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अफगानिस्तान के सत्ता संघर्ष के साथ ही अमीरों की रसोइयों को महकाने वाली विख्यात बासमती के बीज देहरादून में उगाने वाले भी याद आने लगे हैं
जयसिंह रावत।
अफगानिस्तान के सत्ता संघर्ष के साथ ही अमीरों की रसोइयों को महकाने वाली विख्यात बासमती के बीज देहरादून में उगाने वाले भी याद आने लगे हैं। जब पहले आंग्ल-अफगान युद्ध में सत्ताच्युत दोस्त मोहम्मद खान को निर्वासित कर देहरादून जिले के मसूरी में लाया गया तो वह अपने साथ अपनी पंदीदा लजीज बिरयानी के लिए वहां का स्वादिष्ट और खुशबूदार चावल का बीज भी लाया था।
दरअसल, इसे देहरादून के किसानों ने जब उगाना शुरू किया तो उसकी खुशबू के कारण उसे बासमती नाम दिया गया और उसकी खुशबू के साथ ही उसकी ख्याति भी फैलती गई। भारत के खेतों में बासमती महकने लग गई। आज विश्व के बासमती निर्यात में भारत का 70 प्रतिशत योगदान है। बिडम्बना ऐसी कि बासमती की जन्मभूमि के खेतों में इमारतों के जंगल उगने से देहरादूनी बासमती नाम की ही रह गई है।
अफगानी शाह लाए थे बासमती के बीज देहरादून में
ब्रिटेन और महाराजा रणजीत सिंह की फौजों द्वारा छेड़े गए प्रथम आंग्ल-अफगान युद्ध (1839-1842) में जब अफगानिस्तान के दुर्रानी वंश के शाह शूजा को गद्दी पर बिठा कर बरक्जाइ राजवंश के संस्थापक दोस्त मोहम्मद खान को पदच्युत किया गया तो दोस्त खान को निर्वासन में सपरिवार मसूरी में रखा गया।
बताया जाता है कि दोस्त मोहम्मद बिरयानी का बड़ा शौकीन था इसलिए उसके कर्मचारी अपने साथ बांस के खोखले हिस्से में मिट्टी के साथ वहां के सबसे स्वादिष्ट चावल के बीज लेकर आए थे। दोस्त खान तो 1843 में वापस अपने वतन लौट कर फिर काबुल की गद्दी पर जा बैठा। सन् 1863 में उसकी मौत के बाद उसका तीसरे नम्बर का बेटा शेर अली गद्दी पर बैठ गया।
सन् 1879 में शेर अली की मौत के बाद उसका बेटा याकूब खान अफगानिस्तान का शाह (अमीर) बना मगर सन् 1879 में काबुल में ब्रिटिश दूत और उसके अंग रक्षकों के मारेजाने के बाद अंग्रेजों ने पुनः काबुल पर हमला कर दिया और याकूब को बंदी बना कर मसूरी ले आए। उसके बाद याकूब देहरादून के ई.सी. रोड क्षेत्र में अपने लाव-लश्कर के साथ बस गया जहां सन् 1923 में उसकी मौत हो गई। याकूब के कर्मचारियों ने जब अपने आसपास के खेतों में इस विशिष्ट चावल के बीज बोए तो उसकी खुशबू फैलने लगी और देहरादून के स्थानीय किसानों ने भी बीज मांग कर उसे उगाना शुरू किया।
अफगानिस्तान के कुनार प्रान्त से आया बासमती का बीज
ऐतिहासिक विवरणों के अनुसार शाही खान परिवार इस विशिष्ट प्रकार के खुशबूदार और स्वादिस्त चावल का धान अफगानिस्तान के कुनार प्रान्त से लाया था। इस प्रान्त में आज भी 74 प्रतिशत लोग खेती पर निर्भर हैं। वहां की मिट्टी अपेक्षाकृत उच्च कैलशियम कार्बोनेट युक्त है, जिसका पीएच 8.00 से 8.50 तक है, जो कि खेती के लिए अच्छी मानी है। हिमालय और शिवालिक के बीच बसे देहरादून की मिट्टी में भी वही तासीर होने के कारण अफगानिस्तान का वह धान जम गया जिसका चावल अपनी महक और स्वाद के कारण बासमती कहलाने लगा।
यही बासमती सैकड़ो सालों तक देहरादून के किसानों की किस्मत भी महकाती रही। लेकिन बाद में कृषि विज्ञान के प्रसार के साथ ही इस परम्परागत बासमती को कम लाभप्रद माना गया, क्योंकि इसका प्रति हैक्टेअर उत्पादन कम होने के साथ ही इसका पुआल अधिक था और इसके लम्बे तने पर कीट अधिक लगते थे।
रोग की दृष्टि से भी यह अधिक संवेदनशील माना जाता था, इसलिए इंडियन एग्रीकल्चरल रिसर्च इंस्टीट्यूट दिल्ली ने पूसा-1 नाम से नई प्रजाति पैदा कर दी, जो अधिक उत्पादन देती है और उसके चावल टूटते भी कम हैं। उसका पौधा आकार में भी मूल बासमती से काफी छोटा होता है।
देहरादून में भी मूल बासमती के वर्णशंकर ही बोए जाने लगे मगर खेतों में जिस तेजी के साथ इमारतें उग रही हैं, उसे देखते हुए लगता है कि अब यहां बोने के लिये खेत ही नहीं बचेंगे।
बासमती के खेतों में उगने लगा इमारतों का जंगल
भू-अपरदन और चकाचौंध की शहरी जिन्दगी के आकर्षण के चलते पलायन के कारण उत्तराखण्ड में ही तेजी से कृषि क्षेत्र घट रहा है। राज्य गठन के समय यहां कृषि का क्षेत्रफल लगभग 7.70 लाख हेक्टेअर था जो कि कृषि मंत्री द्वारा विधानसभा में एक सवाल के जवाब के अनुसार सन् 2020 तक मात्र 4,92643 हेक्टेअर ही रह गया।
बासमती उत्पादक देहरादून में तो कृषिभूमि की स्थिति और भी बद्तर है। राजधानी बनने के बाद बासमती उगाने वाले माजरा, सेवला, ब्राह्मणवाला, निरंजनपुर, मेहूवाला, पित्थूवाला, भारूवाला और डोइवाला आदि स्थानों पर कोलोनियां उग आई है।
राजधानी बनने के बाद तो देहरादून की जमीनों पर भारी दबाव पड़ गया है। भूमि सौदागरों के इशारों पर त्रिवेन्द्र सरकार ने देहरादून जिले के 85 गावों को नगर निगम और नगरपालिकाओं में शामिल कर दिया है जिस कारण जमींदारी विनास एवं भूमि व्यवस्था अधिनियम में किए गए छेदों के रास्ते जमीनों की अन्य प्रयोजनों के लिए खरीद फरोख्त बहुत आसान हो गई है। 2005 के मास्टर प्लान में भी लगभग 2200 हेक्टेअर कृषिभूमि गैर कृषि कार्यों के लिए परिवर्तित हो गई है।
हर खुशबूदार चावल बासमती नहीं होता
विश्व में अनेक प्रकार के खुशबूदार और स्वादिस्ट चावल उत्पादित किए जाते हैं, मगर हर कोई चावल बासमती नहीं होता। बासमती वह है जिसे बासमती एक्सपोर्ट डेवेलपमेंट फाउंडेशन द्वारा डीएनए के जरिए प्रमाणित किया जाता है। कृषि और प्रसंस्कृत खाद्य उत्पाद निर्यात निगम (अपेडा) के मापदण्डों के अनुसार पकाने से पहले जिस चावल की लम्बाई 6.61 मिमी और मोटाई 2 मिमी हो उसी को बासमती की श्रेणी में रखा जाता है। यह चावल भारत के कई राज्यों में उगाया जाता है। चूंकि इस विशिष्ट चावल का बासमती नामकरण देहरादून में ही हुआ है इसलिए उसका मूल देहरादून ही माना जाएगा।
भारत विश्व का सबसे बड़ा बासमती निर्यातक
विश्व के बासमती निर्यात में भारत का योगदान 70 प्रतिशत है। अपेडा आंकड़ों के अनुसार भारत ने 2019 में 44 लाख टन बासमती का निर्यात किया।
यद्यपि इस चावल के मुरीद विश्व के 132 देशों में फैले हुए हैं, लेकिन सऊदी अरब जैसे देशों के शौकीनों के मुंह यह बासमती कुछ ज्यादा ही लगी हुई है। भारत की बासमती का 24% निर्यात सऊदी अरब, 15%, ईरान,12%, ईराक, 7%, यमन और 5% संयुक्त अरब अमीरात को होता है।
यह चावल बहुत ज्यादा मुंहलगा होने के कारण इसकी मांग सारे विश्व में है मगर मांग के अनुरूप उत्पादन न होने के कारण इसमें मिलावटखोरी भी बहुत होती है। ब्रिटेन की ''फूड स्टेंडर्ड ऐजेंसी'' ने जब 2005 में विभिन्न प्रकार की बासमतियों की जांच की तो आधे से अधिक चावलों की किस्में मिलावटी पाई गईं। एजेंसी ने 2010 में पुनः लैब टेस्टिंग की तो 15 में से 4 नमूने नकली बासमती के मिले। इसलिए बासमती की छवि खराब करने की इस प्रवृत्ति को रोके जाने की जरूरत है।
हरियाणा भारत का सबसे बड़ा उत्पादक
भारत में सबसे बड़ा बासमती उत्पादक (60%.) राज्य हरियाणा है। अपेडा के आकड़ों के अनुसार वर्ष 2019 में वहां 8,43,400 है0 पर बासमती उत्पादन हुआ। इसी प्रकार पंजाब में 5,50,100 है0, उत्तर प्रदेश में 4,63,600 है0, उत्तराखण्ड में 17,200 है,, जम्मू-कश्मीर में 54300 है, तथा हिमाचल पद्रेश में 8700 हेक्टेयर पर बासमती उत्पादन किया गया। उत्तराखण्ड में लगभग 7 हजार टन बासमती उत्पादन होता है।
भारत में बासमती की 34 किस्में
बीज अधिनियम, 1966 के तहत अब तक बासमती चावल की 34 किस्मों को अधिसूचित किया गया है। ये बासमती 217, बासमती 370, टाइप 3 (देहरादूनी बासमती) पंजाब बासमती 1 (बाउनी बासमती), पूसा बासमती 1, कस्तूरी, हरियाणा बासमती 1, माही हैं। सुगंधा, तराओरी बासमती (एचबीसी 19/ करनाल लोकल), रणबीर बासमती, बासमती 386, बेहतर पूसा बासमती 1 (पूसा 1460), पूसा बासमती 1121 (संशोधन के बाद), वल्लभ बासमती 22, पूसा बासमती 6 (पूसा 1401), पंजाब बासमती 2 , बासमती सीएसआर 30 (संशोधन के बाद), मालवीय बासमती धन 10-9 (आईईटी
21669), वल्लभ बासमती 21 (आईईटी 19493), पूसा बासमती 1509 (आईईटी 21960), बासमती 564, वल्लभ बासमती 23, वल्लभ बासमती 24, पूसा बासमती 1609 , पंत बासमती 1 (आईईटी 21665), पंत बासमती 2 (आईईटी 21953), पंजाब बासमती 3, पूसा बासमती 1637, पूसा बासमती 1728, पूसा बासमती 1718, पंजाब बासमती 4, पंजाब बासमती 5, हरियाणा बासमती 2 और पूसा बासमती 1692 हैं।
डिस्क्लेमर (अस्वीकरण): यह लेखक के निजी विचार हैं। आलेख में शामिल सूचना और तथ्यों की सटीकता, संपूर्णता के लिए अमर उजाला उत्तरदायी नहीं है।
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