सम्पादकीय

अफगान-भारत और रूस

Subhi
26 Aug 2021 3:06 AM GMT
अफगान-भारत और रूस
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आज अफगानिस्तान के नागरिक ​किसी भी कीमत पर अपने प्यारे वतन को छोड़ कर जाने को मजबूर हैं। बर्बर तालिबानियों ने अफगान नागरिकों के देश छोड़ने पर पाबंदी लगा दी है।

आदित्य नारायण चोपड़ा: आज अफगानिस्तान के नागरिक ​किसी भी कीमत पर अपने प्यारे वतन को छोड़ कर जाने को मजबूर हैं। बर्बर तालिबानियों ने अफगान नागरिकों के देश छोड़ने पर पाबंदी लगा दी है। जो अफगान नागरिक भारत, अमेरिका या अन्य देशों में पहुंच रहे हैं, उनका जीवन कैसे सुगम होगा, यह चुनौती न केवल उनके सामने है बल्कि उन तमाम देशों के लिए जहां वे शरण ले रहे हैं। आज अफगानियों का जो दर्द है उसे पुरानी फिल्म 'काबुली वाला' के किरदार रहमत पठान को देखकर समझा जा सकता है।''ए मेरे प्यारे वतन, ए मेरे बिछड़े चमन,तुझ पे दिल कुर्बान।''संपादकीय :शिवसेना की 'संस्कारी' राजनीति'सबके मना करने पर स्वीकारा चैलेंज'बाजार हुए गुलजार ले​किन...लावारिस अफगानिस्तान!कश्मीर में हुर्रियत का चेहरासरकार का मिशन पाॅम ऑयलफिल्म का किरदार काबुली वाला दूसरे मुल्क में रहने को मजबूर था और अपने देश का प्यार उसे खींचता है। किसे पता था कि यह गाना वतन से दूर बैठे अफगानियों की तकदीर बन जाएगा। आज अफगानिस्तान में 50 लाख से ज्यादा लोग अपने देश में ही विस्थापित हो चुके हैं। माओं के बच्चे बिछुड़ गए हैं। भारत, ब्रिटेन, अमेरिका, कनाडा, अल्बानिया और ताजिकस्तान ने अफगान लोगों को शरण देने की घोषणा कर दी है। जबकि पाकिस्तान, तुर्की, हंगरी, ईरान, उज्बेकिस्तान और बंगलादेश ने साफ इंकार कर दिया है। स्थिति भयावह है।-बामियान में बुद्ध के हत्यारों की सत्ता में वापसी हो चुकी है। -लोगों के हत्यारे रक्त पिपासु तालिबानी जेलों से रिहा हो अफगानिस्तान के मंत्री बन रहे हैं। -गवांटोनामो जेल में 7 साल रहने वाला आतंकी अब अफगान का रक्षा मंत्री बन बैठा है।-अखंड भारत के इतिहास में सिल्क रूट पर बसे इस देश में पहली बार बौद्धों का सफाया करने वाले बाहरी हमलावर थे और वे भी इस्लाम के ​हिंसक अनुयाई थे, वे भी इन्हीं शक्लों के थे।-अब यह कठोर सत्य है कि आज वे पूरी तरह हिंसक और आत्मघाती आतंकवादी हैं और वे मानते हैं कि कट्टर इस्लाम ही दुनिया का अंतिम सत्य है।अफगानिस्तान का भविष्य क्या होगा इस बारे में तो कुछ भी नहीं कहा जा सकता लेकिन यह चिंता का विषय है कि भारत को इसकी सबसे भारी कीमत चुकानी पड़ रही है। अफगानिस्तान की स्थिति सभ्य बने हुए संसार के लिए ऐतिहासिक चिंता का विषय है।अफगानिस्तान को लेकर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और रूस के राष्ट्रपति ब्लादिमीर पुतिन में लम्बी बातचीत हुई। इससे पहले प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने जर्मनी की चांसलर एंजेला मर्केल से बातचीत की। भारत और रूस ने अफगानिस्तान के हालात पर लगातार विमर्श करने के लिए एक स्थाई चैनल स्थापित करने का फैसला किया है। दोनों नेताओं का मानना है कि मौजूदा हालात में दोनों देशों का सम्पर्क में रहना बहुत जरूरी है। रूस भारत का गहरा मित्र रहा है लेकिन सोवियत संघ के विखंडित होने के बाद एक ध्रुवीय विश्व में हमारे और रूस के रिश्ते काफी ठंडे रहे। हम अमेरिका के करीब होते गए। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और पुतिन में लम्बी बातचीत इस लिहाज से भी महत्वपूर्ण है कि अफगानिस्तान में सत्ता में आने के बाद रूस की अहमियत बढ़ने की सम्भावना है। रूस और चीन ने मिलकर तालिबान की वापसी में परोक्ष तौर पर मदद पहुंचाई है। वैसे रूस तालिबान के आतंकी रुख से चिंतित भी है लेकिन फिलहाल वह चीन के साथ भी लगातार सम्पर्क में है ताकि तालिबान की सत्ता वाले अफगानिस्तान की भावी स्थिति में उसका भी योगदान हो। रूस उन चुनिंदा देशों में से एक है जो अफगानिस्तान पर तालिबान के कब्जे से कोई ज्यादा चिंतित नहीं है। ब्लादिमीर पुतिन ने कुछ दिन पहले कहा था कि अफगानिस्तान पर तालिबान का कब्जा एक हकीकत है और रूस को इसके साथ ही चलना है। रूस यद्यपि अपने हितों को देख रहा है, ऐसा अन्य देश भी कर रहे हैं लेकिन रूस ने हमेशा भारत के हितो की रक्षा की है। रूस ने हमेशा क्षेत्रीय हितो का ध्यान रखते हुए भारत की हर सम्भव मदद की है। रूस की नीति जिन बातों से तय होती दिखती है वो है क्षेत्र में स्थिरता कायम करने का इरादा। रूस यही चाहता है की मध्य एशिया में उसके जो सहयोगी देश हैं उनकी सीमाएं सुरक्षित हों या आतंकवाद और ड्रग्स की तस्करी पर रोक लगे। यह भी जरूरी है कि आतंकवादियों को पड़ोसी देशों में दाखिल नहीं होने दिया जाए। तालिबान ने रूस को भराेसा दिलाया था कि रूस और उसके क्षेत्रीय सहयोगी को कोई खतरा नहीं होगा। अफगानिस्तान पर रूस, चीन और पाकिस्तान की जुगलबंदी भारत के लिए चिंता का विषय रही है। सबसे बड़ा सवाल यह है​ की भारत ने बीते दो दशकों के दौरान अफगानिस्तान में आधारभूत ढांचा खड़ा करने पर तीन अरब डालर का निवेश किया है। इस निवेश का क्या होगा? परियोजनाओं में बांध, स्कूल और अस्पताल के अलावा अफगानिस्तान के संसद भवन का निर्माण शामिल है। यद्यपि तालिबान का कहना है की भारत अपने ​निर्माण कार्य जारी रख सकता है। भारत को अपना निवेश बचाने के ​लियर रूस के सहयोग की जरूरत होगी। भारत को भी इंतजार करना होगा और देखना होगा। तालिबान का असली चेहरा सब देख चुके हैं। चरमपंथ और रूढ़िवाद बड़ी समस्या है। तालि​बान के सत्ता में दखल से जिहादी सोच और भी विकसित होगी। इसका परिणाम दुनिया पहले ही देख चुकी है। उम्मीद की जानी चाहिए कि रूस भारत के ​हितो की रक्षा के ​लिए सहयोग देगा।

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