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पूर्वांचल एक्सप्रेसवे के बाद अब लोगों की निगाहें बुंदेलखंड एक्सप्रेसवे पर लगी हैं
शंभूनाथ शुक्ल पूर्वांचल एक्सप्रेसवे के बाद अब लोगों की निगाहें बुंदेलखंड एक्सप्रेसवे पर लगी हैं, जो चित्रकूट में भरतकूप के समीप गोंडा गांव से बांदा, महोबा, हमीरपुर, जालौन, औरय्या से इटावा आएगा और फिर कुदरैल गांव के पास सीधे लखनऊ-आगरा एक्सप्रेसवे से यह जुड़ेगा. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 16 नवंबर को पूर्वांचल एक्सप्रेसवे का लोकार्पण करते हुए भी इसका ज़िक्र किया था. उन्होंने कहा था, कि यह एक्सप्रेसवे भी जल्द शुरू हो जाएगा. इसे यूपीडा बना रहा है. इसके 75 प्रतिशत पूरा हो जाने का दावा है और उम्मीद है कि बुंदेलखंड एक्सप्रेसवे दिसम्बर तक चालू हो जाएगा. बुंदेलखंड का पूरा क्षेत्र बहुत पिछड़ा हुआ है, इसे तो जल्द से जल्द पूरा किया जाना चाहिए. कोरोना आने के पूर्व प्रधानमंत्री ने इस बुंदेलखंड एक्सप्रेसवे का शिलान्यास गोंडा गांव में किया था.
यकीनन इस एक्सप्रेसवे के बन जाने से बुंदेलखंड के इस क्षेत्र को बहुत लाभ होगा. यूं हर बार केंद्र सरकार बुंदेलखंड के लिए राहत के दरवाजे खोलती आई है और हर बार बुंदेलखंड और अधिक पिछड़ जाता है. चाहे पूर्व की यूपीए सरकार रही हो अथवा मौजूदा एनडीए सरकार. सदैव बुंदेलखंड के प्रति मेहरबान रहीं, मगर बुंदेलखंड की समस्या तब तक नहीं दूर होगी जब तक यूपी-एमपी से इतर इसका विकास नहीं किया जाता.
यूपी और एमपी में बटा बुंदेलखंड दरअसल हर राज्य की उपेक्षा का शिकार हो जाता है और यहां के जन प्रतिनिधियों की आवाज या तो नक्कारखाने में तूती बन जाती है अथवा उनकी आवाज को प्राचीन विरासत का हवाला देकर दबा दिया जाता है. मगर कुछ लोग निरंतर बुंदेलखंड के लिए संघर्ष करते रहे हैं. इनमें कई नाम हैं मगर पंडित विश्वनाथ शर्मा की बुंदेलखंड एकीकरण समिति पिछले कई दशकों से पृथक बुंदेलखंड की मांग को लेकर अपने अभियान में जुटी हुई है.
तरक़्क़ी करते छोटे प्रदेश
जब भी छोटे प्रदेशों का नाम चलता है तो बुंदेलखंड के लोग यह कयास लगाने लगते हैं कि शायद अब यह भी एक प्रदेश बनेगा. मगर यह कयास सिर्फ अनुमान बनकर ही रह जाता है और बुंदेलखंड जस का तस दो राज्यों- यूपी व एमपी में ही बना रहता है. बुंदेलखंड अकेला ऐसा भूभाग है जो कभी किसी भी विदेशी हमलावर द्वारा जीता नहीं जा सका और यथावत बना रहा.
बुंदेलखंड सदैव स्वाधीन रहा. पन्ना, टीकमगढ़, दतिया और ओरछा रियासतों में बटा यह इलाका वीर तथा बहादुर बुंदेलों की कर्मभूमि रहा है और स्वयं झांसी की रानी इसी बुंदेलखंड की ही रानी थी. हालांकि उनकी झांसी स्टेट विशाल बुंदेलखंड की एक बूंद मात्र थी. पंडित विश्वनाथ शर्मा ने 1970 से ही बुंदेलखंड को दो राज्यों से हटाकर उसे एक करने की बात की थी. वे सदैव बुंदेलखंड अलग राज्य के पक्षधर रहे उनकी मृत्यु के बाद उनका संगठन अब ढीला पड़ गया है. उनकी बुंदेलखंड एकीकरण समिति पांच दशकों तक लड़ती रही.
बुंदेलखंड में बुनियादी ढांचा मौजूद है
बुनियादी ढांचा, परिवहन, आय के स्रोत आदि सभी कुछ बुंदेलखंड में मौजूद हैं. बुंदेलखंड के पन्ना में अगर हीरे और सोने की खदानें हैं तो झांसी व ललितपुर में असंख्य तालाब हैं, नदियां हैं और बरसाती पानी को एकत्र करने के लिए तमाम पोखर हैं. सच तो यह है कि माता टीला डैम व राजघाट डैम से इतनी बिजली बनती है, जो दूसरे प्रदेशों को निर्यात की जाती है मगर यह बिजली बुंदेलखंड के विकास कार्यों में नहीं इस्तेमाल की जाती क्योंकि बुंदेलखंड का अपना कोई धनी-धोरी नहीं है.
संत प्राणनाथ और महाराजा छत्रसाल
जब भी बात होगी बुंदेलखंड की विभूतियों की तो राजा छत्रसाल और बाबा प्राणनाथ को भुलाया नहीं जा सकता. दोनों ने लड़ाई लड़ी कुरीतियों के खिलाफ दिल्लीश्वरों के जुल्मों के खिलाफ पर दोनों ने कहीं भी मजहब आड़े नहीं आने दिया. दोनों ही हिंदू मुस्लिम एकता के पक्षधर थे. एक ठेठ बुंदेला तो दूसरा गुजराती लेकिन दोनों ने ही ठिकाना बुंदेलखंड को ही बनाया. स्वामी प्राणनाथ का चलाया कृष्ण प्रणामी संप्रदाय प्रसिद्घ है ही. स्वामी प्राणनाथ पहले ऐसे संत थे जिन्होंने हिंदू मुस्लिम दोनों को ही कुरीतियों के खिलाफ ललकारा था-
जो कुछ कह्या कतेब ने, सोई कह्या वेद।
दोउ बंदे इक साहब के, लड़त बिना पाये भेद॥
इसी परंपरा को आगे बढ़ाते हुए स्वामी प्राणनाथ लिखते हैं-
ब्राहमण कहें हम उत्तम, मुसलमान कहें हम पाक।
दोऊ मुठ्ठी एक ठौर की, इक राख औ दूजी खाक॥
बुंदेलखंड की यह अदभुत परंपरा है. जहां सब को साफ-साफ कह देने वाले साहसी संत थे और दिल्ली के बादशाह की सत्ता को ललकारने वाले छत्रसाल जैसे महाराज. लेकिन आज यह बुंदेलखंड देश का सबसे गरीब और अस्त-व्यस्त इलाका है.
खनिज, पानी, हवा और पर्यटन स्थल भी
जबकि इसी बुंदेलखंड के बारे में बुंदेलखंड एकीकरण समिति ने लिखा है कि बुंदेलखंड में खनिज है, भरपूर पानी है और उसके रख-रखाव के लिए पर्याप्त तालाब हैं. बिजली और साफ हवा-पानी है, जंगल हैं और वनोपज तो खूब हैं. पर्यटन हेतु तीर्थ स्थल हैं तथा विश्वप्रसिद्ध खजुराहो से लेकर असंख्य स्थल हैं. अबुल फजल ने आइने अकबरी में लिखा है कि बुंदेलखंड में हीरे और पन्ने की खदानें हैं. उसने यह भी लिखा है कि तब ये सारी खदानें चालू हालत में थीं. यही नहीं कैप्टन डब्लू आर पाग्सन ने लिखा है कि हीरे और पन्ने की खदानें यहां खूब थीं. पन्ना के राजा किशोर सिंह को अकेले हीरों की खदानों से ही साल में सात लाख रुपये मिलता था.
बुंदेलखंड में ग्रेनाइट मिलने की बात भी पुरानी है और फर्श में इन ग्रेनाइट्स का इस्तेमाल किया जाता था. बुंदेलखंड से जल परिवहन और थल परिवहन की समृद्घि वर्षों पुरानी है. मगर राजनीतिक इच्छाशक्ति के अभाव के चलते यह क्षेत्र पिछड़ता ही गया. आज इस पूरे बुंदेलखंड में कृषि का घोर अभाव है. आमतौर पर जमीन बंजर है और अपराध के चलते उद्योग-धंधे फलफूल नहीं पा रहे हैं. यह बुंदेलखंड का दुर्भाग्य है कि एक इतना समृद्घ इलाका पिछड़ा हुआ है. इसके विकास के लिए अगर कुछ करना है तो यहां न सिर्फ जन प्रतिनिधियों व सामाजिक कार्यकर्ताओं को उठना होगा वरन आम जनमानस को भी जगाना होगा कि वह बुंदेलखंड को मुख्यधारा में लाने के लिए संघर्ष करें.
बुंदेलखंड के विकास के लिए उसे एक राज्य बनाना होगा
बुंदेलखंड में यूपी के झांसी, ललितपुर, हमीरपुर, जालौन, बांदा, महोबा, राठ और चित्रकूट जिले आते हैं. तो एमपी के टीकमगढ़, दतिया, सागर, दमोह, पन्ना, छतरपुर और नरसिंहपुर हैं. यमुना के दक्षिण से टोंस तक का सारा इलाका बुंदेलखंड है. चित्रकला और स्थापत्य कला में यहां की अलग पहचान रही है, पर नेतृत्व का अभाव इसे अलग राज्य की शक्ल नहीं लेने देता. अगर बुंदेलखंड के समग्र विकास के लिए केंद्र सरकार गंभीर है तो पृथक बुंदेलखंड ही अकेला विकल्प है.
संभव है कि दिवंगत पंडित विश्वनाथ शर्मा की इस बुंदेलखंड एकीकरण समिति की जड़ में उनका यह अतिरिक्त बुंदेलखंड प्रेम हो, लेकिन इसमें कोई शक नहीं कि इस क्षेत्र के विकास को लेकर एकीकृत कार्यक्रम चलाने होंगे वर्ना जैसा कि यूपीए सरकार कर रही थी कि बजट तो बुंदेलखंड के लिए खूब था मगर यूपी सरकार उसे खर्च करने में कोताही बरतती थी. वैसा ही बीजेपी सरकारों के कार्यकालों में हो रहा है. अब तो केंद्र में भी बीजेपी है और यूपी तथा एमपी में भी बीजेपी ही राज कर रही है. बुंदेलखंड को उसका वाजिब हक मिलना ही चाहिए.
Rani Sahu
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