सम्पादकीय

अफगानिस्तान : तालिबान से लड़ती अफगान महिलाएं, अस्थिर और अनिश्चित स्थिति

Neha Dani
29 March 2022 1:42 AM GMT
अफगानिस्तान : तालिबान से लड़ती अफगान महिलाएं, अस्थिर और अनिश्चित स्थिति
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अफगानिस्तान के हालात बद से बदतर हो जाएंगे। कोई भी देश तालिबान शासन को मान्यता नहीं देगा।

अफगानिस्तान पर तालिबान के कब्जे के करीब आठ महीने बाद भी वहां की स्थिति अस्थिर और अनिश्चित बनी हुई है। अभी तक शासन के ऐसे ढांचे का गठन नहीं हो पाया है, जो विविधता दर्शा सके और उसमें महिलाओं की भागीदारी हो। दूसरी बार सत्ता पर काबिज होते हुए तालिबान ने यह संकल्प जताया था कि वे महिलाओं व लड़कियों के अधिकारों में कटौती नहीं करेंगे और उन्हें बराबरी का अधिकार देंगे। विगत 23 मार्च को तालिबान ने लड़कियों और महिलाओं की शिक्षा पर लगी पाबंदी उठा भी ली।

उन्होंने छठी कक्षा से ऊपर की लड़कियों के स्कूल खोलने का भी हुक्म दे दिया, लेकिन इस घोषणा के चंद घंटे बाद ही फिर उसे वापस ले लिया। उसके बाद तालिबान ने स्पष्ट किया कि यह आदेश तब तक लागू रहेगा, जब तक इस्लामी शरिया कानून व अफगान संस्कृति के अनुसार योजना तैयार नहीं हो जाती। जाहिर है, छात्राओं की खुशी कुछ ही पल में निराशा में बदल गई। संयुक्त राष्ट्र व अमेरिका ने अपने वायदे से मुकरने पर तालिबान को कड़ी आलोचना की है।
इससे तालिबान ने पिछले आठ महीने में जो अपनी छवि सुधारने की कोशिश की थी, उस पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ने की संभावना है। अफगानिस्तान में अधिकांश सरकारी विश्वविद्यालय बंद हैं, जिन्हें खोलने के लिए महिलाएं व लड़कियां प्रदर्शन कर रही हैं। कुछ प्रांतों में निजी विश्वविद्यालय खुले हुए हैं, लेकिन उन पर भी तालिबान ने ड्रेस संबंधी कुछ शर्तें लाद दी हैं। अब अफगानी लड़कियों को बुरका और लड़कों को अफगानी पोशाक पहनकर जाना होगा और उन्हें अलग-अलग बैठकर पढ़ाई करनी होगी।
इससे देश की छात्राएं ही नहीं, बल्कि छात्र भी परेशान हैं और विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं। एक ताजा रिपोर्ट के अनुसार, ऐसी प्रदर्शनकारी महिलाओं को चुपचाप रात को उनके घर से उठा लिया जाता है। हाल ही में जब उन्होंने शिक्षा का अधिकार पाने के लिए तालिबान के खिलाफ प्रदर्शन किया, तो उन्हें खदेड़ने के लिए मिर्च पाउडर और बिजली के झटके का इस्तेमाल किया गया। इसके बाद तालिबान ने प्रदर्शन की मुखिया तमना जरायानी के घर घुसकर उसकी दो बहनों को उठा लिया, जिनका अभी तक कोई पता नहीं है।
तालिबान सरकार ने कामकाजी महिलाओं को भी आदेश दिया है कि वे अपने शरीर को पूरी तरह ढककर ही दफ्तर आएं, वरना उन्हें नौकरी से निकाल दिया जाएगा। असल में, तालिबान महिलाओं के नौकरी के हक में नहीं है। आईएलओ की ताजा रिपोर्ट के अनुसार, सन 2021 की तीसरी छमाही में महिलाओं के रोजगार में सोलह प्रतिशत की कमी आई है और 2022 के मध्य तक इसके 28 प्रतिशत पहुंचने की आशंका है। तालिबान के पहले दौर के शासन को छोड़कर अफगानिस्तान में महिलाओं के साथ दुर्व्यवहार और शिक्षा पर पाबंदी जैसी कोई बात नहीं थी।
महिलाएं विश्वविद्यालयों में अपनी पसंद की ड्रेस पहनकर जाती थीं। उन्हें साइकिल चलाने और पुरुषों के साथ चलने की आजादी थी। सरकारों ने महिलाओं की खरीद-फरोख्त पर पूरी तरह पाबंदी लगा दी थी। महिलाओं को शिक्षा, स्वास्थ्य व रोजगार के अधिकार की सांविधानिक सुरक्षा दी गई थी। सोवियत संघ और कुछ अन्य देशों में महिलाओं को स्कॉलरशिप देने के लिए सिफारिश की जाती थी। डॉ. नजीबुल्ला की सरकार के खात्मे तक ऐसा ही चलता रहा, लेकिन तालिबान के पहले दौर में लड़कियों और महिलाओं के लिए शिक्षा और रोजगार के दरवाजे बंद कर दिए गए और उन पर तरह-तरह के अत्याचार ढाए गए।
फिर करजई और अशरफ गनी की सरकार ने भी महिलाओं के हक में कई कदम उठाए, लेकिन अब फिर महिलाओं की शिक्षा पर पाबंदी लगी है। यही नहीं, तालिबान ने देश से बाहर जाने वाली उड़ानों में महिलाओं के अकेले सफर पर रोक लगा दी है। उन्हें रोजगार से भी वंचित किया जा रहा है। देश में बेरोजगारी फैली हुई है और लोगों को दो वक्त की रोटी भी नसीब नहीं हो रही। अगर लड़कियों और महिलाओं को शिक्षा के अधिकार से वंचित रखा गया और उनकी राह में बाधाएं खड़ी की गईं, तो अफगानिस्तान के हालात बद से बदतर हो जाएंगे। कोई भी देश तालिबान शासन को मान्यता नहीं देगा।

सोर्स: अमर उजाला


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