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- तबाही के मुहाने पर...
शंकर शरण। अफगानिस्तान से निकलने की लचर अमेरिकी योजना और जल्दबाजी ने अफगानिस्तान को तबाही के मुहाने पर ला खड़ा किया है। जब तालिबान काबुल के आसपास तेजी से अपना कब्जा जमा रहा है, तब अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन वापसी के इस कदम को तर्कसंगत ठहरा रहे हैं। इसमें अफगानियों के लिए विध्वंस के संकेत ही छिपे हैं। इससे अमेरिका के प्रति वैश्विक भरोसा भी घटेगा। बाइडन ने अपने शीर्ष सैन्य कमांडर की राय को भी दरकिनार करते हुए अफगानिस्तान से अमेरिकी सैनिकों की वापसी पर मुहर लगाई। यह एक ऐसे फैसले का प्रतीक बना, जिसमें दुनिया की सबसे शक्तिशाली सेना एक आतंकी मिलिशिया के हाथों परास्त हो गई। तालिबान अफगानिस्तान से अमेरिका को बेदखल करने के अपने स्वप्न को साकार करने के कगार पर है। इसका असर अफगानिस्तान से परे भी दिखेगा। अमेरिकी शक्ति के पराभव की ओर संकेत करने वाला यह घटनाक्रम वैश्विक जिहादी मुहिम का हौसला बढ़ाने का काम करेगा।
अमेरिका अफगान में राष्ट्र निर्माण के लिए नहीं आतंकी हमला का प्रतिशोध लेने के लिए गया था
बाइडन ने दुरुस्त ही कहा कि अमेरिका अफगानिस्तान में राष्ट्र निर्माण के लिए नहीं गया था। वह तो असल में 11 सितंबर 2001 को अमेरिका में हुए आतंकी हमला का प्रतिशोध लेने के लिए ही वहां घुसा था। इस देश में हाईवे, अस्पताल, बांध और संसद बनाने का जिम्मा भारत जैसे देशों का रह गया। भले ही अमेरिकी सैनिक 31 अगस्त तक अफगानिस्तान से वापसी करें, लेकिन यह सिलसिला तो एक जुलाई को तबसे ही शुरू हो गया, जब अमेरिका ने वहां अपने आखिरी एयरबेस बगराम में बिजली आपूर्ति बंद कर रातोंरात अपना बोरिया बिस्तर बांध लिया। यह एयरबेस अमेरिकी युद्ध का केंद्र्रंबदु जैसा रहा। इससे सुरक्षा आवरण भरभरा गया। अफगान सुरक्षा बल वहां पहुंचकर स्थिति अपने नियंत्रण में लेते, उससे पहले ही लुटेरे लूट-खसोट कर चले गए। अफगानिस्तान से अमेरिकी वापसी ने वियतनाम की याद दिला दी है। अमेरिका उस युद्ध को भी आधा-अधूरा छोड़कर भाग निकला था। जैसे अमेरिका ने दक्षिण वियतनाम में अपने साथियों को उनके हाल पर छोड़ दिया था उसी तरह यह वापसी अफगानियों को बर्बर इस्लामिक ताकतों की मोहताज बनाकर छोड़ देगी।