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कहानी की शुरूआत दक्षिणी राज्य तेलंगाना की राजधानी हैदराबाद से होती है
प्रवीण कुमार।
"नीतीश कुमार (Nitish Kumar) बीजेपी गठबंधन से अलग होने का विचार कर रहे हैं. एनडीए (NDA) की एकता में विपक्ष ने सेंध लगा दी है और नीतीश कुमार को राष्ट्रपति चुनाव में विपक्ष का उम्मीदवार बनाया जाएगा." करीब एक दशक से अधिक वक्त से मोदी (Modi) फोबिया में जी रहे नीतीश कुमार राजनीतिक सत्ता की बिसात पर जब खुद को फंसा महसूस करते हैं तो इस तरह की अफवाहें मीडिया की सुर्खियां बनती हैं. इस बार नीतीश को लेकर अफवाह तीसरे मोर्चे के नेता के तौर पर, 2024 में पीएम उम्मीदवार के तौर पर या फिर उससे पहले 2022 में राष्ट्रपति उम्मीदवार बनाए जाने को लेकर उड़ रही हैं.
दरअसल, बिहार की राजनीति में सब-कुछ ठीक नहीं चल रहा. ऐसी आशंका जताई जा रही है कि पीएम मोदी किसी भी वक्त नीतीश कुमार को फरमान जारी कर सकते हैं कि सत्ता की बागडोर भाजपा को सौंप दीजिए और आप किसी प्रदेश का राज्यपाल बन जाइए या फिर उपराष्ट्रपति. लेकिन क्या नीतीश कुमार भी ऐसा ही सोचते हैं जैसा पीएम मोदी चाह रहे हैं? शायद नहीं और इसी वजह से नीतीश कुमार ने दबाव की राजनीति का दांव चला है. नीतीश के बारे में ताजा अफवाह इसी दबाव की राजनीति का हिस्सा है. लेकिन इसका असली रंग-रूप क्या होगा और मुलाकातों की राजनीति से निकली इस अफवाह का असर क्या होगा यह सब आगामी 10 मार्च का दिन तय करेगा जब उत्तर प्रदेश समेत पांच राज्यों का जनादेश देश के सामने होगा.
पीके की चाल से तो नहीं फैली अफवाह?
कहानी की शुरूआत दक्षिणी राज्य तेलंगाना की राजधानी हैदराबाद से होती है. 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा के प्रदर्शन से तेलंगाना राष्ट्र समिति के नेता और मुख्यमंत्री के. चंद्रशेखर राव बेहद घबराए हुए हैं. घबराहट इतनी अधिक है कि आगामी विधानसभा चुनाव में अपना किला बचाने के लिए देश के सबसे बड़े चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर से डील तक पक्की कर ली है.
इसी महीने के पहले हफ्ते की बात है, प्रशांत किशोर ने केसीआर से मीटिंग की थी जिसमें 2023 में होने वाले तेलंगाना विधानसभा चुनाव में टीआरएस के प्रचार अभियान को लेकर बातचीत हुई. कहा जाता है कि पीके से केसीआर की डील पक्की हो चुकी है. उसके बाद प्रशांत किशोर पटना पहुंच नीतीश कुमार से मिलते हैं और केसीआर मुंबई पहुंचकर महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे और एनसीपी चीफ शरद पवार से मिलते हैं.
खास बात ये भी रही कि केसीआर से मुलाकात से पहले उद्धव ने सोनिया गांधी से फोन पर बात की थी. इन सब मुलाकातों के बात पहले तो यह खबर फैली कि 2024 के चुनाव में नीतीश कुमार को तीसरे मोर्चे का चेहरा बनाया जा सकता है और फिर आज अचानक अफवाह फैली कि नीतीश कुमार को 2022 में विपक्ष की तरफ से राष्ट्रपति का उम्मीदवार बनाया जाएगा. अभी तक ये महज अफवाह है और वो भी बिना वजन वाला. और ये सब पीके की चाल है. ये अलग बात है कि इस अफवाह से मोदी-शाह पर दबाव बनाने के लिए नीतीश का हित भी सध रहा है.
नीतीश कुमार का वक्त निकल चुका है
इसमें कोई दो राय नहीं कि नीतीश कुमार राजनीति के मंझे खिलाड़ी हैं. लेकिन इस बात से भी इनकार नहीं कि नीतीश कुमार का वक्त अब निकल चुका है. प्रधानमंत्री पद के लिए विपक्ष का उम्मीदवार बनने का मौका नीतीश कुमार अपने पलटू राम के व्यवहार की वजह से 2019 में खुद ही गंवा चुके हैं. साथ ही उन्हें ये भी पता है कि 2022 के राष्ट्रपति चुनाव में ऐसी कोई सूरत बनने नहीं जा रही जिसमें विपक्ष के उम्मीदवार को जीत मिल जाए.
कहने का मतलब यह है कि नीतीश कुमार राष्ट्रपति या उपराष्ट्रपति तभी बन सकते हैं जब सत्ता पक्ष यानी मोदी-शाह की भाजपा की तरफ से उम्मीदवार बनाया जाए. लेकिन इस बात की संभावना ना के बराबर है कि भाजपा नीतीश कुमार को राष्ट्रपति का उम्मीदवार बनाए. हां, उपराष्ट्रपति पद के लिए उम्मीद की जा सकती है. कहने का तात्पर्य यह है कि नीतीश कुमार को जो कुछ भी हासिल होगा वह सत्ता पक्ष की मेहरबानी से ही संभव है. तो क्या नीतीश कुमार बिहार के मुख्यमंत्री पद को दांव पर लगाकर रिस्क उठाने की स्थिति में हैं? शायद नहीं, क्योंकि मोदी, योगी और शाह की तरह नीतीश कुमार भी सत्ता प्रेमी हैं.
हां, इतना जरूर है कि उनकी सत्ता की राह में जो भी कांटे आते हैं उसे हटाने की हर तरकीब वो जानते हैं. ताजा अफवाह को भी सियासी पंडित नीतीश की उसी तरकीब के रूप में आंक रहे हैं. कहा जा रहा है कि बिहार में सब कुछ ठीक नहीं चल रहा है और नीतीश कुमार पर इस बात के लिए दबाव बनाया जा रहा है कि वह बिहार की सत्ता भाजपा को सौंप दें.
राष्ट्रपति चुनाव से जुड़ा है केसीआर का हित
इसी साल जुलाई-अगस्त में राष्ट्रपति का चुनाव होना है. ऐसे में तेलंगाना के सीएम चाहते हैं कि देश में एक ऐसा तीसरा मोर्चा खड़ा किया जाए जो भाजपा को 2024 के चुनाव में कड़ी टक्कर दे सके. केसीआर का मानना है कि तीसरा मोर्चा गैर-भाजपाई और गैर-कांग्रेसी दलों का एक बड़ा गठबंधन होगा जिसमें ममता की टीएमसी, लालू यादव की राजद, अखिलेश की सपा, केजरीवाल की आप, उद्धव की शिवसेना और पवार की एनसीपी की बड़ी भूमिका होगी. चूंकि ये सभी दल उत्तर और मध्य भारत में भाजपा के लिए बड़ी मुश्किल खड़ी करेंगे, लिहाजा अपने बड़े दुर्ग को बचाने के लिए 2023 के तेलंगाना चुनाव में भाजपा उस ताकत से नहीं लड़ पाएगी.
राष्ट्रपति चुनाव के बहाने तीसरा मोर्चा खड़ा करने की कवायद में केसीआर इसीलिए इतनी भागदौड़ कर रहे हैं क्योंकि केसीआर इस बात को लेकर काफी चिंतित हैं कि बीजेपी उनके राज्य में मजबूत हो रही है. विगत दो वर्षों में उनकी पार्टी टीआरएस को स्थानीय चुनावों और उपचुनावों में हार का सामना करना पड़ा है. 2019 के लोकसभा चुनाव में भी 19 प्रतिशत वोट के साथ तीन सीटें जीतकर भाजपा ने इस बात का अहसास करा दिया था कि हैदराबाद बहुत दूर नहीं है. हालांकि संख्या बल के हिसाब से तेलंगाना में बीजेपी अब भी टीआरएस से बहुत दूर है. लेकिन, बीजेपी की धीमे-धीमे बढ़ती ताकत केसीआर को यह एहसास कराने के लिए काफी है कि बीजेपी को अब नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है.
बहरहाल, जिस नीतीश कुमार को लेकर इतनी बड़ी अफवाह राजनीतिक गलियारों में तैर रही है, उनकी तरफ से इस बारे में अभी तक कोई बयान नहीं आया है. लेकिन इतना जरूर है कि बिहार की सत्ता में नीतीश कुमार भाजपा के साथ पिछले कुछ दिनों से बहुत सहज महसूस नहीं कर रहे हैं और विकल्प की तलाश में जुटे हैं. लेकिन इसका यह मतलब कतई नहीं लगाया जा सकता कि वह तीसरे मोर्चे की तरफ से खुद को राष्ट्रपति उम्मीदवार के तौर पर पेश कर दें. थोड़ी देर के लिए मान भी लिया जाए कि नीतीश कुमार को लेकर जो कुछ कहा जा रहा है वह सच के बेहद करीब है तो इसे भी साबित करने के लिए 10 मार्च 2022 के दिन का इंतजार तो करना ही पड़ेगा. उत्तर प्रदेश समेत पांच राज्यों का जनादेश तय करेगा कि देश की राजनीतिक दशा और दिशा क्या होने जा रही है. नीतीश कुमार और बिहार का राजनीतिक भविष्य भी टकटकी लगाकर 10 मार्च की तरफ देख रहा है.
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं, आर्टिकल में व्यक्त विचार लेखक के निजी हैं.)
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