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जब से संसद का मानसून सत्र शुरू हुआ था (19 जुलाई से) तब से ही समूचा विपक्ष लामबंद होकर मोदी सरकार
संयम श्रीवास्तव। जब से संसद का मानसून सत्र शुरू हुआ था (19 जुलाई से) तब से ही समूचा विपक्ष लामबंद होकर मोदी सरकार (Modi Government) के विरोध में सदन की कार्यवाही बाधित कर रहा था. लेकिन सत्र के आखिरी हफ्ते में मोदी सरकार ने ओबीसी बिल (OBC Bill) का ऐसा दांव चला कि पूरा विपक्ष विरोध भूलकर सरकार के समर्थन में खड़ा हो गया. दरअसल केंद्र सरकार ओबीसी वर्ग को लेकर एक नया बिल लेकर आई है, जिस पर सरकार के साथ-साथ हर मुद्दे पर विरोध करने वाला विपक्ष भी पक्ष में खड़ा हो गया है. बीते कई दिनों से यह मांग एनडीए (NDA) के गठबंधन के नेताओं की ओर से भी आ रही थी कि सरकार ओबीसी बिल ले आए.
अब इस बिल के तहत संविधान के 102वें संशोधन के कुछ प्रावधानों को फिर से परिभाषित किया जाएगा. साथ ही राज्यों को यह अधिकार दिया जाएगा कि वह अपने प्रदेश में ओबीसी वर्ग की पहचान कर सकें. पहले यह अधिकार राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग को था. इसे टेक्निकली समझने के लिए ऐसे समझिए कि अब संविधान के 127वें संशोधन के तहत अनुच्छेद 342 ए में संशोधन किया जाएगा. इसके सेक्शन 1,2 को संशोधित किया जाएगा, साथ ही सेक्शन 342 A(3) को इसमें जोड़ा जाएगा. हालांकि राज्यों को आर्थिक व सामाजिक रूप से पिछड़े वर्ग को चिन्हित करने के लिए अधिसूचना जारी करने का अधिकार 366 (26C) और 338B (9) में संशोधन करके दिया जाएगा.
दरअसल इस कानून को लेकर तब से और मांग तेज हो गई थी जब सुप्रीम कोर्ट ने मराठा आरक्षण के मामले पर फैसला सुनाते हुए कहा था कि राज्यों को शैक्षिक सामाजिक रूप से पिछड़े वर्ग को चिन्हित करने का अधिकार नहीं है, यह अधिकार केवल केंद्र के पास है. लेकिन अब जब यह नया ओबीसी बिल पास हो जाएगा तो राज्यों को यह अधिकार होगा कि वह पिछड़े वर्ग को अपने प्रदेश में चिन्हित कर सकें.
सिर्फ इस मुद्दे पर सरकार के समर्थन में विपक्ष
इस बिल पर विपक्ष सरकार का समर्थन करेगा इसको लेकर राज्यसभा में नेता प्रतिपक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने विपक्ष के नेताओं की एक बैठक के बाद फैसला किया था. हालांकि मलिकार्जुन खड़गे ने यह भी साफ कर दिया था कि इस बिल पर सरकार को समर्थन देने का यह कतई मतलब नहीं है कि हम अन्य मुद्दों पर भी सरकार के साथ हैं. मलिकार्जुन खड़गे ने कहा, 'यह संशोधन राज्यों के उस अधिकार को बहाल करने के लिए किया जा रहा है जिससे वह सामाजिक और आर्थिक रूप से पिछड़े समुदाय को चिन्हित कर सकें. इस देश में आधे से ज्यादा आबादी पिछड़े समुदाय की है इसलिए जिस दिन यह बिल पेश किया जाएगा उस पर चर्चा होगी और उसी दिन उसे पास कर दिया जाएगा.'
मलिकार्जुन खड़गे के कहने का सीधा मतलब था कि इस मुद्दे पर विपक्ष भले ही सरकार के साथ है, लेकिन तीनों कृषि कानून और पेगासस जासूसी के मुद्दे पर विपक्ष अपना हंगामा मानसून सत्र के दौरान जारी रखेगा. दरअसल इस मुद्दे पर विपक्ष का सरकार का साथ देना उसकी मजबूरी है, उसे मालूम है कि पिछड़ा वर्ग देश में सबसे ज्यादा आबादी वाला समुदाय है इसलिए आगामी चुनाव को देखते हुए इसे बिल्कुल भी नाराज नहीं किया जा सकता. लेकिन विपक्ष मोदी सरकार को इस कानून का इतनी आसानी से श्रेय लेने देगी इस पर जरूर सवाल उठते हैं.
इस बिल के पास होने के बाद क्या बदलाव होंगे?
जिस तरह से इस बिल पर विपक्ष सरकार के साथ खड़ा है उसे देखकर पूरा अंदाजा लगाया जा सकता है कि इस संविधान संशोधन पर मुहर लग जाएगी. दरअसल आर्टिकल 342 A और 366 (26C) के संशोधन पर अगर संसद में मुहर लग जाती है तो उसके बाद राज्यों के पास यह अधिकार हो जाएगा कि वह अपनी मर्जी से जातियों को अधिसूचित कर सकती हैं. जैसे महाराष्ट्र में मराठा समुदाय, हरियाणा में जाट समुदाय, गुजरात में पटेल समुदाय, कर्नाटक में लिंगायत समुदाय कब से यह मांग कर रहा है कि उसे ओबीसी वर्ग में शामिल किया जाए. हालांकि अब तक यह अधिकार राज्यों को नहीं था लेकिन इस संशोधन पर मुहर लगते ही यह अधिकार राज्यों को मिल जाएगा कि वह किन जातियों को ओबीसी वर्ग में शामिल करें.
बात सिर्फ यहां ओबीसी वर्ग में शामिल करने की ही नहीं है, जाहिर सी बात है अगर यह जातियां ओबीसी वर्ग में आती हैं तो इन्हें भी पिछड़े समुदाय जितना आरक्षण मिलने लगेगा और इन जातियों के खुद को ओबीसी वर्ग में शामिल कराने की मांग का आधार भी यही है. महाराष्ट्र में तो जब मराठा समुदाय ने आरक्षण की मांग की थी तो उस वक्त के तत्कालीन मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने उन्हें आरक्षण भी दिया था. हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने 5 मई को दिए अपने फैसले में इसे खारिज कर दिया था और इसे केवल केंद्र का अधिकार बताया था. लेकिन इस संशोधन के पारित होने के बाद यह अधिकार अब राज्य सरकारों के पास भी होगा.
क्या बीजेपी का यह तीर निशाने पर लगेगा
भारतीय जनता पार्टी के लिए यह ओबीसी बिल बेहद जरूरी था. मोदी सरकार ने इस एक तीर से दो निशाने साधे हैं. पहला तो यह कि इस बिल को लाकर नरेंद्र मोदी सरकार ने एनडीए के अंदर से उठ रही बगावत को शांत कर दिया. आपको मालूम होगा कि बीते कई दिनों से इस मुद्दे को लेकर नीतीश कुमार और हम पार्टी के मुखिया जीतन राम मांझी जैसे नेता बगावती सुर अख्तियार किए हुए थे. लेकिन इस बिल को लाकर मोदी सरकार ने उन्हें फिर से गठबंधन में बने रहने को मजबूर कर दिया है. दूसरा सबसे बड़ा निशाना है 2022 का विधानसभा चुनाव और 2024 का लोकसभा चुनाव.
2022 में उत्तर प्रदेश समेत पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव होने हैं, जहां उन वर्गों की आबादी अच्छी खासी है जो खुद को ओबीसी में शामिल कराना चाहती हैं. अब बीजेपी इस बिल के पास होने के बाद 2022 और 2024 के चुनाव में इसे भुनाने का पूरा प्रयास करेगी. वैसे भी अगर बीते कुछ सालों में नरेंद्र मोदी के सरकार की नीतियों को देखें तो वह पूरी तरह से ओबीसी केंद्रित नजर आएंगी. चाहे मंत्रिमंडल का विस्तार हो या फिर पार्टी संगठन में दी गई जिम्मेदारियां. हर जगह ओबीसी वर्ग को अच्छी खासी तादात में रखा गया है. हाल ही में मेडिकल एजुकेशन में ओबीसी तबके को दिया गया आरक्षण भी इस दिशा में एक कदम था. ऐसा भारतीय जनता पार्टी सिर्फ इसलिए कर रही है क्योंकि उसे मालूम है कि अगर ओबीसी वर्ग को अपने पाले में कर लिया गया तो आने वाले कई वर्षों तक उसे चुनाव हराना विपक्ष के लिए नामुमकिन हो जाएगा.
इस एक बिल ने लालू यादव का मास्टर प्लान फेल कर दिया
जातीय आधारित जनगणना को लेकर लालू यादव एक मास्टर प्लान बना रहे थे, इसे मुद्दा बनाकर वह एक 2024 का लोकसभा चुनाव लड़ते. इसी को लेकर बीते दिनों उन्होंने शरद यादव, अखिलेश यादव और मुलायम सिंह यादव से मुलाकात भी की थी. कहीं ना कहीं नीतीश कुमार भी लालू यादव के इस मास्टर प्लान का हिस्सा लगने लगे थे, क्योंकि इस मुद्दे पर दोनों घोर विरोधी नेताओं के सुर एक जैसे थे. यही नहीं यूपी में बीजेपी की सहयोगी पार्टी अपना दल (एस) ने भी जातीय आधारित जनगणना की मांग कर दी थी, जो बीजेपी के लिए खतरे की घंटी थी. हालांकि अब ओबीसी बिल लाकर पीएम मोदी ने लालू यादव और अखिलेश यादव के उस मास्टर प्लान पर भी पानी फेर दिया है जिसके माध्यम से वह ओबीसी वर्ग को अपने पाले में करना चाहते थे.
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