सम्पादकीय

कोरोना काल में उखड़ती सांसों और आक्सीजन की कमी के संकट के दौर में सांसें सहेजने की सलाह

Tara Tandi
28 Jun 2021 5:27 AM GMT
कोरोना काल में उखड़ती सांसों और आक्सीजन की कमी के संकट के दौर में सांसें सहेजने की सलाह
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कोरोना काल में उखड़ती सांसों और आक्सीजन की कमी के संकट के दौर में गत दिनों एक डॉक्टर का प्रिस्क्रिप्शन काफी चर्चित हुआ।

जनता से रिश्ता वेबडेस्क |डॉ. मोनिका शर्मा। कोरोना काल में उखड़ती सांसों और आक्सीजन की कमी के संकट के दौर में गत दिनों एक डॉक्टर का प्रिस्क्रिप्शन काफी चर्चित हुआ। उस चिकित्सक का सुझाव प्रेरणादायी ही नहीं, बल्कि आने वाली पीढ़ियों की सांसों को सहेजने की बात भी लिए है। दरअसल बीते दिनों महाराष्ट्र के लोनावला में एक डॉक्टर ने मरीज के पर्चे पर मराठी में लिखा, 'जब तुम ठीक हो जाओगे तो एक पौधा लगाना तो कभी आक्सीजन की कमी नहीं होगी।'

चिकित्सक की सलाह नई तो नहीं, पर जरूरी बहुत है। पौधा लगाने और उसे सहेजने की सलाह तो पर्यावरणविद् ही नहीं, बल्कि घर के बड़े-बुजुर्ग भी देते रहे हैं। स्कूली किताबों में कुदरत को बचाने का पाठ हर इंसान के बचपन का हिस्सा रहा है। प्रकृति को सहेजने की सीख भारतीय संस्कृति और संस्कारों की बुनियाद रही है। हमारी लोक संस्कृति में तो प्रकृति की पूजा करने का भाव समाहित है। ऐसे में जीवन बचाने वाली दवाइयां लिखने के पर्चे पर लिखा गया यह परामर्श भले ही नया नहीं है, पर कुछ याद दिलाने वाला जरूर है। साथ ही कोविड-19 की विपदा से मिले दूसरे सबक भी डॉक्टर की इस सलाह की अहमियत समझाने को काफी हैं। इस महामारी में घर तक सिमटी जिंदगी ने समझाया है कि शरीर की प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने से लेकर मानसिक सेहत सही रखने तक प्रकृति के साथ की भूमिका बेहद अहम है।
दरअसल हम प्रकृति से लेना तो सीख गए हैं, पर उसे कुछ भी लौटाने की समझ हम में नदारद है। ऐसे में डॉक्टर का यह प्रिस्क्रिप्शन वाकई चेताने वाला संदेश लिए है कि पेड़-पौधे हैं तो प्राणवायु है और प्राणवायु है तो हमारा जीवन है। यकीनन बढ़ते प्रदूषण और जलवायु परिवर्तन के आज के संकटकालीन दौर में कुदरत को बचाना इंसानी जीवन को ही नहीं, बल्कि मन के खुशहाल मौसम को भी बचाने जैसा है। मानव विज्ञानी ग्रेगरी बेटसन के मुताबिक अपने आसपास की प्रकृति ही हमारे मन को तय करती है। अपनी किताब 'स्टेप्स टू एन इकोलॉजी ऑफ माइंड' में वह कहते हैं कि 'हमारा मन पर्यावरण से बेतरह जुड़ा है। इंसान का सोच, उसके विचार सभी आसपास की प्रकृति से जुड़े हैं।' ध्यान देने वाली बात है कि अब तो ईको साइकोलॉजी को मनोविज्ञान की एक अहम शाखा मान लिया गया है, जिसके मुताबिक प्रकृति और मन का गहरा संबंध होता है। हम जिस परिवेश में रहते हैं, उसका हमारे मन पर बहुत असर पड़ता है। अध्ययन बताते हैं कि 21 दिनों तक कुदरत से जुड़ी गतिविधियां करने पर इंसान के अच्छा महसूस करने की संभावना 30 फीसद तक बढ़ जाती है।
पेड़ लगाना और हरियाली को सहेजना पूरी दुनिया के भविष्य को सहेजने जैसा है। सेंटर फॉर ग्लोबल डेवलपमेंट की चेतावनी है कि यदि पेड़ के घटने की रफ्तार इसी गति से जारी रही तो वर्ष 2050 तक विश्व मानचित्र से भारत के क्षेत्रफल के बराबर जंगल समाप्त हो जाएंगे। कुछ समय पहले आई नेचर जर्नल की रिपोर्ट के अनुसार भारत में सिर्फ 35 अरब पेड़ हैं। अर्थात हमारे यहां एक व्यक्ति पर सिर्फ 28 पेड़ ही बचे हैं। बावजूद इसके नए पौधों को लगाने और उनकी देखभाल को लेकर हमारे यहां कोई गंभीरता नहीं दिखती। हालांकि कई बार इंसान की सांसों के लिए शुद्ध हवा देने वाले पौधे रोपे भी जाते हैं, लेकिन वे अकसर संरक्षण के अभाव में दम तोड़ देते हैं। हर वर्ष बरसात के मौसम में पेड़ लगाने की औपचारिकताएं तो खूब होती हैं, पर उन्हें सहेजने के प्रति अनदेखी का भाव आज भी हमारे समाज में कायम है। ऐसे में कोरोना संकट से मिले सबक के बाद तो पौधे लगाने और उन्हें हर हाल में बचाने को लेकर गंभीरता आवश्यक है। बीते डेढ़ साल से कोरोना संक्रमण से जूझते हुए हम सेहत की संभाल से जुड़े कई पहलुओं पर गहराई से विचार कर रहे हैं। इसी कड़ी में हम आज अपनी बुनियादी जीवनशैली में आए बदलावों को लेकर भी चिंतित हैं
गौरतलब है कि दुनियाभर के चिकित्सक भी लंबे समय से कह रहे हैं कि हालिया बरसों में जीवनशैली से जुड़ी व्याधियां तेजी से बढ़ी हैं। ऐसी स्वास्थ्य समस्याएं रोग नहीं, बल्कि विकार हैं। इन विकारों के मामले में इलाज से बेहतर बचाव है। इस बचाव में प्रकृति का साथ अहम साबित हो सकता है। कुछ समय पहले 'एनवायरनमेंट रिसर्च' जर्नल में प्रकाशित एक अध्ययन के मुताबिक ज्यादातर लोग बीमार होने पर न चाहते हुए भी दवाइयों का सहारा लेते हैं, लेकिन यदि वे प्रकृति के बीच जाकर रहें तो उन्हें कई छोटी-मोटी बीमारियों के लिए दवा खाने की जरूरत ही नहीं होगी। रिसर्च के अनुसार ऐसा करने से टाइप-2 डायबिटीज, दिल की बीमारी और तनाव होने की संभावनाएं तो काफी कम हो जाती हैं। ऐसे में चिकित्सक द्वारा अपने आसपास पौधे लगाने की दी गई यह सलाह मानने और मनन करने योग्य है।


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