा तथा अधिक से अधिक कार्यों और सेवाओं को ऑनलाइन प्लेटफार्मों पर लाना होगा। देश में कोरोना महामारी की तीसरी लहर आने की आशंका जाहिर की गई है। अतः कोरोना प्रभावित राज्यों समेत सभी राज्यों में उस लहर से बचाव के लिए स्वास्थ्य ढांचे की बुनियादी तैयारियों के साथ-साथ रणनीति पर ध्यान देना होगा। भारत में कोरोना महामारी का डेल्टा वैरिएंट नया रूप ले रहा है और नए डेल्टा प्लस वैरिएंट के 7 केस मिल भी चुके हैं। लॉकडाउन खोलना हमारी विवशता भी है और समय की मांग भी लेकिन इस सबको बड़ी सावधानी से रहना होगा। सरकार और आम नागरिकों के स​म्मानित प्रयासों से ही कोरोना के खिलाफ कठिन निर्णायक जंग जीति जा सकती है। अगर लोगों ने लापरवाही बरती तो फिर से घरों में बंद रहने की नौबत आ सकती है। इसलिए छूट मिलते ही लोग बेपरवाह न हाें । छोटे-बड़े कारोबार ही राज्यों के राजस्व का स्रोत होते हैं और इसी से अर्थव्यवस्था चलती है।

आदित्य नारायण चोपड़ा


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