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पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव?
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव (Uttar Pradesh Assembly Election 2022) से पहले नए वेरिएंट ओमिक्रॉन (Omicron) के बढ़ते प्रभाव को लेकर चिंता जताई है. न्यायमूर्ति शेखर कुमार यादव ने प्रधानमंत्री और चुनाव आयुक्त से विधानसभा चुनाव में कोरोना (Corona) की तीसरी लहर (Third Wave) से जनता को बचाने के लिए चुनावी रैलियों पर रोक लगाने का अनुरोध किया है. उन्होंने कहा है कि चुनाव प्रचार दूरदर्शन और समाचार पत्रों के माध्यम से हो. हाईकोर्ट ने चुनावी सभाएं और रैलियों को रोकने के लिए कड़े कदम उठाने की हिदायत दी है. साथ ही प्रधानमंत्री से चुनाव टालने पर भी विचार करने का कहा है, क्योंकि जान है तो जहान है.
इलाहबाद हाईकोर्ट की इस नसीहत के बाद ये सवाल अहम हो गया है कि क्या कोरोना की तीसरी लहर की दस्तक के बाद पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव टाले जा सकते? हाईकोर्ट ने कहा है कि संभव हो सके तो फरवरी में होने वाले चुनाव को एक-दो माह के लिए टाल दें, क्योंकि जीवन रहेगा तो चुनावी रैलियां, सभाएं आगे भी होती रहेंगी. जीवन का अधिकार हमें भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 में भी दिया गया है. हाईकोर्ट ने कोरोन के तेज़ी से फैलने और इसकी वजह से लगातार बढ़ते ख़तरे पर मीडिया में आई ख़बरों का हवाला भी दिया है. हाईकोर्ट ने कहा है कि इस महामारी को देखते हुए चीन, नीदरलैंड, आयरलैंड, जर्मनी, स्कॉटलैंड जैसे देशों ने पूर्ण या आंशिक लॉकडाउन लगा दिया है. लिहाज़ा देश मे भी ऐसे हालात से निपटने के लिए सख़्त क़दम उठाए जाएं.
चुनावी रैलियों की भीड़ बढ़ा रही चिंता
दरअसल यूपी में चुनावी रैलियों में उमड़ रही हज़ारों-लाखों की भीड़ चिंता बढ़ा रही है. गुरुवार को प्रधानमंत्री ने खुद अपनी रैली में आई भीड़ पर खुशी जताई थी. हालांकि शाम को उन्होंने कोरोना के ओमिक्रान वेरिएंट के तेजी से फैलने की स्थिति का जायज़ा भी लिया था. हाईकोर्ट ने कहा है कि दूसरी लहर में लाखों की संख्या में लोग कोरोना संक्रमित हुए थे और बड़े पैमान पर लोगों की मौत हुई थी. यूपी के पंचायत चुनाव और पश्चिम बंगाल के विधानसभा चुनाव ने लोगों को काफी संक्रमित किया, जिससे लोग मौत के मुंह में गए. अब यूपी विधानसभा का चुनाव नज़दीक है. सभी पार्टियां रैली, सभाएं करके भीड़ जुटा रहीं हैं, जहां किसी भी प्रकार का कोरोना प्रोटोकॉल संभव नहीं है और इसे समय से नहीं रोका गया तो परिणाम दूसरी लहर से कहीं अधिक भयावह होंगे.
क्या हुआ था पिछले विधानसभा चुनावों में
इसी साल मार्च-अप्रैल मे हुए पांच राज्यों के विधानसभा और उत्तर प्रदश में पंचायत चुनाव के दौरान कोरोना की दूसरी लहर आ गई थी. चुनाव वाले राज्यों केरल, तमिलनाडु, पुडुचेरी, पश्चिम बंगाल और असम में चुनावी रैलियों में उमड़ी भीड़ की वजह से कोरोना के मामले बहुत तेज़ी से बढ़े थे. चुनाव शुरू होने के दो हफ्तों के भीतर इन राज्यों में 100 फीसदी से लेकर पांच सौ फीसदी से ज्यादा तक मामले बढ़ गए थे. उस समय इन राज्यों में कोरोना के आंकड़े बेहद डरावने थे. इन आंकड़ों के मुताबिक़ चुनाव 1 अप्रैल से 14 अप्रैल तक असम में 532%, पश्चिम बंगाल में 420%, पुडुचेरी में 165%, तमिलनाडु में 159%, और केरल में 103% और कोरोना के मामले बढ़ गए थे. इन पांच राज्यों में मौतों के आंकड़ों में भी औसतन 45% का इज़ाफ़ा हुआ था.
रद्द करनी पड़ी थीं चुनावी रैलियां
एक चुनावी रैली मे भीड़ को देखकर प्रधानमंत्री मोदी के ख़ुशी जताने पर उनकी सोशल मीडिया पर काफी आलोचना हुई थी. सबसे पहले कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गंधी ने अपनी तमाम चुनावी रैलिया रद्द करके सिर्फ़ ऑनलाइन रैलियां करने का ऐलान किया था. बाद में ममता बनर्जी और प्रधानमंत्री नरेद्र मोदी ने भी ऐसा ही किया. उसके बाद चुनाव आयोग ने चुनावी रैलियों पर रोक लगा दी थी. पश्चिम बंगाल के आख़िरी दो चरणों के मतदान से पहले सिर्फ ऑन लाइन ही चुनावी सभाएं हुई थीं. इससे पहले देशभर में कोरोना प्रोटोकॉल लागू होने के बावजूद बड़े-बड़े नेता बग़ैर मास्क लगाए और समाजिक दूरी के नियम का उल्लघंन करते हुए लोगों के झुंड के बीच नज़र आ रहे थे. राजनीतिक दलों पर सत्ता के लिए आम लोगों का जीवन ख़तरे में डालने के आरोप लगे थे. रैलियों में भीड़ जुटाने के लिए सभी दलों की खूब आलोचना हुई थी.
चुनाव रद्द करने की भी हुई थी मांग
मार्च अप्रैल में हुए पांच राज्यों के विधान साभा चुनावों के टालने की भी मांग हुई थी लेकिन तब चुनाव आयोग ने इसे खारिज कर दिया था. हालांकि चुनाव के दौरान तेज़ी से बढ़े कोरोना के मामलों के बाद दायर हुई एक याचिका में मद्रास हाईकोर्ट ने चुनाव आयोग को कड़ी फटकार लगाई थी. कोरोना काल में चुनाव आयोग के फैसला करने वाले अधिकारियों के ख़िलाफ़ मुकदमा तक दर्ज करने की चेतावनी तक दी थी. चुनावों के बीच भी कुछ सामाजिक कार्यकर्तओं ने चुनावों को रद्द करने की मांग की थी तो चुनाव आयोग ने यह कर इसे ख़ारिज कर दिया था कि एक बार चुनावी प्रक्रिया शुरू होने के बाद इसे रोका नहीं जा सकता. कोरोना काल में चुनाव कराने के लेकर चुनाव आयोग की काफी आलोचना हुई थी. शायद इसी वजह से बाद में चुनाव आयोग ने काफ़ी दिनों तक उपचुनाव नहीं कराए.
क्या हुआ था यूपी के पंचायत चुनाव में
मार्च-अप्रैल में पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव के साथ ही यूपी में पंचायत केस चुनाव भी हुए थे. हालांकि कोरोना के चलते इन्हें टालने के लिए हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की गई थी. तब हाईकोर्ट ने यूपी सरकार को 30 अप्रैल से पहले हर हाल में चुनाव कराने का आदेश दिया था. कोरोना दूसरी लहर के बीच यूपी में पंचायत चुनाव हुए थे. इन चुनावों में ड्यूटी करने वाले सरकारी कर्मचारी बड़े पैमाने पर कोरोना से संक्रमित हुए थे. बड़े पैमाने पर इनकी मौत भी हुई थी. यूपी के शिक्षक संघ ने 1,621 शिक्षकों की मौत का दावा किया था. हाई कोर्ट की फटकार के बाद यूपी सरकार ने ड्यूटी के दौरान जान गंवाने वालों के परिवार वालों को 30-30 लाख रुपये का मुआवज़ा देने का फैसला करना पड़ा. हालांकि सरकार ने पंचायत चुनाव के दौरान ड्यूटी करने वाले मृत कर्मचारियों का कोई आधिकारिक आंकड़ा जारी नहीं किया.
क्या टाले जा सकते हैं पंच राज्यों के चुनाव
अगर मार्च-अप्रैल में कोरोना की दूसरी लहर के बीच पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव कराना ग़लती थी तो तीसरी लहर की दस्तक के बाद इस तरह का गलत कदम उठाना अक़्लमंदी नहीं होगी. देश में कोरोना के ओमिक्रोन का प्रकोप लगातार बढ़ता जा रहा है. केंद्र सरकार राज्यों को संक्रमण फैलने से रोकने के लिए सभी ज़रूरी क़दम उठाने के निर्देश जारी कर चुकी है. कई राज्यों में रात का कर्फ्यू लगा दिया गया. उत्तर प्रदेश भी इसमें शामिल है. हाईकोर्ट की सख़्त टिप्पणी के बाद चुनाव टालने पर बहस शुरू हो गई है. इसके पक्ष में कई तर्क दिए जा रहे हैं. अभी चुनवों का तारीख़ों का ऐलान नहीं हुआ है. लिहाज़ा चुनाव टालने में कोई दिक़्क़त नहीं आएगी. केंद्र सरकार और चुनाव आयोग चाहे तो विशेष परिस्थितियों का हवाला देकर कुछ महीनों के लिए चुनाव को टाल सकते हैं.
किन परिस्थितियो में टाले जा सकते हैं चुनाव?यूं तो जनप्रतिनिधित्व क़ानून में चुनाव टलने या रद्द करके के कई प्रावधान हैं. किसी उम्मीदवार की मौत, पैसों के दुरुपयोग यानि पैसों का इस्तेमाल करके वोट ख़रीदने की कोशिश और बूथ कैप्चरिंग होने पर किसी भी एक या एक से ज़्यादा सीटों पर चुनाव रद्द हो जाता है. चुनाव के दौरान अगर कहीं दंगा-फसाद या प्राकृतिक आपदा की स्थिति पैदा हो जाए तो वहां चुनाव टाला जा सकता है. जनप्रतिनिधित्व कानून की धारा 57 के में यह प्रावधान है. इसके तहत अगर चुनाव वाली जगह पर दंगा-फसाद या प्राकृतिक आपदा आती है तो वहां तो पीठासीन अधिकारी चुनाव टालने का फैसला ले सकते हैं. लेकिन अगर पूरे राज्य में या बड़े स्तर पर ऐसे हालात पैदा हो जाएं तो चुनाव आयोग चुनाव टालने पर फैसला ले सकता है. कोरोना के हालात भी ऐसे ही हैं. इसलिए चुनावों को टालने का फैसला चुनाव आयोग ही कर सकता है.
पहले कब-कब टले चुनाव?
ऐसा नहीं है कि पहली बार चुनाव टालने की बात उछल रही हो. पहले भी कई बार अलग-अलग कारणों से चुनाव टले हैं. 1991 में पहले चरण की वोटिंग के बाद भूतपूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की हत्या हो गई थी. इसके बाद चुनाव में आयोग ने अगले चरणों के चुनाव क़रीब एक महीने के लिए टाल दिए थे. 1991 में ही पटना लोकसभा में बूथ कैप्चरिंग होने पर आयोग ने चुनाव रद्द कर दिया गया था. 1995 में बिहार विधानसभा चुनाव के दौरान बूथ कैप्चरिंग के मामले सामने आने के बाद 4 बार तारीखें आगे बढ़ाई गईं थीं. बाद में बड़े पैमाने पर अर्धसैनिक बलों की निगरानी में कई चरणों में चुनाव हुए थे. 2019 के लोकसभा चुनाव में तमिलनाडु की वेल्लोर सीट से डीएमके उम्मीदवार के घर से 11 करोड़ कैश बरामद हुआ था. इसके बाद वहां चुनाव को रद्द कर दिया गया था.
दुनिया में कहां-कहां टले कोरोना का चलते चुनाव
दुनिया के बहुत से देशों में कोरोना के चलते दो महीनों से लेकर एक साल तक चुनाव टाले गए हैं. दिसंबर 2019 में दुनिया में कोरोना का कहर बरपाना शुरू करने के बाद पिछले साल यानि 2020 और इस साल 2021 में दुनिया के 79 देशों में राष्ट्रीय या प्रांतिय चुनाव टाले गए हैं. जबकि 146 देशो में तयशुदा कार्यक्रम के मुताबिक़ ही चुनाव हुए हैं. ऑस्ट्रेलिया में न्यी साउथ वेल्स राज्य के चुनाव सितंबर 2020 से सितंबर 2021 तक यानि सालभर के लिए टाले गए. फिर इन्हें दिसंबर 2021 तक के लिए और अब मई 2022 तक के लिए टाल दिया गया. इंडोनेशिया में स्थानीय चुनाव सितंबर 2020 से दिसंबर तक टाले गए. इसी तरह श्रीलंका में संसदीय चुनाव अप्रैल 2020 में होने थे. कोरोना की पहली लहर अपने चरम पर होने की वजह से चुनाव अगस्त में कराए गए.
अगर दुनियाभर में कोरोना के चलते चुनाव टाले जा सकते हैं तो फिर भारत में ऐसा क्यों नहीं हो सकता? संविधान का अनिच्छेद 21 हर नागरिक को जीने का अधिकार देता है. इसकी रक्षा के लिए हर चुनाव टालना ज़रूरी हो तो इन्हें टालने मे हिचकना नहीं चाहिए. इस बारे में सर्वदलीय बैठक बुलाकर फैसला किया जा सकता है कि चुनाव टालने की स्थिति में विधानसभाओं का कार्यकाल बढ़ाया जाए या फिर चुनाव वाले राज्यों में राष्ट्रपति शासन लगा दिया जाए. इससे सरकार और चुनाव आयोग को छह महीने का वक्त मिल जाएगा. कोरोना की तीसरी लहर गुज़रने के पांचों राज्यों में चुनाव कराए जा सकते हैं. फैसला चुनाव केंद्र सरकार और आयोग को करना है.
यूसुफ अंसारी
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