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अफगानिस्तान के सरकारी चैनल की लोकप्रिय एंकर शबनम को अपने कार्यालय में प्रवेश करने से रोक दिया गया
ज्योतिर्मय रॉय। अफगानिस्तान के सरकारी चैनल की लोकप्रिय एंकर शबनम को अपने कार्यालय में प्रवेश करने से रोक दिया गया, उन्हें कहा गया, "तुम एक लड़की हो, घर जाओ. अब ऑफिस आने की आवश्यकता नहीं है." तालिबान द्वारा अफगानिस्तान की सत्ता संभालते ही एक के बाद एक स्वतंत्र अफगानी महिलाओं के जीवन की ज्योति धीरे धीरे बुझती नजर आ रही है.
अफगानिस्तान में यह कहानी किसी एक महिला का नहीं है. आए दिन वहां से ऐसी खबरें आ रही हैं. तालिबान खुद औरतों को सलाह दे रहा है कि वो अभी कुछ दिन काम पर न जाएं. इससे समझा जा सकता है कि वहां महिलाओं के साथ कैसा सुलूक हो रहा है. कई पीड़ित महिलाओं के अपने साथ हुए बर्बर अत्याचार की कहानियां सामने आ रही हैं जिसे सुनकर मध्ययुगीन इतिहास भी शर्मा जाए.
महिलाएं यहां पुरुषों के लिए एक वस्तु से ज्यादा नहीं
26 साल की शबनम काबुल की नारीवादी महिलाओं में से एक हैं जिन्होंने पिछले दो दशकों से अमेरिकी शासन में आधुनिकता को देखा है. 29 साल की निलोफर रहमानी 2013 में अफगानिस्तान की पहली महिला पायलट के रूप में काम करना शुरू किया, लेकिन तीन साल से भी कम समय में उन्हें विश्वास हो गया है कि अफगानिस्तान में कभी भी महिलाओं को वह सम्मान नहीं मिलेगा जिसकी वे हकदार हैं. वह अब अपनी इकलौती बहन के साथ 2016 से फ्लोरिडा में संयुक्त राज्य अमेरिका कि सुरक्षित आश्रय में रह रही हैं. लेकिन सभी महिलाओं के पास ऐसा अवसर नहीं होता और न ही क्षमता. यह अनुमान लगाया गया है कि एक चौथाई अफगान महिलाएं अभी भी अनिश्चित भविष्य के साथ मरने या अपनी ही देश की धरती पर अपनी गरिमा खोने की प्रतीक्षा कर रही हैं. बदले हुए हालात में अफगानिस्तान की महिलाओं का एक समूह फिर से बुर्के में ढकी काली जिंदगी के लिए तैयारी कर रहा है. उन्हें अपना शेष जीवन तालिबान के शासन में बिताना होगा. उन्हें शरीयत कानून के अनुसार अपने आत्मसम्मान की हत्या करनी होगी. इस सूची में जाहामा दुर्रानी और अफगानिस्तान की सबसे कम उम्र की मेयर जरीफा गफ्फारी भी शामिल हैं. इसमें एक्ट्रेस लीना आलम, अमीना जाफरी, मरीना गुलबहारी और डायरेक्टर सहारा करीमी भी हैं. नादिरा, जिसे उसकी असहाय मां ने लड़का बनाकर जीवित रखा था. पिछले दो दशकों से आधुनिक समाज की रौशनी में पली बढ़ी इन आधुनिक महिलाओं का अब क्या होगा?
सबसे कम उम्र के मेयर जरीफा के पिता की पिछले नवंबर में तालिबान आतंकवादियों ने हत्या कर दी थी. जरीफा पर भी लगातार तीन बार हमला हो चुका है. तालिबान द्वारा काबुल पर कब्जा करने के बाद जरीफा ने कहा, "अब तो हम सिर्फ मौत के दिन गिन रहे हैं." ज़रीफ़ा अपने छोटे से घर के एक कोने में अपने पति के साथ मौत के आने का इंतज़ार कर रही हैं, इतना आतंकित हैं कि डर के मारे रात को रोशनी भी नहीं जलातीं.
कुबरा बेहरोज़, 2011 में अफगान सेना में शामिल हुईं थीं. अपने बयान में, बेहरोज़ ने बार-बार कहा कि तालिबान शासित अफगानिस्तान में ज्यादातर महिलाएं पुरुषों के लिए एक वस्तु से ज्यादा कुछ नहीं हैं. वह भी बलात्कार के लिए दिन गिन रही हैं.
हर घर से एक लड़की चाहते हैं तालिबानी
तालिबान द्वारा अफगानिस्तान के सत्ता संभालते ही अफगानिस्तान से भारत में भागकर आई मुस्कान, जो पेशे से एक अफगानी महिला पुलिसकर्मी थीं, अपनी डरावने अनुभवों को बताते हुए कहा कि, "तालिबानी इतने वहशी हैं कि लाशों के साथ भी सेक्स करते हैं. तालिबानी ये भी नहीं देखते हैं कि कोई जिंदा है या मर गया है." अफगान की पूर्व महिला पुलिसकर्मी ने दावा किया है तालिबानी अफगानिस्तान के हर घर से एक लड़की चाहते हैं.
काबुल में तैनात रही मुस्कान के एक साथी के साथ भी तालिबानियों ने ऐसा ही बर्बरतापूर्ण घिनौना काम किया है. मुस्कान ने मीडिया से बात करते हुए कहा, "वे (तालिबान) शवों के साथ भी बलात्कार करते हैं. उन्हें इस बात की कोई परवाह नहीं है कि व्यक्ति मृत है या जीवित. क्या आप इसकी कल्पना कर सकते हैं?"
मुस्कान ने भारत में भागकर आने की कारण बताते हुए कहा की उसकी एक महिला सहकर्मी को तालिबानी उठाकर ले गए थे और बाद में उसका मृत शरीर परिवार को लौटाते हुए धमकी देते हुए कहा कि यदि किसी ने पुलिस या सरकार के साथ काम किया तो उसके साथ भी यही होगा. इस घटना के बाद मुस्कान ने अफगानिस्तान छोड़ने का फैसाल किया था.
महिला पुलिसकर्मी मुस्कान ने कहा, "तालिबानी लोग चाहते हैं कि उन्हें हर घर से एक लड़की मिले. अगर आप उन्हें लड़की नहीं देंगे तो वो पूरे परिवार को मार डालते हैं. 10-12 साल की लड़की को भी उठा कर ले जाते हैं. तालिबानी कहते हैं कि वो बदल गए हैं ये सब बस एक दिखावा और छल मात्र है.
विश्व को अफगानिस्तान से सम्बंधित जो कुछ भी खबर मिल रही है, वह सब काबुल से जुड़ा है . अफगानिस्तान के दूरदराज कस्बों की हालात इससे भी खराब है. जिसका अनुमान लगाना अभी असंभव है, क्योंकि वहां तक अंतरराष्ट्रीय मीडिया का पहुंचना असंभव है.
अफगानिस्तान के पूर्व गृह मंत्री मसूद अंदाराबी ने सोशल मीडिया पर कुछ तस्वीरें पोस्ट करके दावा किया है कि लोगों में दहशत पैदा करने के लिए तालिबानियों ने घर के सदस्यों के सामने ही बच्चों की हत्या कर रहे हैं और घरों में सोते हुए बुजुर्गों को गोलियों से भून रहे हैं. इससे पूर्व तालिबान 1996 से 2001 तक अफगानिस्तान की सत्ता में रहा था. उस दौरान महिलाओं की जिंदगी तालिबानियों ने नर्क बना दी थी. उन्हें बीच सड़क पर कोड़ों से पीटा जाता था. पत्थरों से मारकर हत्या तक कर दी जाती थी.
तालिबानियों को महिलाओं की इज्जत करने की ट्रेनिंग नहीं दी गई
इस बार, तालिबान के प्रवक्ता जबीउल्लाह मुजाहिद ने कहा कि हमारे लड़ाके महिलाओं की इज्जत करने के लिए ट्रेंड नहीं हैं, इसलिए कामकाजी महिलाओं से हमारी अपील है कि वे काम के लिए घर से बाहर न निकलें. मैं मानता हूं कि घर के बाहर वे महफूज नहीं हैं, क्योंकि तालिबानियों को महिलाओं की इज्जत करने की ट्रेनिंग नहीं दी गई है. जबकि काबुल के कब्जे के बाद तालिबान ने कहा था कि पिछली बार की तुलना में महिलाओं के प्रति ज्यादा उदार रहेंगे. उन्हें कामकाज और शिक्षा के लिए छूट दी जाएगी. लेकिन, गुजरते दिनों के साथ उनके दावों की हकीकत विश्व के सामने आने लगी है, जिसका खुलासा खुद तालिबान प्रवक्ता खोल रहे हैं. लेकिन बाद में मुजाहिद ने अपनी बात का खंडन करते हुए कहा – हमारा महिलाओं से आग्रह है कि वे डरें नहीं. हम चाहते हैं कि वे काम करें. लेकिन, इसके पहले हालात सामान्य हो जाने दीजिए. ताकि वे सुरक्षित होकर अपने काम पर जा सकें. जब सब ठीक हो जाएगा तो हम खुद उन्हें काम करने की मंजूरी देंगे.
लेकिन पिछली घटनाओं से त्रस्त अफगानी महिलाओं को तालिबान पर विश्वास नहीं है. तालिबानी कब्जे के बाद अफगानी कामकाजी महिलाएं अपनी सुरक्षा और भविष्य को लेकर आतंकित हैं. विश्व के करीब सभी देशों ने तालिबान द्वारा अफगानी महिलाओं किए जा रहे अत्याचार पर चिंता जताई है.
तालिबान द्वारा मानवाधिकार उल्लंघन को लेकर वैश्विक संगठनों ने भी सख्ती दिखाई है. विश्व बैंक ने अफगानिस्तान की फंडिंग पर रोक लगा दी है. संयुक्त राष्ट्र ने भी कहा है कि अफगानिस्तान में मानवाधिकार को लेकर जो रिपोर्ट्स मिल रही हैं, वो परेशान करने वाली हैं. सच तो यह है कि जिस समाज में महिलाओं की सम्मान नहीं है उस समाज में शांति, स्थिरता और प्रगति नहीं होती और वह समाज बर्बरता और क्रूरता का प्रतीक बन जाता है. शारीरिक और मानसिक रूप से पीड़ित नारी जिसका मन हमेशा अशांत और बुझा हुआ हो वह शायद ही रोशनी को जन्म दे सके. इस प्रकार के बच्चों को समाज तथा परिवार के प्यार से वंचित और उपेक्षित रहना पड़ता है, जिसके कारण उनमें मानसिक विकृति उत्पन्न होती है.
एक स्वस्थ और प्रगतिशील समाज के निर्माण के लिए महिलाओं को सम्मान, अधिकार और स्वतंत्रता देना अतिआवश्यक है, यह बात तालिबान जितनी जल्दी समझ ले उतना ही जल्दी अफगान की सत्ता में स्थिरता आ पाएगी.
Rani Sahu
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