सम्पादकीय

कथा सुनने के बाद जीवन में कुछ अच्छा बदलाव नहीं आया तो उसे सुनने का कोई मतलब नहीं

Gulabi Jagat
26 March 2022 8:35 AM GMT
कथा सुनने के बाद जीवन में कुछ अच्छा बदलाव नहीं आया तो उसे सुनने का कोई मतलब नहीं
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कार्यक्रमों, आयोजनों में दर्शकों-श्रोताओं की संख्या की बंदिश हटा दी गई
पं. विजयशंकर मेहता का कॉलम:
कार्यक्रमों, आयोजनों में दर्शकों-श्रोताओं की संख्या की बंदिश हटा दी गई। कथा-प्रवचनों में भी बड़ी संख्या में लोग पहुंचने लग गए। लेकिन, उनमें से कई को तो यह भी मालूम नहीं होता कि कथा में जाने से मिलेगा क्या। अधिकांश देखा-देखी में ही पहुंच जाते हैं, पूरी कथा सुन भी लेते हैं, पर अब उसका करना क्या है, यह नहीं समझ पाते।
बहुत से लोग मानते हैं कथा सुन लो तो शांति मिलती है। मिल भी जाती है, लेकिन वह अस्थाई होती है। स्थाई शांति प्राप्त करना चाहें तो बतौर श्रोता अपना रूपांतरण करना होगा। कथा सुनने के बाद यदि बदलाव नहीं हुआ, कुछ शुभ जीवन में नहीं उतरा तो कथा श्रवण से कोई मतलब नहीं रह जाएगा।
कई लोग एकांत में चले जाते हैं और फिर कहते हैं हमारा क्रोध, लोभ सब विदा हो गया। पर, सच तो यह है कि जब कहीं अकेले ही हों तो क्रोध आएगा भी किस पर। संसार के सारे काम करते हुए, लोगों के बीच रहते हुए यदि भीतर की बुराइयां छूटें, तब माना जाएगा कुछ छूटा है। इसीलिए कथा सुनने जाएं तो भीतर का कंपन बंद हो। तब आप बाहर से शांत हो पाएंगे।
Gulabi Jagat

Gulabi Jagat

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