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मोदी-शाह की जोड़ी
उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की पार्टी के भीतर ही इतनी तारीफें होने लगी हैं कि ऐसा महसूस होने लगा है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह की भारतीय जनता पार्टी (BJP) की मशहूर जोड़ी अब त्रिमूर्ति बनती जा रही है, जिसमें भगवा बाना पहनने वाले और दूसरा कार्यकाल हासिल करने के लिए प्रयासरत उत्तर प्रदेश के शीर्ष नेता शामिल हो गए हैं.
BJP के शीर्ष निर्णायक निकाय - राष्ट्रीय कार्यकारिणी - की कल हुई बैठक में योगी आदित्यनाथ को चुनाव की तैयारियों को लेकर अपनी प्रेज़ेन्टेशन वर्चुअली प्रस्तुत करनी थी, लेकिन सूत्रों का कहना है कि उन्हें पार्टी प्रमुख जे.पी. नड्डा ने फोन किया और न सिर्फ बैठक में हाज़िर होने के लिए आमंत्रित किया, बल्कि सत्र का राजनैतिक प्रस्ताव प्रस्तुत करने के लिए भी कहा. इस बैठक में ऐसा अवसर दिया जाना विशेष है, क्योंकि इस प्रस्ताव, जिसमें पार्टी के प्रशासन का स्वरूप तय करने वाली योजनाओं और परियोजनाओं की रूपरेखा बयान की गई है, पर पार्टी के वैचारिक संरक्षक राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) की बारीक नज़र है. वर्ष 2017 और 2018 में उत्तर प्रदेश से ही पार्टी के दिग्गज नेता और केंद्रीय रक्षामंत्री राजनाथ सिंह ने यह प्रस्ताव प्रस्तुत किया था, जिससे उनके ऊंचे कद का पता चलता है. अब योगी आदित्यनाथ के पीछे राजनाथ सिंह पूरी तरह छिप गए हैं, उत्तर प्रदेश के सबसे ताकतवर नेता के रूप में भी, और ठाकुर नेता के रूप में भी, जो रक्षामंत्री की भी जाति है. जिन अन्य राज्यों में चुनाव होने जा रहा है, उनमें से उत्तराखंड और गोवा के मुख्यमंत्रियों ने अपनी योजनाएं ऑनलाइन प्रस्तुत कीं.
एक अन्य नेता से भी खुद उपस्थित होने के लिए कहा गया - केंद्रीय पर्यावरण मंत्री भूपेंद्र यादव, जो ग्लासगो में हुए जलवायु शिखर सम्मेलन में शिरकत कर लौटे थे, और उन्हें राष्ट्रीय कार्यकारिणी के सत्र के बाद प्रेस कॉन्फ्रेंस को संबोधित करने की ज़िम्मेदारी सौंपी गई.
नेता के रूप में अद्वितीय कहे जाने वाले और RSS के स्वयंसेवकों और प्रचारकों के स्कूल से कभी जुड़े नहीं रहे योगी आदित्यनाथ को संघ का सम्पूर्ण समर्थन कैसे मिल रहा है (सुषमा स्वराज जैसे बड़े नेता भी संघ से जुड़े नहीं होने के बावजूद स्वीकार कर लिए गए थे, लेकिन बस, पार्टी में वहीं तक रहे...)
RSS द्वारा योगी आदित्यनाथ को पूरी तरह स्वीकार कर लिए जाने की वजह है, उनका संघ परिवार के लिए कुलदेवता-सरीखी तिलिस्मी शख्सियत बन जाना, क्योंकि संघ परिवार इस वक्त बहुसंख्यकों के पक्ष में कट्टर विचारों की राजनीति को गति देना चाहता है. आखिर, भगवा बाना पहनने वाले एक संन्यासी को देश के राजनैतिक रूप से सर्वाधिक महत्वपूर्ण राज्य में शासन करते देखना अपने आप में एक ऐसा बयान है, जिसकी अलग ही बानगी है. कल जो महत्व योगी आदित्यनाथ को दिया गया, उससे साबित होता है कि वह गंगा में तैरती लाशों की वीभत्स तस्वीरों से ज़ाहिर हुई नाकामी को पीछे छोड़ आए हैं (इन तस्वीरों ने उत्तर प्रदेश के 'बाबा आदम के ज़माने' की स्वास्थ्य व्यवस्था की पोल खोलकर रख दी थी) - कम से कम संघ परिवार ने तो उस नाकामी को अनदेखा कर ही दिया है. उस वक्त तो एक केंद्रीय मंत्री सहित BJP के कई नेताओं ने सार्वजनिक रूप से इस मुद्दे पर आलोचना के स्वर मुखर किए थे. तब संघ के महासचिव तथा RSS के CEO दत्तात्रेय होसबोले लखनऊ गए थे, और मुख्यमंत्री तथा उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य के साथ भोजन के दौरान मतभेदों को दूर करवाया था.
होसबोले चार दिन तक लखनऊ में रहे थे, और योगी आदित्यनाथ के प्रशासन के बारे में फीडबैक जुटाते रहे थे, जिसका निष्कर्ष यह था कि राज्य में निर्णायक जीत दिलाने के लिए पार्टी के पास सिर्फ आदित्यनाथ का ही सहारा है. कैबिनेट में फेरबदल की कहानी भी काफी दिन चलती रही, क्योंकि योगी आदित्यनाथ कुछ चुनिंदा नेताओं को मंत्रिमंडल में शामिल किए जाने को लेकर केंद्रीय नेतृत्व द्वारा डाले जा रहे दबाव की मुखाल्फत कर रहे थे, और अंततः कैबिनेट फेरबदल दो माह बाद हो पाया, जिस पर योगी आदित्यनाथ की छाप स्पष्ट थी.
योगी आदित्यनाथ को ही अमित शाह द्वारा सार्वजनिक रूप से मुख्यमंत्री पद का चेहरा बताया जाना संघ के विचार का ही समर्थन है. 29 अक्टूबर को अमित शाह ने सार्वजनिक रूप से उत्तर प्रदेश में कहा, "अगर आफ 2024 में मोदी को प्रधानमंत्री बनाना चाहते हैं, तो मुख्यमंत्री के रूप में योगी को वोट देना होगा..." इस तरह योगी और मोदी के चुनावी भविष्यों को जोड़ा जाना काफी अहम है. उत्तर प्रदेश की 80 संसदीय सीटें हमेशा से देश का प्रधानमंत्री तय करने में बेहद अहम रही है, लेकिन योगी आदित्यनाथ को मोदी के साथ जोड़ा जाना कतई असाधारण है.
इस बदलाव के पीछे का कारण यह है कि योगी आदित्यनाथ ने कोरोना की दूसरी लहर को संभालने की घनघोर नाकामी के बाद से एक ऐसे शख्स की छवि बनाने तक का सफर तय कर लिया है, जिसके पास योजना है. उन्होंने चर्चाओं का रुख इस कदर मोड़ दिया है कि अब तो उत्तर प्रदेश में विपक्ष भी कोरोना काल में उठाए गए गलत कदमों का ज़िक्र तक नहीं करता. योगी आदित्यनाथ ने सुनिश्चित कर लिया है कि अब उत्तर प्रदेश के चुनाव में भी उन्हीं मुद्दों पर चर्चा हो, जिनमें वह आसानी महसूस करते हैं - राम मंदिर, कब्रिस्तान और उनके लिए फंडिंग की कमी, और तालिबान के खिलाफ सर्जिकल स्ट्राइक की ज़ोरदार चेतावनी.
यहां तक कि अक्टूबर में केंद्रीय मंत्री की कार से चार किसानों की कुचल डालने की वीभत्स तस्वीरों, और मंत्री के बेटे की गिरफ्तारी भी योगी आदित्यनाथ के सामने बेबस हो गईं (पलटवार जैसी हिंसा में चार अन्य लोग भी मारे गए थे, जिनमें BJP कार्यकर्ता और समर्थक शामिल थे). उन्होंने शुरू में पूरी ताकत लगा दी कि प्रियंका गांधी वाड्रा जैसे विपक्ष के नेता मारे गए किसानों के परिवारों से नहीं मिल सकें. वह भले ही PR की दृष्टि से मुकसानदायक कदम रहा हो, लेकिन मुख्यमंत्री ने फिर ऐसा कर दिया, जिससे मंत्री के पुत्र को मिल रही विशेष सुविधाएं रोक देनी पड़ीं.
इससे भी अहम यह रहा कि उन्होंने गोरखनाथ मठ से अपने भरोसे के सहायकों का ही इस्तेमाल किया और किसानों के नेता राकेश टिकैत के ज़रिये किसानों तक पहुंच बनाई. इस कदम से तनाव को कम करने में खासी मदद मिली. टिकैत ने कहा कि अंत्येष्टियों और मुआवज़े का राजनीतिकरण नहीं होना चाहिए. पश्चिम उत्तर प्रदेश की कृषि बेल्ट में, जहां तीन कृषि कानूनों के चलते BJP को काफी नुकसान हो सकता था, किसान आंदोलन का डंक निकाल दिया गया. 'महाराज' कहे जाने वाले योगी आदित्यनाथ ने 'टेनी महाराज' (जिनकी कार से किसान कुचलकर मारे गए) की हवा निकालकर रख दी.
कुछ भी भाग्य भरोसे न छोड़कर BJP भी ढके-छिपे तरीके से असदुद्दीन ओवैसी के साथ मिलकर काम करती महसूस हो रही है, जो उत्तर प्रदेश में चुनाव लड़ने जा रहे हैं. प्रदेश में चर्चा है कि ओवैसी भी BJP की ही 'बी' टीम का हिस्सा हैं, जो वोटों का ध्रुवीकरण करने के लिए तैयार हैं. ऐसा कर, वह BJP के लिए हिन्दुओं के वोटों को एकजुट करने और मुसलमानों के वोटों का बंटवारा कर डालने में मददगार साबित होंगे.
सो, फिलहाल योगी आदित्यनाथ पूरी तरह तैयार नज़र आते हैं.
स्वाति चतुर्वेदी लेखिका तथा पत्रकार हैं, जो 'इंडियन एक्सप्रेस', 'द स्टेट्समैन' तथा 'द हिन्दुस्तान टाइम्स' के साथ काम कर चुकी हैं...
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