सम्पादकीय

लोकतंत्र की छवि प्रभावित

Gulabi
25 Aug 2021 4:26 PM GMT
लोकतंत्र की छवि प्रभावित
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लोकतंत्र की छवि प्रभावित

सच कहूं। संसद का का मानसून सत्र निराशाजनक रहा है। केंद्र सरकार पेगासस जासूसी विवाद पर चर्चा करने के लिए विपक्ष की मांग के समक्ष नहीं झुकी। उच्चतम न्यायालय इस संबंध में अनेक याचिकाओं पर सुनवाई कर रहा है। इन याचिकाओं में राजनेताओं, सामाजिक कार्यकतार्ओं, पत्रकारों और अन्य लोगों की कथित जासूसी की खबरों के बारे में न्यायालय की निगरानी में जांच की मांग की गयी है। केन्द्र सरकार ने इस मुद्दे की जांच के लिए एक विशेषज्ञों की समिति गठित करने का निर्णय किया है। केन्द्र सरकार ने इन सब आरोपों का खंडन किया है और दावा किया है कि ये याचिकाएं अटकलों पर आधारित हंै और इन आरोपों में कोई सार नहीं है। किंतु अब तक सरकार ने इजराइल सरकार से पेगासस साफ्टवेयर की खरीद का खंडन नहीं किया है।


केन्द्र सरकार याचिकाओं को बेकार बता रही है किंतु जो लोग इस जासूसी साफ्टवेयर के निशाने की सूची में हैं उनके फोन की स्वतंत्र फोरेंसिंक जांच से पता चला है कि उनमें वास्तव में इस स्पाईवेयर का संक्रमण था। जब से यह जासूसी कांड प्रकाश में आया है जीवन के विभिन्न क्षेत्रों के 500 से अधिक नागरिकों ने भारत के मुख्य न्यायधीश रमन्ना को एक खुला पत्र लिखा है और इस संबंध में केन्द्र से उत्तर देने की मांग के बारे में हस्तक्षेप करने के लिए कहा। एडिटर्स गिल्ड आॅफ इंडिया और दो वरिष्ठ पत्रकारों ने भी इस पत्र पर हस्ताक्षर किए हैं।

इनके प्रत्युत्तर में इलेक्ट्रॉनिकी और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय ने पिछले सोमवार को कहा है कि वह कुछ निहित स्वार्थी तत्वों द्वारा फैलायी जा रही गलत बातों के संबंध में लोगों की धारणाओं को दूर करने के लिए एक समिति का गठन कर रहा है। केन्द्र सरकार इस संबंध में खंडन जारी कर रही है किंतु उच्चतम न्यायालय ने केन्द्र सरकार से पूछा है क्या वह इस संबंध में शपथ पत्र दायर करेगी? क्या उसने पेगासस स्पाईवेयर खरीदा है और क्या इसका उपयोग भारतीय नागरिकों पर हुआ है।

सरकार द्वारा नागरिकों की जासूसी के दो प्रयोजन होते हैं। पहला, अपने आलोचकों की पहचान करना और उन्हें दंडित करना। इसे सक्रिय दबाव कहा जाता है और दूसरा निष्क्रिय दबाव है जिसके तहत नागरिकों को यह अहसास कराया जाता है कि सरकार उन पर निगरानी रख रही है। किंतु ऐसी जासूसी केवल निरंकुश शासन में हो सकती है न कि भारत जैसे घोषित लोकतंत्र में। जासूसी एक प्राचीन राजकौशल है और वर्तमान व्यवस्था में यह और भी आधुनिक बन गयी है। ऐसा माना जाता है कि जर्मन चांसलर एंजेला मार्केल और ब्राजील के राष्ट्रपति दिलमा राउसेफ आदि विश्व नेताओं की अमरीकी इंटेलीजेंस एजेंसियों ने फोन टेपिंग की। पहले भी कहा जाता है कि पूर्व प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू की विदेशी जासूसी एजेंटों द्वारा निगरानी की जाती थी।

इजरायली समूह एनएसओ पेगासस का स्वामी है और उसने खुले रूप में कहा है कि वह इस उत्पाद का लाइसेंस केवल सरकारों को देती है। इसलिए स्पष्ट है कि राजीतिक विरोधियों, पत्रकारों, कार्यकतार्ओं और अन्य लोगों के फोन की जासूसी सरकार द्वारा ही की जाएगी। अमरीका और यूरोपीय देश इस मुद्दे के बारे में उदासीन हैं क्योंकि वे विशेषकर चीन का मुकाबला करने के लिए भारत के रणनीतिक साझीदार हैं और इसीलिए उन्होंने भारत सरकार के इस कदम को नजरंदाज किया है। किंतु परिपक्व लोकतंत्रों में सत्तारूढ पक्ष को कम से कम ऐसा दिखना चाहिए कि वह जनता के विचारों का ध्यान रखती है।

जासूसी के आरोप यदि सही पाए जाते हैं तो इससे भारत निरंकुश देशों की श्रेणी में जाएगा। विश्व में कुछ इस्लामी देश इजराइली उत्पाद के माध्यम से मुस्लिम नागरिकों पर निगरानी रख रहे हैं जबकि परंपरागत रूप से वे इजराइल को अपना दुश्मन मानते हैं किंतु सत्ता की खातिर उन्होंने दुश्मनी को भी ताक पर रख दिया। चीन जैसे निरंकुश देशों को अपने नागरिकों पर निगरानी रखने के लिए विदेशी स्पाईवेयरों की आवश्यकता नही है। उन्होंने न केवल ऐसी प्रौद्योगिकी विकसित कर दी है किंतु उनकी शासन व्यवस्था में बिग ब्रदर वाचिंग का विचार एक अभिन्न अंग है।

सच यह है कि आज समाज पहले से अधिक असहिष्णु बन गया है। पक्षपातपूर्ण और दमनकारी शासन व्यवस्था दक्षिणपंथी राजनीतिक समूह को सामान्यतया असहिष्णु समाज से समर्थन मिलता है। विश्व भर के आलोचक सही कह रहे हैं कि विगत कुछ वर्षों में भारत में सरकार आलोचना के प्रति असहिष्णु बनी है और पिछले तीन वर्षों में यह कुछ अधिक ही देखने को मिला है। अनेक राज्यों में सरकारें और स्वयं केन्द्र ने भी अपने आलोचकों का मुंह बंद रखने के लिए भारतीय दंड संहिता की धारा 124 (1) का उपयोग किया है।

किसी राज्य के प्राधिकारी के विरुद्ध प्रदर्शन के मामलों में इस धारा के अंतर्गत देशद्रोह के मामले दर्ज किए जा रहे हैं। वस्तुत: शासन में गरिमा और निष्पक्षता के अभाव से व्यावहारिक रूप से अधिक नुकसान हुआ है। ऐसे सिविल सेवकों को बिल्कुल बर्दाश्त नहीं किया जाता है जो सरकार की लाइन को नहीं मानते हैं। मीडिया से बचा जाता है, विधायी प्राधिकारियों को नजरंदाज किया जाता है जैसा कि जासूसी के मामले में प्रश्नों का उत्तर देने से इंकार करने से स्पष्ट है। कुल मिलाकर यह कहा जा सकता है कि आज विश्व के अनेक देशों में लोकतांत्रिक भावना का अभाव है और विरोध को सहा नहीं जा रहा है।

अधिकतर सरकारें अतीत के तानाशाहों से बदतर ढंग से कार्य कर रही हैं और इस संबंध में भारत की स्थिति भी अच्छी नहीं है। इन देशों में सत्ता का विकेन्द्रीकरण नहीं है। भारत में भी राजनीतिक विकेन्द्रीकरण समुचित रूप से नहीं हुआ है हालांकि यहां सहकारी संघवाद की बड़ी-बड़ी बातें की जाती हैं किंतु शीर्ष से नियंत्रण के कारण यह वास्तविकता नहीं बन पाया है। भविष्य भी बहुत उज्जवल नहीं दिखायी दे रहा है क्योंकि राज्य सत्ता का प्रतीक है और नागरिकों के साथ एकपक्षीय ढंग से कदम उठाने का प्रलोभन राज्य की दूसरी प्रवृति है। इसलिए व्यवस्था में प्रभावी नियंत्रण और संतुलन के उपायों की व्यवस्था करनी होगी हालांकि यह कहना आसान है।

लोकतंत्र शासन की सर्वोत्तम प्रणाली है किंतु यह तभी संभव है जब शासक और शासित दोनों वर्गों के बीच पारस्परिक समन्वय हो और इस पारस्परिक समन्वय के लिए जवाबदेही महत्वपूर्ण है। एकपक्षीयता जासूसी जिसका प्रतीक है वह हमारे सार्वजनिक जीवन में व्यापक रूप से देखने को मिल रहा है। जासूसी हमारे व्यक्तिगत जीवन में अतिक्रमण है। असली मुद्दा यह नहीं है कि जासूसी के कारण हमारी निजता का उल्लंघन हुआ है अपितु यह है कि एकपक्षीयता आज की जीवन शैली बन गयी है।


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