सम्पादकीय

कहर के बाद प्रदेश को चाहिए सतत विकास

Rani Sahu
30 July 2023 7:03 PM GMT
कहर के बाद प्रदेश को चाहिए सतत विकास
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जुलाई के दूसरे सप्ताह में प्रदेश में बरसातों का कहर इस कदर बरपा कि हिमाचल का नक्शा ही बदल दिया। नदियों-नालों में बाढ़ आ गई, पहाडिय़ां गिरने लगी, सडक़ें टूट गयीं, घर बह गए, पुल बह गए और पर्यटन सीजन में हिमाचल आये लगभग 70 हजार पर्यटक हिमाचल के विभिन्न पर्यटक स्थलों पर फंस गए। मनाली-कुल्लू, सैंज, बंजार, मणिकर्ण, कसोल, किन्नौर, सिरमौर, मंडी, कांगड़ा, शिमला, चम्बा के कुछ भागों में बरसातों और बादलों के फटने से सब कुछ तहस नहस हो गया। हिमाचल प्रदेश सरकार के अनथक प्रयासों ने पर्यटकों को तो किसी तरह निकाल कर हिमाचल से रवाना किया, लेकिन हिमाचल में 130 से ज्यादा लोग मौत के मुंह में चले गए। सरकार के अनुमान के अनुसार लगभग 8000 करोड़ का नुकसान प्रदेश को हुआ है। जहां तक हाईवे का प्रश्न है, वह कई जगह इस तरह से टूटा है कि उसे ठीक करने में काफी समय लग जाएगा। हिमाचल में अधिकतर पुल बह गए हैं या इस हालत में हैं कि उनका लोग इस्तेमाल ही नहीं कर पाएंगे। हिमाचल में बादल फटने की घटनाएं बरसात के दिनों में सामान्य हैं।
हिमाचल की मुख्य नदियों ब्यास, सतलुज, चिनाब और छोटी सहायक नदियों जैसे फोजल, सरवरी, लारजी और बाकी खड्डों और दरिया-नालों में इतना पानी आया कि हर नदी का जल स्तर खतरे के निशान से कहीं ऊपर बहने लगा। पूरे प्रदेश में बरसात का कहर था। स्थानीय लोगों, प्रशासन, आपदा प्रबंधन तथा पुलिस ने इस सब में एक अहम् भूमिका निभाई। भारतीय वायु सेना के हेलीकॉप्टर मुसीबत में फंसे लोगों को निकाल कर सुरक्षित स्थानों तक लाते रहे। हिमाचल भूस्खलन, भूकंप और प्राकृतिक आपदाओं के कारण भौगोलिक दृष्टि से सबसे ज्यादा असुरक्षित जगह है। पिछले 20 सालों में निश्चित तौर पर यहां बहुत विकास हुआ है लेकिन पर्यावरण और यहां के परिवेश को नुकसान भी हुआ है। बहुत से स्थानीय लोगों का कहना है कि फोरलेन और आधुनिकीकरण इसका मुख्य कारण है। जब सडक़ें कम चौड़ी थीं और सुरंगें नहीं थी, तो पहाड़ और उसके आसपास की जमीन इतनी झरझरी नहीं थी। अब जरा सी बारिशें और उसके बाद धूप से चट्टानें फिसलती हैं और पहाड़ नीचे आ जाते हैं। नदियों में अंधाधुंध खनन हो रहा है। नदी के किनारे स्पॉट हो गए हैं, नदी में से पत्थर और रेत निकाल कर उसे खोखला कर दिया है। पानी का बहाव इस कारण और भी तेज हो जाता है। नदी के किनारे पहले बहुत वृक्ष होते थे, अब नदी के किनारों पर लोगों ने नदी की तरफ अतिक्रमण कर घर, दुकानें, मकान बना लिए हैं। भुंतर और हाथीथान में बहे घर, दुकानें और पेट्रोल पम्प शायद इसी कारण बह गए कि वे सब नदी के जल स्तर की बराबरी पर थे। नदी के किनारे लगातार अतिक्रमण से इतने कमजोर हो गए हैं कि वे जरा सा पानी का दबाव सहन नहीं कर पाते। हिमाचल की सभी नदियों में खनन और अतिक्रमण जोरों पर है। प्राकृतिक आपदाओं को रोकने के लिए आप के पास कितना भी इंफ्रास्ट्रक्चर क्यों न हो, काफी नहीं होता है। प्रकृति सब पर भारी पडऩे की क्षमता रखती है अगर हम सूझबूझ से काम न लें तो खतरा है। हिमाचल को फिर से अपने पांव पर खड़ा होना पड़ेगा। मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू व पूर्व मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर प्रयासरत हैं कि केंद्र सरकार उन्हें ज्यादा से ज्यादा सहायता दे, ताकि हिमाचल में जीवन फिर से पटरी पर लौट सके।
हिमाचल सरकार ने लोगों को कुछ आर्थिक सहायता तो दी, लेकिन वह तत्काल राहत थी। बरसातों में प्रभावित हिमाचल वासियों और संस्थाओं को और आर्थिक सहायता की आवश्यकता है। हिमाचल के कई शहरों में बरसात ने इतना नुकसान किया है कि उन्हें फिर से स्थापित करना होगा। मनाली इसमें सबसे ज्यादा प्रभावित है। आने वाले समय में बहुत सारी कंपनियां सरकार द्वारा निकाले गए टेंडर के लिए आवेदन करेंगी। सरकार को इन सभी कंपनियों के बारे में गंभीरता से सोचना होगा क्योंकि उनके बारे में और उनके काम के बारे में पूरी जानकारी लेनी होगी। भाई-भतीजावाद और राजनीतिक दबाव में आकर किसी को भी काम नहीं सौंपना होगा। जितने भी पुल बह गए हैं उनका निर्माण जल्दी करना होगा। और ऐसे पुलों का निर्माण करना होगा जिनमें भूकंप और अकस्मात बाढ़ को सहने की क्षमता हो। मलेशिया और दूसरे कई देशों में ऐसे पुलों का निर्माण हुआ है। गांवों और कस्बों में से गुजरने वाले नाले जो बरसात में पूरे उफान पर आ जाते हैं, उन्हें चिन्हित कर, पक्का करना होगा। जहां संभव हो वहां छोटे-छोटे चेक डैम बनाने होंगे, ताकि उनमें बारिश का पानी इकठ्ठा रहे जो बाद में प्रयोग किया जा सके। हिमाचल वासियों को बारिश के पानी के संग्रहण के बारे में जागरूक करना होगा ताकि घरों और पगडंडियों का पानी कहीं एक जगह इकट्ठा किया जा सके। लोग अपने घरों में पानी के बड़े टैंक बना सकते हैं, जहां पानी इकट्ठा किया जा सकता है।
नदी के किनारों को मजबूत करना होगा और अवैध खनन को रोकने के लिए सरकार को कड़े कानून बनाने होंगे। नदी के किनारों पर वृक्षारोपण करना होगा ताकि आने वाले दस साल में नदी के किनारों की जमीन को अच्छी पकड़ मिल सके। पन बिजली परियोजनाओं से पर्यावरण को होने वाले नुक्सान को देखते हुए ही मंज़ूरी देनी होगी। सरकार को यह तय करना होगा कि इन परियोजनाओं को भीड़ न लगे। गांव से कस्बों को जोडऩे वाली सडक़ों पर बिना कारण विस्तार या छेड़छाड़ न की जाए। कुल्लू से बिजली महादेव रास्ते को पिछले 6 महीने से जगह जगह से विस्तार कर न केवल सडक़ के साथ लगती जमीन को नुक्सान पहुंचाया है, बल्कि उसे आधा अधूरा ही छोड़ दिया गया है। छोटे नदी नालों पर आधुनिक तकनीक से बने झूला पुलों का नर्माण सरकार को तुरंत करवाने की आवश्यकता है। राज्य के आपदा प्रबंधन विभाग को नए संसाधन और संचार के नए उपकरण इत्यादि देने होंगे। प्रदेश में काम कर रहे गैर सरकारी संगठनों को आगे आना होगा। उन्हें संकट की घडिय़ों में सरकार और स्थानीय लोगों का साथ देना होगा।
रमेश पठानिया
स्वतंत्र लेखक
By: divyahimachal
Rani Sahu

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