सम्पादकीय

अफगानिस्तान: तालिबान पर क्यों भरोसा नहीं

Neha Dani
23 Oct 2021 1:48 AM GMT
अफगानिस्तान: तालिबान पर क्यों भरोसा नहीं
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अंतरराष्ट्रीय बिरादरी को तालिबान कोई भरोसा नहीं दे सके, जिससे उन्हें मान्यता मिल सके।

अफगानिस्तान पर कब्जे के बाद से तालिबान देश में अपनी सत्ता को मजबूत करने की हर संभव कोशिश कर रहे हैं। कब्जा 15 अगस्त को हुआ था, अब दो माह से अधिक बीत चुके हैं। इसके बावजूद तालिबान की अंतरिम सरकार के लिए देश में हिंसा खत्म कर शांति बहाली बड़ी चुनौती है। दहशतगर्द समूह इस्लामिक स्टेट (आईएस) के बढ़ते जानलेवा हमलों का सामना करना पड़ रहा है।

15 अक्तूबर को आईएस के आतंकवादियों ने कंधार प्रांतों की शिया मस्जिद में आत्मघाती हमलों में 63 लोगों की जान ले ली और 83 लोग घायल हुए। इससे एक सप्ताह पहले ही उतारी प्रांत की शिया मस्जिद में विस्फोट में 46 लोगों की मौत हो गई थी। दरअसल आईएस समूह तालिबान का विरोधी है और उसका मानना है कि शिया समुदाय धर्म त्यागी है और उन्हें मार दिया जाना चाहिए।
ये दोनों सुन्नी मुसलमानों के समूह हैं, पर इनके धार्मिक विचार नहीं मिलते। इनमें आईएस काफी कट्टर है। ये दोनों कई बार एक-दूसरे से लड़ चुके हैं। तालिबान भी शियाओं पर हमले करते रहते हैं। पिछले दिनों पंजशीर घाटी में सैकड़ों शिया तालिबान के हाथों मारे गए थे। लेकिन उन्होंने अब शियाओं को सुरक्षा का वचन दिया है। रूस के राष्ट्रपति पुतिन ने कहा है कि आईएस के सैकड़ों लड़ाके उत्तर अफगानिस्तान में लामबंद हो रहे हैं। ईरान और सीरिया के आतंकी अफगानिस्तान में बढ़ रहे हैं।
इससे हालात और बिगड़ सकते हैं। अमेरिका के चीफ ऑफ स्टाफ जनरल मार्क ने भी अंदेशा जताया है कि अगले कुछ समय में अलकायदा या आईएस अफगानिस्तान पर अपनी पकड़ मजबूत बना सकते हैं। इससे सारे क्षेत्र की सुरक्षा खतरे में पड़ जाएगी। अफगानिस्तान की अर्थव्यवस्था पिछले कई वर्षों से पश्चिमी देशों की मदद से चल रही है। करजई व गनी की सरकारें इस मदद से ही चलती रहीं।
तालिबान के कब्जे के बाद अंतरराट्रीय मुद्रा कोष, विश्व बैंक, अमेरिकी सरकार और अन्य पश्चिमी देशों ने अफगानिस्तान की आर्थिक मदद बंद कर दी है। इससे अफगानिस्तान एक बड़े संकट में फंस गया है। अगर जल्द ही अफगान अर्थव्यवस्था में निवेश नहीं हुआ, तो देश के लाखों लोग गरीबी और भुखमरी के दलदल में फंस जाएंगे। पहले ही देश में रोजमर्रा इस्तेमाल में आने वाली चीजें आटा, चीनी इत्यादि की किल्लत हो गई है।
संयुक्त राष्ट्र का कहना है कि पिछले चंद माह के दौरान लगभग पांच लाख लोगों को अपना घर छोड़ना पड़ा है। विश्व बिरादरी बहरहाल इस बात पर जोर दे रही है कि अफगानिस्तान को जो भी मानवीय सहायता उपलब्ध कराई जाए, वह तालिबान को सीधे तौर पर नहीं, बल्कि संयुक्त राष्ट्र और अंतरराष्ट्रीय एजेंसियों के माध्यम से ही हो। तालिबान अपनी छवि सुधारने में जुटे हुए हैं, लेकिन अभी तक उसकी ये कोशिश जमीनी स्तर पर विफल रही है।
उसने देश में हालात सुधारने के लिए जो घोषणाएं की थी, उन पर कोई अमल नहीं हुआ, बल्कि उनके विपरीत कदम उठाए गए। सत्ता पर कब्जा करने के समय पिछली गनी सरकार के अधिकारियों और कर्मचारियों को आम माफी की घोषणा की गई थी, लेकिन उन्हें चुन-चुनकर निशाना बनाया गया। ऐसे ही जिन अफगानियों ने अमेरिकी फौज का साथ दिया था, उनका भी यही हश्र हो रहा है।
तालिबान शासन का सबसे ज्यादा खामियाजा अफगान महिलाओं को भुगतना पड़ रहा है। उनसे वादा किया गया था कि उन्हें मंत्रिमंडल में शामिल किया जाएगा। लेकिन ऐसा नहीं हुआ। वे घर से बाहर अकेली नहीं निकल सकतीं और न ही नौकरी कर सकती हैं। इस कारण सारी दुनिया निंदा कर रही है। 30 लाख लड़कियों की शिक्षा पूरी न होने की आशंका है। अंतरिम सरकार ने मीडिया पर तरह-तरह की पाबंदी लगाई है।
बड़ी संख्या में पत्रकारों को कैद किया गया है। बहुत से खिलाड़ी, संगीत व रंगकर्मी तालिबान के जुल्मों से तंग आकर देश छोड़कर दूसरे देशों में पलायन कर गए हैं। तालिबान ने वादा किया था कि वे देश में सर्वसमावेशी सरकार का जल्दी गठन करेंगे। लेकिन दो माह गुजर जाने के बाद भी इसका गठन नहीं हुआ। अंतरराष्ट्रीय बिरादरी को तालिबान कोई भरोसा नहीं दे सके, जिससे उन्हें मान्यता मिल सके।

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