सम्पादकीय

लखीमपुर खीरी की घटना के बाद राजनीतिक लाभ पर विपक्षी दलों का सारा जोर

Tara Tandi
7 Oct 2021 3:54 AM GMT
लखीमपुर खीरी की घटना के बाद राजनीतिक लाभ पर विपक्षी दलों का सारा जोर
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जिसका अंदेशा था, वही हो रहा है

मनीष पांडे | जिसका अंदेशा था, वही हो रहा है। लखीमपुर खीरी की घटना के बाद जहां विपक्षी दलों का सारा जोर उत्तर प्रदेश और केंद्र सरकार को घेरकर राजनीतिक लाभ उठाना है, वहीं इन सरकारों की कोशिश है जैसे-तैसे ऐसा न होने देना। चूंकि पंजाब और उत्तर प्रदेश समेत अन्य राज्यों के विधानसभा चुनाव निकट हैं इसलिए विपक्षी दल लखीमपुर खीरी कांड को हर हाल में तूल देते ही रहेंगे। यही काम किसान संगठन भी करेंगे, क्योंकि उनका भी उद्देश्य इन चुनावों को अपने पक्ष में भुनाना है। हालांकि उत्तर प्रदेश सरकार किसान संगठनों की मांग के अनुरूप लखीमपुर खीरी घटना की न्यायिक जांच पर सहमत हो गई है, लेकिन यह साफ दिख रहा कि विपक्षी दलों को यह रास नहीं आया है। वे किसान संगठनों को उकसाने में जुट गए हैं। नतीजा यह है कि उनकी ओर से भी नई-नई मांगें रखे जाने के साथ ही इसकी चेतावनी भी दी जा रही है कि यदि उनके मन का नहीं हुआ तो वे कड़े फैसले लेंगे। पता नहीं इसका मतलब क्या है, लेकिन कोई भी समझ सकता है कि इसके नतीजे में उनका धरना-प्रदर्शन और व्यापक एवं उग्र रूप ले सकता है। यदि ऐसा होता है तो कानून एवं शांति व्यवस्था के लिए चुनौती और बढ़ जाएगी। वास्तव में जब कोई आंदोलन आवश्यकता से अधिक लंबा ¨खचता है तो वह अपने उद्देश्य से भटकता ही है।

इसमें संदेह है कि किसान संगठन और विपक्षी दल न्यायिक जांच और उसके निष्कर्षो से संतुष्ट होने वाले हैं, क्योंकि उनका मूल उद्देश्य उत्तर प्रदेश और केंद्र सरकार को किसान विरोधी साबित करना और उनकी छवि पर प्रहार करना है। पता नहीं कि वे इसमें सफल होंगे या नहीं, लेकिन यह तय है कि इस चक्कर में वे सारे मसले पीछे छूट जाएंगे, जो किसान संगठनों की ओर से कृषि कानून विरोधी आंदोलन के तहत उठाए जा रहे थे। इसके अलावा आम किसानों की स्थिति सुधारने का लक्ष्य भी ओझल होगा, क्योंकि इसके आसार कम हैं कि आम किसानों की भलाई के लिए बनाए गए तीन नए कृषि कानून हाल-फिलहाल अस्तित्व में आने वाले हैं। किसान संगठन और उनका साथ दे रहे विपक्षी दल चाहे जो दावा करें, सच यह है कि उनके रवैये के कारण आम किसान खुद को हाशिये पर पा रहे हैं। यदि देश के छोटे किसान अपनी बात कहने के लिए आगे नहीं आ रहे अथवा वे सड़कों पर उतर नहीं रहे तो इसका यह अर्थ नहीं कि वे पंजाब, हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के समर्थ किसानों की ओर से चलाए जा रहे आंदोलन के साथ हैं। ऐसा नहीं है और इसी कारण देश के बाकी हिस्सों में इस आंदोलन का असर नहीं।

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