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- आखिर हम नया साल ले ही...
जिस अधूरी इच्छा को लेकर देशवासियों ने पिछले 75 सालों से अपनी-अपनी इबादतगाहों में अपने-अपने भगवानों की चौखट पर अपने माथे रगड़-रगड़ कर लहूलुहान कर दिए थे, उसे देश के प्रथम प्रधान मंत्री पिछले सात सालों की अपनी अनथक बतोलीबाज़ी, फैशनपरस्ती, फोटोशूट और तु़गलकी ़फैसलों की बदौलत पूरा करने में आ़िखरकार कामयाब हो गए। यह उनके अथक प्रयासों का ही नतीजा है कि आ़िखरकार पचहत्तर सालों के इंतज़ार के बाद वर्ष 2022 आ ही गया। भला आता भी क्यों न? बुज़ुर्गों ने कठिन परिश्रम को ही सफलता की कुँजी बताया है। यह बात दीगर है कि बतोले बाबा की कुँजी भले ही कोई ताला न खोल पाए। लेकिन देशवासी उनके सामने नतमस्तक हैं और उनका धन्यवाद करते नहीं अघा रहे। उधर, नया साल आते ही पूरी धमक के साथ देश के आँगन में ओमीक्रोन के साथ भँगड़ा-नाटी डालते हुए रंगरलियाँ मनाने में मस्त हो चुका है। यह तो सरकार की नेकनीयती है कि उसने अभी तक दिन में 18-18 घंटे काम करने की अपनी आदत को और कठोर नहीं बनाया है। नहीं तो डर यह भी था कि कहीं सरकार सोना ही बंद न कर दे।