सम्पादकीय

अफगानिस्‍तान: बेबसी का सैलाब

Gulabi
13 Sep 2021 1:46 PM GMT
अफगानिस्‍तान: बेबसी का सैलाब
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दर्द की जमीन पर खूंखार सत्ता कितने क्रूर रुप में उभर कर आई है

दर्द की जमीन पर खूंखार सत्ता कितने क्रूर रुप में उभर कर आई है, आतंक का पर्याय बना तालिबान सही मायने में जहां-जहां भी अपने कदम रखता जा रहा है, क्या वहां रास्ते इंसानियत खत्म करते जायेंगें? क्या खौफ और शैतानी साम्राज्य से इस धरती मां की हरियाली, उसकी उर्वरक शक्ति, उसकी मुस्कान छिन जायेगी? दहशत पैदा कर इंसानी जिस्मों पर क्रूरता का खेल खेलकर उनकी इच्छाओं पर अपना हक जताकर उनके जीवन जीने की इच्छा को अपना निवाला बनाने वाले ये दरिंदे जिंदगियां सिसकने को मजबूर कर रहे हैं

लूट-पाट, छीना-झपटी, मार-काट से डरा धमकाकर अपने उसूलों को दूसरों पर लादकर सत्ता हासिल करना सामर्थ्यवान की निशानी नहीं, कमजोर पर जोर-जबरदस्ती ताकतवर का काम नहीं. खुशियों भरी झोली में पल भर में गम का अहसास भरकर जिंदगी को शून्य कर ये तालिबानी क्या साबित करना चाहते हैं? निरीह प्राणियों की चीखें मौत से बचने की छटपटाहट में मौत के आगोश में ही छिप जाने की आतुरता, कितना व्याकुल कर देने वाली है. बेबसी का शिकार अफगानिस्तान के लोगों की खुशहाल जिंदगी पल-भर मे अंधियारे गलियारों से गुजरने को मजबूर हो गई.
हर किसी को पिघलाने लगी है महिलाओं के आंखों की शून्‍यता
किसी मासूम के जीने की चाह, कुछ कर गुजरने की ललक, महिलाओं का भय उनके आंसू, उनकी शून्यता हर किसी को पिघलाने के लिए काफी है. परिवर्तनशील क्षण ने पल भर में ही एक साथ इतने लोगों के जीवन में खुशियों की जगह दर्द, अरमानों की जगह रिक्तता, उल्लास की जगह मायूसियां भर दीं. मन की आशाओं की कलियां खिलने से पहले ही मुरझा गई, अहसासों का पुष्प सुगन्धि से रहित हो गया. तालिबानी मासूमो की जिंदगियां दांव पर लगाकर अटृहास कर रहे हैं, नाजुक कलियां तोड़कर उपवन रौंद रहे हैं, उभरते-निखरते जीवन से मौत का तांडव कर रहे हैं. दूसरों को कष्ट देकर आगे बढ़ने की लालसा मानवता के नाम पर कलंक है.
हंसता-खेलता अफगानिस्तान चंद लम्‍हों में ही मजबूरियों का प्रारुप बन गयां. आफत ना आसमान से बरसी ना प्रलय आई पर अफगानिस्तान वालों का जीवन त्रासदी के उस मोड़ पर आ गया, जिसकी उन्‍होंने कल्पना भी नहीं की होगी. कहीं औरतों को बेरहमी से पीटा जा रहा है, कहीं पत्रकारों पर चाबुक चलाए जा रहे हैं. दर्द की पाठशाला में बैठकर वो जिंदगी का ऐसा पाठ पढ़ेंगे, उनकी सोचों में भी नहीं होगा. आज वहां लोंगों का जीवन जिस आपदा को झेल रहा है, वह हर व्यक्ति को झकझोर देने के लिए काफी है. तालिबानी कब्जे ने हर किसी की चिन्ता को बढ़ा दिया है.
शांति की सूची में ये आतंक का अध्याय कहां से जुड़ गया. तालिबान ने जैसा आतंक का साम्राज्य अफगानिस्तान में फैलाया है, उससे वह पड़ोसी देशों के लिए खतरों व आतंक का स्त्रोत भी बन सकता है. तालिबान के अमानवीय जुनून से हर जिंदगी, हर शहर, हर देश के लोगों मे अफगानिस्तान के लिए स्नेह व सहानुभूति है. बीस सालों से हजारों सैनिको की बलि चढ़ जाने के बाद भी अफगानिस्तान की झोली में शांति के स्थान पर आतंक और विनाशलीला है. कमजोर हाथों से गिरते हथियारों ने क्रूरतम शासक को जन्म दिया है और उस निरंकुश शासक के हाथों छटपटाती जिंदगियों को तड़पता देखकर दिल दुःख के अथाह सागर में डूब जाता है.
हथियारों के आगे बेबस जिंदगी
हथियारों के आगे जिंदगी कितनी बेबस और कमजोर दिखती है. खुशहाल चेहरों की लालिमा, युवा पीढ़ी की दम तोड़ती मुस्कान, उदास होठों की खामोशी उनके दुःखों का बयान करती है और उनका यह आक्रोश सड़कों पर दिख रहा है, अपने सुनहरे सपनो को चकनाचूर होते देख मौत से साक्षत्कार काफी भयावह करने वाला है. प्रगतिशील समाज की ऐसी हताशा बड़ी पीड़ादायक है. दनदनाती गोलियां शांति के सभी द्वार बंद कर देती हैं, कुछ तो हो जो ये नृशंसता खत्म हो, किलकारी मारते शिशुओं, उमंगो से भरे नवयुवक, युवतियों का भविष्य, असहाय वृद्धों की दीन अवस्था सभी कुछ दांव पर लग गया है.
सभी असहाय से जिंदगी की ओर कातर दृष्टि से देख रहे हैं. इक्कीसवीं सदी की महिलाओं की छवि को तालिबानी शासन ने खत्म ही कर दिया है, लड़कियों का घर से ना निकलना, बुर्का अनिवार्य होना, लड़कों के साथ सह शिक्षा पर रोक, उनके द्वारा प्रदर्शन करने पर उन्हे प्रताड़ित करना, शारीरिक, मानसिक रुप से उन पर अत्याचार करना बड़ा अमानवीय है. हथियार के बल पर शासन करने वाले तालिबानी आतंकियों से ये आशा करना कि वे शांति के दूत बने धूल में लट्ठ लगाने जैसा है. हिंदुस्‍तान में तालिबान के समर्थन में खुशियां मनाने वाले देश-द्रोही घृणा के पात्र हैं, उनका बहिष्कार होना चाहिये.
देश के सच्चे सपूत जो देश हित में प्राण त्याग देते हैं, ये विद्रोही उन शहीदों की मौत के भी सौदागर है, हिन्दुस्तान में रहकर तालिबान, पाकिस्तान के नारे लगाने वालो को इस देश में रहने का अधिकार नहीं है, इनके लिए सजा का प्रावधान होना चाहिये, इनकी सुख-सुविधाएं इनसे छीन लेनी चाहिये. भारत देश में रहने वाले ये तालिबानी समर्थक देश में लगने वाली वो दीमक है, जो देश की ही जड़ों को कमजोर कर रही हैं, ये देश के लिए घातक हैं, इन विद्रोहियों के पंजे आरम्भ में ही कुचल देने चाहिए, जिससे ये शत्रु समर्थन में आवाज ही ना उठा सकें. तालिबान अपने जिन नृशंस इरादों को लेकर अफगानिस्तान में आया है, उसके वे मंसूबे कभी पूरे नहीं होने चाहिए, इसके लिए सभी को एकजुट होने की आवश्यकता है.
(डिस्क्लेमर: ये लेखक के निजी विचार हैं. लेख में दी गई किसी भी जानकारी की सत्यता/सटीकता के प्रति लेखक स्वयं जवाबदेह है. इसके लिए जनता से रिश्ता किसी भी तरह से उत्तरदायी नहीं है)
रेखा गर्ग, लेखक समसामयिक विषयों पर लेखन. शिक्षा, साहित्य और सामाजिक मामलों में खास दिलचस्पी. कविता-कहानियां भी लिखती हैं.


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