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- जी-20 में अफ्रीकी संघ
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By: divyahimachal
राजधानी दिल्ली में आयोजित जी-20 शिखर सम्मेलन में भारत ने कुछ अभूतपूर्व, वैश्विक और कूटनीतिक सफलताएं हासिल की हैं। सम्मेलन की शुरुआत के बाद 10 मिनट में ही प्रधानमंत्री मोदी ने ‘अफ्रीकी संघ’ को जी-20 का स्थायी सदस्य बनाने का प्रस्ताव सर्वसम्मति से पारित करा लिया। यही नहीं, संघ के अध्यक्ष अजाली असौमानी को अपना स्थान ग्रहण करने को आमंत्रित भी किया। वह आए और प्रधानमंत्री मोदी से गले मिले और फिर स्थान ग्रहण किया। यकीनन यह ऐसा क्रांतिकारी निर्णय था कि एक साथ 55 अफ्रीकी देश झूम उठे होंगे, क्योंकि हाशिए से उठकर वैश्विक मुख्यधारा का हिस्सा बनने का उन्हें अवसर मिला है। अब तीसरी दुनिया अथवा ग्लोबल साउथ का एक हिस्सा विश्व की विकसित तथा सबसे तेज अर्थव्यवस्थाओं वाले देशों से जुड़ेगा। ज्यादातर अफ्रीकी देश गरीब, पिछड़े, बीमार, कुपोषित और भुखमरी के शिकार रहे हैं। कुछ देश आर्थिक विकास के रास्ते पर आगे बढऩे लगे थे, लेकिन कोरोना महामारी ने बहुत कुछ ध्वस्त कर दिया। चीन ने इन देशों की दुरावस्था का नाजायज फायदा उठाया है। हालांकि उसका निवेश 300 अरब डॉलर से अधिक का है। वह 9 अफ्रीकी देशों के अंतरिक्ष कार्यक्रम में भी मदद कर रहा है। करीब 10 हजार कंपनियां अलग-अलग अफ्रीकी देशों में कार्यरत हैं, लेकिन अफ्रीकी देश महसूस करते हैं कि वे चीन के कर्ज तले दबे हैं, लिहाजा उससे मुक्ति चाहते हैं। भारत उनके लिए ‘देवदूत’ साबित हो सकता है। वैसे भी भारत अफ्रीकी देशों में 197 परियोजनाएं सम्पन्न कर चुका है। अब भी भारत की 182 से अधिक परियोजनाएं जारी हैं। अफ्रीकी देशों के 25,000 से ज्यादा छात्र भारत में पढ़ते हैं।
हमने 12 अरब डॉलर का कर्ज बेहद कम ब्याज दरों पर अफ्रीकी देशों को मुहैया कराया है। भारत ने कोरोना महामारी के टीके, जेनेरिक दवाइयां, खाद्य सामग्री आदि भी उपलब्ध कराई हैं और हम अफ्रीकी आबादी को कंप्यूटर और उससे जुड़े प्रशिक्षण भी दे रहे हैं। भारत कृषि, स्वास्थ्य, फॉर्मेसी, कपड़ा, ऑटोमोबाइल, बैंकिंग, सूचना प्रौद्योगिकी, ऊर्जा और ढांचागत विकास कार्यों आदि में काम कर रहा है। भारत अफ्रीकी देशों में सबसे बड़े निवेशकों में एक देश है। अब ‘अफ्रीकी संघ’ के जी-20 के स्थायी सदस्य बनने के बाद उन्हें अधिक आसान ऋण, निवेश और विकास बैंकों की मदद भी मिल सकेगी। यही जी-20 के ‘एक पृथ्वी, एक परिवार’ के सूत्रवाक्य को चरितार्थ कर रहा है। इसका व्यापक असर यह होगा कि चीन को अपनी ‘अफ्रीकी नीति’ बदलनी पड़ेगी। यकीनन यह भारत की ‘असाधारण उपलब्धि’ है, क्योंकि हमने अपने संबंधों के बूते सर्वसम्मति तैयार की थी। दूसरी विराट उपलब्धि यह है कि भारत, अमरीका, सऊदी अरब, संयुक्त अरब अमीरात, ब्रिटेन, जर्मनी, फ्रांस, इटली, यानी यूरोप के बीच समुद्री जहाज और रेलगाड़ी का ‘आर्थिक समृद्धि कॉरिडोर’ बनाने पर भी सहमति बनी है। यह अभूतपूर्व और बेमिसाल गलियारा होगा और इसके देशों के बीच कारोबार, आवाजाही, परिवहन आदि को ऐसे पंख लगेंगे, जिनकी कल्पना ही की जा सकती है। चीन-पाकिस्तान वाला गलियारा तो नाकाम हो चुका।
वैसे भारत रूस और ईरान वाले कॉरिडोर का भी हिस्सा है, लेकिन प्रस्तावित गलियारा उससे अलग और बड़ा विस्तृत होगा। तीसरी उपलब्धि यह रही कि भारत 37 पन्नों के ‘नई दिल्ली घोषणा-पत्र’ पर 100 फीसदी सहमतियां बनाने में कामयाब रहा। अटकलें लगाई जा रही थीं कि घोषणा-पत्र जारी होने में मुश्किलें आएंगी, लेकिन भारत ने युद्ध और यूक्रेन का जिक्र भी किया। यूक्रेन का उल्लेख 4 बार किया गया है, लेकिन रूस का नाम नहीं लिया गया। भारत को यह समझौता जरूर करना पड़ा। कहा गया कि युद्ध के असर बड़े व्यापक होते हैं, लिहाजा यह युद्ध का युग नहीं है। परमाणु हथियारों की धमकी या उनका इस्तेमाल भी अस्वीकार्य है। किसी भी देश की संप्रभुता, अखंडता पर बल-प्रयोग न किया जाए। सभी देशों को यूएन चार्टर के मुताबिक काम करना चाहिए। भारत घोषणा-पत्र में वैश्विक आतंकवाद का 9 बार जिक्र करने में कामयाब रहा। प्रस्ताव पारित किया गया कि आतंकवाद के हर रूप की निंदा करते हैं, क्योंकि यह शांति और स्थिरता के लिए गंभीर खतरा है। इनके अलावा, जी-20 ने सतत विकास, पर्यावरण, जैव ईंधन गठबंधन, डिजिटल प्रौद्योगिकी पर अपनी प्राथमिकियां तय कीं।
Gulabi Jagat
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