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- संघ लोक सेवा आयोग के...
प्रेमपाल शर्मा। प्रशासनिक सुधारों की अगली कड़ी में केंद्र सरकार ने आइएएस और आइपीएस जैसी अखिल भारतीय सेवाओं की तरह भारतीय न्यायिक सेवा बनाने का मन बना लिया है। चूंकि यह मामला संविधान की धारा 312 के तहत राज्यों की संघीय व्यवस्था से भी संबंधित है, लिहाजा अगले महीने सभी राज्यों के कानून मंत्रियों के साथ विचार-विमर्श किया जाएगा। वैसे 1946 में सरदार पटेल की अध्यक्षता में ऐसी अखिल भारतीय न्यायिक सेवा बनाने पर विचार हुआ था। इसके बाद 1960 और 2012 में भी राज्यों से सलाह ली गई, लेकिन आजादी के बाद से ही कतिपय कारणों से न्यायिक सेवा के गठन को लटकाया जाता रहा। अक्सर तीन आधारों पर इसका विरोध होता है। पहला राज्य की भाषा, दूसरा न्यायपालिका की स्वतंत्रता और तीसरा अधीनस्थ न्यायिक सेवा के प्रमोशन में रुकावटें। ये बेहद कमजोर और तर्कहीन दलीलें हैं। आइएएस, आइपीएस और भारतीय वन सेवा जैसी अखिल भारतीय सेवाओं के अनुभव से भी सीखें तो क्या उनके अधिकारी सेवारत राज्य की भाषा सीखकर उतनी ही दक्षता से काम नहीं कर रहे? क्या राज्यों की प्रांतीय सिविल सेवाओं को आगे बढ़ने में कभी कोई दिक्कत हुई? रहा न्यायपालिका की स्वतंत्रता का प्रश्न तो यहां हाई कोर्ट एक्ट में कुछ सुधार कर अवांछित हस्तक्षेप को दूर किया जा सकता है।