सम्पादकीय

31 अगस्त के बाद अफगान

Gulabi
31 Aug 2021 5:52 AM GMT
31 अगस्त के बाद अफगान
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खुफिया लीड के आधार पर अमरीका ने रविवार को काबुल में एक और हवाई हमला किया

दिव्याहिमाचल.

खुफिया लीड के आधार पर अमरीका ने रविवार को काबुल में एक और हवाई हमला किया। निशाना अचूक रहा और फिदायीन समेत विस्फोटकों से भरे वाहन के भी परखच्चे उड़ा दिए गए। काबुल हवाई अड्डे पर एक और फिदायीन हमले की साजि़श और मंसूबे भी धुआं-धुआं हो गए। सोमवार सुबह एक कार से 5 रॉकेट दाग कर हवाई अड्डे को निशाना बनाया गया, लेकिन अमरीका के एयर डिफेंस सिस्टम ने बचा लिया। न जाने यह सुबह कैसी साबित होती! आतंकवाद पर अमरीका फिलहाल सफल रहा है, लेकिन यह कोई अंतिम निष्कर्ष नहीं है। तालिबान को अमरीकी हमलों पर आपत्ति है और उसने चेतावनी दी है कि अमरीका तालिबान को बताए बिना कोई भी हमला न करे।
यह उसका अधिकार नहीं है। बेशक आतंकवाद और उसके दरिंदे फिलहाल हांफने लगे होंगे, लेकिन तीन दिन में दो हवाई हमलों से ही आतंकवाद थम जाएगा या उसके समापन की शुरुआत हो जाएगी, ऐसा कोई भी दावा मुग़ालता होगा। अमरीका के दूसरे ड्रोन हमले में 7 या 13 आतंकी ढेर कर दिए गए अथवा विस्फोटक से भरी एक ही कार चकनाचूर हुई अथवा रॉकेट से एक और हमला किया गया, जिसमें एक घर ध्वस्त हो गया। आग की लपटों में भी बहुत कुछ स्वाहा हुआ होगा! एक बच्चे सहित दो लोगों की मौत हुई और 3 घायल हुए। दरअसल घटनाओं के ब्योरे विरोधाभासी हैं। अमरीकी सेना या तालिबान ही खुलासा कर सकते हैं कि हवाई हमला कितना कारगर रहा और कुल कितने आतंकी मार दिए गए? अमरीका इतना तैयार हो गया था कि काबुल हवाई अड्डे पर 5 लड़ाकू विमानों की मौजूदगी दिखी थी और अमरीकी कमांडोज ने हवाई अड्डे के बाहर आकर आक्रामक सर्च ऑपरेशन भी किया था। कल्पना कीजिए कि यदि विस्फोटक से भरा वाहन और आत्मघाती बॉम्बर हवाई अड्डे के भीतर फूटते, तो कितने लोग 'लाश हो जाते और कितनी बर्बादी होती? उस लिहाज से अमरीकी रणनीति और तुरंत हमले को शाबाशी दी जानी चाहिए। अफगानिस्तान में अमरीकी सेना और अधिकारियों की मौजूदगी आखिरी चरण में है। उसी दौरान आतंकी हमले बढ़ गए हैं और आईएसआईएस-खुरासान अमरीका को धमका भी रहा है।
खुरासानी आतंकी अफगान के नांगरहार, हेरात और काबुल प्रांतों में ही सक्रिय नहीं हैं, बल्कि पाकिस्तान से सटे सरहदी इलाकों में भी हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि उन्हें पाकिस्तान में भी पनाह दी गई है, लिहाजा 31 अगस्त को अमरीकी सेना की पूरी वापसी के बाद ही आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई नहीं रुकनी चाहिए। यह अमरीका और उसके राष्ट्रपति बाइडेन की प्रतिष्ठा का सवाल भी है। यह अफगानिस्तान में तालिबान हुकूमत की स्थिरता के लिए भी ज़रूरी है, क्योंकि तालिबान और आईएस-खुरासान के दरमियान वर्चस्व की लड़ाई को पूरी दुनिया जानती है। अकेले तालिबान आईएस के आतंकवाद को खत्म करने में अक्षम हैं। अमरीका ने आईएस के खलीफाई सरगना बगदादी को भी मारा था। हवाई हमले के जरिए ईरान में नंबर-दो की शख्सियत सुलेमानी को भी ढेर किया था। यदि अमरीका तालिबानी अफगानिस्तान में अमन-चैन, स्थिरता और आर्थिक पुनरोत्थान चाहता है, तो उसे चिह्नित कर आतंकियों और उनके अड्डों को समाप्त करना होगा। यह जमात इंसानियत के नाम पर कलंक है। अभी अफगानिस्तान में अफरा-तफरी है, अराजकता है।
देश एक जंगल हो गया है। नकदी का बहुत भारी संकट है। पैसा नहीं होगा, तो लोग क्या करेंगे? खाना कैसे खाएंगे? रोजमर्रा की जरूरतें कैसे पूरी होंगी। देश में भुखमरी होगी, तो गृहयुद्ध के हालात को भी बहुत दिनों तक टाला नहीं जा सकता है। अमरीका ने स्पष्ट कर दिया है कि वह अफगानिस्तान में राष्ट्र-निर्माण के लिए नहीं आया था, लिहाजा वे उम्मीदें तो समाप्त हैं। आतंकवाद के खिलाफ अमरीकी रणनीति स्पष्ट है कि यदि इसी इलाके में आतंकियों के फन नहीं कुचले गए, तो वे आने वाले कल में अमरीका पर भी आतंकी हमला बोल सकते हैं। अफगानिस्तान में फिलहाल तालिबान के सहयोग के बिना आतंकवाद का मोर्चा जीता नहीं जा सकता है, लेकिन तालिबान भी बार-बार चेतावनी दे रहा है कि अमरीका और हवाई हमले न करे। यदि उसके पास कोई सूचना है, तो तालिबान से बात करे। कार्रवाई तालिबान ही करेंगे। अमरीका को ये शर्तें मंज़ूर होंगी, ऐसा लगता नहीं है, तो फिर अहम सवाल है कि वह आतंकियों से कैसे निपट पाएगा? यदि अमरीका नाकाम रहता है, तो वह अपनी सुरक्षा के बंदोबस्त कर सकता है। वैसे भी वह अफगान से बहुत दूर स्थित है, लेकिन पड़ोसियों का क्या होगा, इस सवाल पर भी विमर्श होना चाहिए।
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