सम्पादकीय

कोरोना की दूसरी लहर के बाद

Gulabi
7 Jun 2021 1:28 PM GMT
कोरोना की दूसरी लहर के बाद
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राहत की बात है कि कोरोना महामारी की दूसरी लहर से काफी हद तक उबर कर राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली और

राहत की बात है कि कोरोना महामारी की दूसरी लहर से काफी हद तक उबर कर राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली और वित्तीय राजधानी मुंबई समेत देश के कई हिस्से आज से सामान्य जनजीवन की ओर वापसी की प्रक्रिया शुरू कर रहे हैं। हालांकि इस दूसरी लहर ने दिल्ली और मुंबई समेत पूरे देश को जिस तरह के दृश्य दिखलाए हैं, उनसे उबरने में लंबा वक्त लगेगा, लेकिन फिर भी यह कम बड़ी बात नहीं है कि सीमित संसाधनों के बावजूद हम महामारी के इस चरण को पार करने की स्थिति में आ सके हैं। सख्त लॉकडाउन से इसमें काफी मदद मिली। हालांकि उसकी जो कीमत एक अर्थव्यवस्था के रूप में हमें चुकानी पड़ी है, वह भी कम नहीं। इसीलिए यह ज्यादा जरूरी है कि अनलॉक की प्रक्रिया शुरू करते हुए भी पूरी सावधानी बरती जाए। इसी सावधानी के तहत दिल्ली में बाजारों और शॉपिंग मॉल्स को ऑड-इवेन बेसिस पर ही खोलने की इजाजत दी गई है। मेट्रो भी 50 फीसदी सीट क्षमता के साथ ही चलेगी। महाराष्ट्र में यह सावधानी और स्पष्ट रूप में दिखती है, जहां पूरे राज्य को कोरोना संक्रमण की स्थिति के आधार पर पांच अलग-अलग लेवल में बांटा गया है। लेवल 1 के शहरों में सबसे ज्यादा छूट दी गई है और लेवल 5 के शहरों में सबसे कम।

मुंबई फिलहाल लेवल 3 में है, इसलिए वहां लोकल यात्रा पर रोक समेत बहुत सारी पाबंदियां जारी रहेंगी, पर फिर भी कुछ शर्तों के साथ बाजार, मॉल और सिनेमा हॉल खुल जाएंगे। यह न केवल अर्से से घरों में बंद लोगों के लिए मनोवैज्ञानिक राहत साबित होगा बल्कि बंद पड़ी आर्थिक गतिविधियों के चलते आर्थिक तंगी से गुजर रहे परिवारों के लिए भी नई उम्मीद लाएगा। मगर इसी बिंदु पर यह याद करने की जरूरत है कि महामारी की पिछली लहर उतरने के बाद अनलॉक शुरू होने पर हमने जिस तरह की लापरवाही दिखाई थी, वह कितनी भारी पड़ी। आज जो तीसरी लहर का खतरा विशेषज्ञ बता रहे हैं, वह तो अपनी जगह है ही, उससे बड़ी सचाई यह है कि दूसरी लहर भी पूरी तरह थमी नहीं है। देश के कई हिस्सों में यह अभी भी गंभीर रूप में है और उस पर काबू पाने के प्रयास चल ही रहे हैं। जाहिर है, आगे की राह बहुत कुछ इस बात पर निर्भर करेगी कि दूसरी लहर के उतार के बाद मिले इस वक्त का हम कैसे इस्तेमाल करते हैं। इस लिहाज से दो सवाल अहम हैं। पहला, कितनी बड़ी आबादी टीकों के सुरक्षा घेरे में कितनी जल्दी लाई जा सकती है और दूसरा, अनलॉकिंग के दौरान सामान्य जीवन जीते हुए हम कोरोना प्रोटोकॉल को लेकर कितनी सजगता बनाए रख पाते हैं। पहला सवाल खासतौर पर सरकारी तंत्र और हेल्थकेयर ढांचे से वास्ता रखता है तो दूसरा सामान्य नागरिकों से। दोनों के सम्मिलित प्रयासों से ही वायरस के खिलाफ यह कठिन जंग निर्णायक रूप से जीती जा सकती है।
क्रेडिट बाय NBT
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