सम्पादकीय

आखिर क्यों शांति एवं सद्भाव का संदेश देने वाले पर्व और उनसे जुड़े आयोजन हिंसा का शिकार हों?

Gulabi Jagat
18 April 2022 12:39 PM GMT
आखिर क्यों शांति एवं सद्भाव का संदेश देने वाले पर्व और उनसे जुड़े आयोजन हिंसा का शिकार हों?
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रामनवमी पर देश के विभिन्न भागों में शोभायात्राओं पर हमले की चर्चा अभी जारी ही थी
रामनवमी पर देश के विभिन्न भागों में शोभायात्राओं पर हमले की चर्चा अभी जारी ही थी कि दिल्ली में हनुमान जन्मोत्सव पर निकाली गई एक शोभायात्रा भी हिंसा की चपेट में आ गई। इसी तरह की हिंसा हरिद्वार में भी हुई और आंध्र एवं कर्नाटक के शहरों में भी। इसके पहले हिंदू नववर्ष के अवसर पर भी हिंसक घटनाएं हो चुकी हैं, जिनमें राजस्थान के करौली की घटना की गूंज तो अभी तक सुनाई दे रही है। ऐसी घटनाएं सामाजिक तानेबाने को क्षति पहुंचाने के साथ कानून एवं व्यवस्था के समक्ष चुनौती भी खड़ी करती हैं।
यह चिंता की बात है कि यह एक चलन सा बनता जा रहा है कि जब सार्वजनिक स्थलों पर कोई धार्मिक आयोजन होता है तो प्राय: पहले किसी बात को लेकर विवाद होता है और फिर हिंसा शुरू हो जाती है। कई बार तो यह हिंसा बड़े पैमाने पर और किसी सुनियोजित साजिश के तहत होती दिखती है। मध्य प्रदेश के खरगोन और गुजरात के हिम्मतनगर एवं खंभात में हुई भीषण हिंसा यही संकेत करती है कि उसे लेकर पूरी तैयारी की गई थी। दिल्ली के जहांगीरपुरी इलाके की हिंसा भी इसी ओर इशारा कर रही है।
कुछ घटनाओं के मूल में भड़काऊ नारे लगाने के आरोप भी सामने आए हैं। इन आरोपों की जांच होने के साथ यह भी देखा जाना चाहिए कि क्या कुछ लोग किसी भी बहाने भड़कने और हिंसा करने के लिए तैयार बैठे रहते हैं? वास्तव में जैसे यह एक सवाल है कि क्या कुछ धार्मिक आयोजनों में मर्यादा और गरिमा का उल्लंघन होने लगा है, वैसे ही यह भी कि क्या कहीं ऐसा होने पर पथराव, तोड़फोड़ और आगजनी करना जरूरी समझ लिया गया है? इन प्रश्नों पर दलगत राजनीति से परे होकर गंभीरता के साथ विचार होना चाहिए। इसी तरह पुलिस प्रशासन को भी यह देखना होगा कि वैमनस्य बढ़ाने वाली घटनाएं क्यों बढ़ती चली जा रही हैं?
नि:संदेह समाज को भी यह समझने की आवश्यकता है कि जब देश कई चुनौतियों से दो-चार है, तब राष्ट्रीय एकता एवं सद्भाव को बल देना सबकी पहली और साझी प्राथमिकता बननी चाहिए। ताली एक हाथ से नहीं बज सकती। एक विभाजित और वैमनस्यग्रस्त समाज न तो अपना भला कर सकता है और न ही देश को आगे ले जा सकता है। समय आ गया है कि उन मूल कारणों पर विचार किया जाए, जिनके चलते तनाव बढ़ाने वाली घटनाएं थम नहीं रही हैं।
दैनिक जागरण के सौजन्य से सम्पादकीय
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